कई लोगों ने पर्दे के पीछे रहकर दी आंदोलन को मजबूती, अब ‘जीत’ का जश्न मनाते हुए घरों की ओर लौट रहे

0
268
घरों की ओर लौट रहे
Spread the love

नई दिल्ली| कृषि कानूनों के खिलाफ 379 दिनों तक दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन चला। किसान सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरे। हालांकि, एक बात तो तय है कि ये आंदोलन जितना सामने रह कर लड़ा गया, उतना ही पीछे रह कर भी लड़ा गया।

किसान आंदोलन के दौरान कई ऐसे व्यक्ति भी हैं, जिन्होंने सब कुछ छोड़ अपना पूरा समय आंदोलन में लगा दिया। इतना ही नहीं, आम जनता तक किस तरह आंदोलन को सही तरह से पहुंचाया जाए और आंदोलन में शामिल हो रहे लोगों के लिए कैसे रुकने की व्यवस्था की जाए, यह भी एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आई।

लाखों की संख्या में किसानों के लिए लंगर बनाया गया। आन्दोलन स्थलों पर टैंट की व्यवस्था की गई, सर्दी, गर्मी, बारिश और आंधी तूफान से भी किसानों ने डट कर सामना किया।

इसके अलावा जब आंदोलन के दौरान टेंट में आग लगी, तो उसकी जगह दूसरा टेंट मुहैया कराना, उनकी मदद की गई, यह सभी वो छोटी छोटी चीजें है, जिसने आंदोलन को मजबूत बनाया।

किसान नेता कैमरे के सामने आकर सरकार के खिलाफ बिगुल बजा चुके थे तो वहीं कैमरे के पीछे कुछ व्यक्ति आंदोलन में जान फूकने में लगे हुए थे। इनमें फुटबॉल प्लेयर, से लेकर कॉलेज छात्रा तक शामिल हैं। आन्दोलनस्थलों पर बुजुर्ग किसान रणनीति बनाते, तो उसको अमल करने के लिए नौजवान युवा इधर से उधर भागते थे।

दरअसल शुरूआत में किसानों को लेकर तमाम तरह की अफवाह फैलाई गई, जिसे किसानों को गलत साबित करना बड़ा मुश्किल हो रहा था, कुछ दिनों बाद आन्दोलनस्थल पर मौजूद एक युवा ने आईटी सेल बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे किसान नेताओं ने स्वीकार कर लिया।

पँजाब निवासी बलजीत सिंह ने किसानों के लिए एक आईटी सेल बनाया और सभी संगठनो के अलग अलग बयानों को एक आधिकारिक बयान में तब्दील किया। किसानों के आंदोलन को लेकर देश दुनिया में सही संदेश जाए, उसको लेकर एक सोशल मीडिया कैम्पेन भी चलाया।

बलजीत सिंह ने आईएएनएस को बताया, शुरूआत में किसानों को लेकर बेहद गलत गलत बातें बोली गई, उसको काउंटर करने के लिए हमें कुछ चाहिए था। तमाम संगठन इस आंदोलन में मौजूद थे, उन सबकी बातों को एक प्लेटफॉर्म के माध्यम से पहुंचाना भी जरूरी था। हमने एक आईटी सेल बनाया और उसे चलाना शुरू किया।

हर दिन सुबह हम आंदोलन से जुड़ी बातों को प्लेटफॉर्म पर डालने लगे, हैशटैग बनाया जिसे दुनिया भर में फैलाया भी। बीच में हमारे ऊपर बंदिशें लगा दी गई। विभिन्न सोशल मीडिया साइट्स को बंद करने का प्रयास हुआ, लेकिन सभी कोशिशें नाकाम रही।

बलजीत के साथ कई अन्य युवा भी शामिल है जिन्होंने अपनी पहचान को छुपाते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाया। ऐसे ही एक युवती जिसने आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों की जानकारी इखट्टा की।

दरअसल आंदोलन के दौरान कई किसान रोड एक्सीडेंट, दिल का दौरा पड़ने से तो वहीं किसानों की बीमारी से मृत्यु हो रही थी।

अनुरूप संधू और उनके साथियों ने उन सभी लोगों की जानकारी जुटाना शुरू की और एक जगह पर लिखना शुरू किया। अनुरूप के पास अब तक करीब 714 मृतक किसानों की जानकारी है।

अनुरूप संधू ने आईएएनएस को बताया, हमने यह सभी जानकारी पब्लिक पेलटफॉर्म से जुटाई है, इसमें मेरे एक साथी का भी बहुत बड़ा योगदान था। हम मिलकर डेथ सर्टिफिकेट, अखबार के माध्यम से सभी मृतक किसानों को लेकर एक जगह लिखना शुरू किया, क्योंकि कई किसान दिल का दौरा पड़ने से शहीद हो गई। कई महिला किसानों की सड़क पर कुचलने से मृत्यु हो गई थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here