फैला रिश्तों का बाजार ।
मतलब के सब रिश्ते नाते,
मतलब के सब यार।।
मतलब का है लेना देना,
मतलब के सब बोल ।
स्वार्थ के संग तुल गए,
संबध सब अनमोल । ।
दिल के भाव सूख गए,
मुरझा गया है प्यार ।
मतलब के सब यार ।।
भूल बैठे त्याग-कर्त्तव्य,
सबको अधिकार लुभाए ।
भौतिक सुख की लालसा,
पल-पल डसती जाए । ।
अपनेपन का रंग लुटा,
हैं फीके-फीके त्योहार ।
मतलब के सब यार ।।
रूठा-रूठा मुखिया से,
परिवारजनों का मन ।
पत्नी सुख साथिन हुई,
पुत्र चाहे बस धन । ।
फैल गया जीवन में,
अब धन का व्यापार ।
मतलब के सब यार ।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह ‘दीमक लगे गुलाब’ से।