Site icon

हर्ष उल्लास के साथ सुहागिन महिलाएं ने वट सावित्री त्यौहार मनाई

 अनुप जोशी

रानीगंज- प्रत्येक वर्ष सुहागन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत का पालन मुख्यतः सुहागिन महिलाएं करती हैं। वट सावित्री व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं।

 

ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष की जडों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान है। इस वृक्ष की लटकती हुई शिराओं में देवी सावित्री का निवास है। सुहागन महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत रखा जाता है।
व्रत के दौरान महिलाएं वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं। यह व्रत सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से वापस पाया था। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और वट वृक्ष की जड़ में पानी,फल,फूल,धूप-दीप आदि अर्पित करती हैं। साथ ही, पेड़ के चारों ओर कच्चे धागे से परिक्रमा करती हैं।
वट सावित्री व्रत के दिन कई महिलाएं नयी साड़ी और आभूषण पहनकर सज-धजकर पूजा करती हैं। इसे सामूहिक रूप से भी मनाया जाता है,जहाँ महिलाएं एकत्रित होकर व्रत कथा का श्रवण करती हैं। इस व्रत का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्त्व भी है, जो महिलाओं को आत्म-शक्ति और धैर्य की प्रेरणा देता है।
इस अवसर पर रानीगंज अंचल के पंडित पोखरा,बरदही, हत्या तालाब देवी स्थल, में महिलाएं उत्साह पूर्वक इस त्यौहार को हर्ष उल्लास के साथ मनाई।
इस दौरान पंडित प्रमोद पांडे ने कहा कि वटवृक्ष की लटकती हुई शिराओं में देवी सावित्री का निवास है। अक्षयवट के पत्र पर प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे। प्रयाग में गंगा के तट पर अक्षयवट है। तुलसीदास जी ने इस अक्षयवट को तीर्थराज का छत्र कहा है। तीर्थो में पंचवटी का महत्व है। पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी है। मुनि अगस्त्य के परामर्श से श्री राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था। पूजा अर्चना किए थे। आज इसी परंपरा केअंतर्गत इस त्यौहार को मनाया जाता है।

Exit mobile version