खुद से खुद को करें मोटिवेशन

पवन कुमार 

मैं “मैं जो बनकर मैं चला, मैं”मैं ही बनकर रह गया ”
मैं”मैं को जबतक मैं ने समझा,मैं अकेला रह गया।।
भागवत गीता में मैं को आत्मा के रूप में दर्शाया गया है ,ओर भागवत गीता के अनुसार आत्मा ही सत्य है और यह शाश्वत है,भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से बताया कि मैं सभी के हृदय में आत्मा के रूप में स्थित हूं।
मै कौन हूं ? आप मैं कौन हूं जानने के लिए अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश करते हैं, इसके परिणाम स्वरुप आप खुद स्वयं को जानना चाहते हैं जब तक आप अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव नहीं करते तब तक आप खुद को उसे नाम से जानते हैं जो आपको औरों ने दिया है, मैं को समझने के लिए, जानने के लिए खुद की अंतरात्मा की आवाज को, खुद की शक्तियों को जानना होगा, मैं को अस्तित्व में लाना होगा मैं कर सकता हूं, मैं को करना है, मैं को ही करना है।
“मैं”ओर “हम” दो शब्दों पर हमारा जीवन चक्र निर्भर है और दोनों ही शब्दों का अपना एक विशेष महत्व है,लेकिन इस जीवन चक्र में किसको कहां स्थान देना है यह हम पर निर्भर करता है।
मैं में छुपा सफलता का राज – किसी भी शब्द को गलत समय पर गलत स्थान दिया जाए,इसी परिस्थिति में बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मैं एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग अगर समाज एवं परिवार में किया जाए तो लगभग “मैं” अपना अस्तित्व खो देता है, लेकिन यदि यही शब्द अपने लिए प्रयोग में होता है तो (मोटीवेटर) अभी प्रेरक का काम करता है। यहां पर “हम”अस्तित्व में आता है, परिवार में रिश्ते होते हैं दादा-दादी, माता-पिता, बुआ, ताऊ चाचा ,भाई बहन, भैया भाभी आदि होते हैं, इसी लिए यहां “हम” अस्तित्व में होता है। लेकिन यहां भी “मैं”अपना एक विशेष स्थान रखता,जैसे परिवार का मुखिया जिसपर परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी है अब जिम्मेदारी एक पर है उसी को सब का भरणपोषण करना है अब आता है, ऐसा भी वक्त आता है जब बड़ी से बड़ी परेशानी का सामना खुद को ही करना है ऐसे में “मैं”अस्तित्व में आता है, मैं को ही करना, मैं नहीं करूंगा तो क्या होगा,मैं कर सकता हूं।
उसी प्रकार समाज में किसी भी सामाजिक कार्य किसी व्यक्ति विशेष से नहीं हो सकता सभी के सहयोग की आवश्यकता होती है,इसी लिए यहां भी “हम”अस्तित्व में आता है,लेकिन किसी भी सामाजिक कार्य हेतु सभी को जिम्मेदारी दी जाती है कुछ लोगों को विशेष जिम्मेदारी दी जाती है,जिसके कारण कभी कभी ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति विशेष पर जिम्मेदारी पड़ जाती है चाहकर भी किसी की मदद नहीं ले सकते,अब यहां पर “में” को अस्तित्व में आना ही पड़ेगा, मैं को ही करना है, मैं को ही करना पड़ेगा, मैं कर सकता हूं।
अब बात करेंगे उस विषय की जिस विषय पर लेखक ने अपनी लेखनी को स्वरूप देने की कोशिश की है।स्कूल,कॉलेज (लाइफ) जीवन यहां पर मैं पूर्णरूप से अस्तित्व में होता,मैं ही है जो आपको (मोटिवेट) अभी प्रेरित करता है।ये समय ऐसा है जब जीवन में हजारों उतर ,चढ़ाव आते हैं जब अभिभावक,सुख सुविधाओं का विशेष ध्यान रख सकते हैं, शिक्षक अच्छे से अच्छा पढ़ा सकते हैं, स्कूल के साथी साथ में खेल सकते हैं, साथ में स्कूल कॉलेज आ जा सकते हैं, लेकिन जो भी करना होता है मैं को ही करना पड़ता,मैं को ही पढ़ना है,मैं को ही याद करना है,मैं को ही परीक्षा देना है, यहां मैं ही है जो आपको (मोटिवेशन) अभिप्रेरित करता है अब खुद की आत्मा की आवाज को सुनिए,खुद की शक्तियों को पहचानिए और एक लक्ष्य निर्धारित करते हुए मैं कर सकता हूं,मैं कर सकता हूं,मैं कर सकता हूं,मैं को करना है,मैं को ही करना है अब मैं लक्ष्य को प्राप्त कर चुका होगा,सफलता मैं के कदम चूमेगी।

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