मधु लिमये ने जीवन में न्यूनतम लिया अधिकतम दिया और श्रेष्ठतम जिया

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प्रोफेसर राजकुमार जैन

आज स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, लोकतंत्र, समाजवाद के प्रहरी मधु लिमये की दास्तान एक लेख में बयां करना मुमकिन नहीं है। इसलिए मैंने अपनी बात मरहूम अटल बिहारी वाजपेयी जो कि मधु जी के सहकर्मी परंतु अलग राह के राही थे, उन्होंने मधुजी के इंतकाल के बाद संसद में जो कहा उससे मधु लिमये की शख्सियत की एक झलक मिल जाती है, शुरू की है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 13 फरवरी 1995 को लोकसभा में मधु जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था –

“श्री मधु लिमये के साथ मुझे इस सदन में, सदन के बाहर राजनैतिक क्षेत्र में काम करने का बहुत मौका मिला था। वह दोनों साम्राज्यवादों से लड़े। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से भी, पुर्तगाली साम्राज्यवाद से भी। जेल की लंबी यातना सही। उसी में उन्होंने अध्ययन करने का और विश्लेषण करने का गुण अर्जित किया। कुछ आदर्शों के प्रति उनकी आस्था थी। कुछ विचारों के लिए वह प्रतिबद्ध थे। प्रखर चिंतक थे। कठोर स्पष्टवादी थे। ऐसे स्पष्टवादी कि कभी-कभी उनकी स्पष्टवादिता विवादों को खड़ा कर देती थी। मगर जो बात वे कहना चाहते थे वह कह देते थे। अध्यक्ष महोदय, मुझे याद है कि संसद में कोई संविधान की पेचीदा समस्या हो, कोई नियमों से उलझा हुआ सवाल हो, मधु लिमये जब उधर से प्रवेश करते थे तो अपने साथ संदर्भ-ग्रंथों का पूरा पहाड़ लेकर आते थे, जिस पहाड़ को देखने मात्र से लगता था कि आज दो हाथ होने वाले हैं और सदन को तो कठिनाई होती ही थी, कभी-कभी अध्यक्ष महोदय भी अपने लिए मुश्किल पाते थे। लेकिन वह अध्ययन करके आते थे। अपने पक्ष को तर्कसम्मत ढंग से प्रस्तुत करते थे। अब तो इस तरह का अध्ययन दुर्लभ हो गया है। लेकिन उन्होंने चिंतन और आचरण दोनों का मेल करके दिखाया।”

मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेता तथा पश्चिम बंगाल के मुख्‍यमंत्री रहे कामरेड ज्‍योति बसु ने मधु जी के बारे में लिखा है कि-मेरे लंबे राजनैतिक जीवन में अपने मुल्‍क के कई प्रकाशवान राजनीतिज्ञों से मेरा संबंध रहा है, उसमें बिलाशक मधु लिमये एक थे। मेरी नज़र में वे न केवल प्रख्‍यात व्‍यक्तित्‍व थे, बल्कि वे अपने समय के शीर्ष बुद्धिजीवी भी थे। मैं आशा करता हूं कि यह सुविख्‍यात शख्सियत हमें बेहतर भारत, जिसमें हम रह सके, बनाने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती रहे। आज हिंदुस्तान चौराहे पर खड़ा हुआ है, मैं नयी पीढ़ी को बड़ी शिद्दत के साथ कहना चाहूंगा कि वे मधु लिमये जैसी शख्सियत से प्रेरणा लें जो कि किसी भी व्यक्तिगत लाभ तथा गैरस्तरीय बात से ऊपर हैं और हर प्रकार की बाधा के बावजूद अपने सिद्धांत पर अडिग हैं।
इंडियन एक्सप्रेस एवं हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक तथा प्रधानमंत्री के सूचना सलाहाकार रहे श्री एच. के. दुआ का कहना था-

“मधु लिमये में अनेक विशिष्ट गुण थे। मैंने उनको पार्लियामेंट में काम करते देखा है। हालाँकि उनकी पार्टी के सदस्यों की संख्या ज़्यादा नहीं थी, फिर भी तत्कालीन सरकार को वे नियंत्रण में रखते थे। सदन में मंत्री सबसे ज़्यादा लिमये से ही सतर्क रहते थे। वे राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति सजग-सतर्क रहते हुए अपने भाषणों के लिए लायब्रेरी में बेहद मेहनत करते थे। वे जब कोई विषय चुनते थे, तो उस पर इतनी रिसर्च करके आते थे कि वे अकेले ही पूरी पार्लियामेंट को झकझोर देते थे। वे अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा के सहारे सदन में जो सफलता पाते थे, वह दुनिया के किसी भी सांसद के लिए ईर्ष्या की बात होती थी। श्री लिमये ने इन गुणों को बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी विस्तार किया।”
अटल बिहारी वाजपेयी, ज्‍योति बसु तथा एच. के. दुआ साहब जैसे अनेकों मशहूर मारूफ हस्तियों ने यूँ ही मधु जी की तारीफों के पुल नहीं बॉंधे। उस ज़माने में इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया के आधुनिक उपकरणों, टेलीविजन, इंटरनेट, मोबाइल, वाट्सऐप, फेसबुक, आरटीआई जैसे माध्यम उपलब्ध नहीं थे। जब सारे रास्ते बंद थे, गोपनीय थे, उस समय मधु लिमये ने अपने दम पर भारतीय संसद में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो संघर्ष छेड़ा था, वह कल्पना से परे है।
उस समय के चर्चित घोटाले स्टील पार्टर डील, अमीचंद प्यारेलाल कांड (सी सुब्रह्मण्यम), कृत्रिम धागा तथा खादी भंडार के दियासलाई की चोरी का कांड (मनुभाई शाह) जयन्ती शिपिंग – धर्म तेजा, ए.पी.जे. शिपिंग (एस. के. पाटिल), विदेशी मुद्रा की चोरी (वित्तमंत्री सचिन चौधरी), छोटी सादड़ी सोना कांड (राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया) जैसे काले कारनामों के साथ ही कांति भाई देसाई (मोरार जी देसाई के बेटे) का होड़साल कांड, पांडिचेरी लाइसेंस कांड तथा बेहद चर्चित ‘मारुति कांड’ जिसके कारण श्रीमती इन्दिरा गांधी को संसद से सजा मिली वगैरह….. मधु जी के कारण प्रकाश में आए थे। सरकारी ग़लत कामों या भ्रष्टाचार के मामलों में वे किसी को बख्श्ते नहीं थे। संसद में जब मधु जी प्रवेश करते थे तो सब मंत्री तथा वरिष्ठ अधिकारी डरते थे।
जो इंसान पूरी व्यवस्था मंत्री-प्रधानमंत्री, बड़े-बडे़ सरकारी ओहदेदार, ब्यूरोक्रेट्स, औद्योगिक घरानों, पूंजीपतियों को भयभीत कर रहा था उसका निजी जीवन कैसा था? आज के समय में उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
चार बार के लोकसभा सदस्य रहे मधु लिमये के घर में ‘कूलर’, एयरकंडीशन, फ्रिज, कार जैसी चीजे़ं तो थी नहीं, फर्नीचर के नाम पर, बेंत वाला मामूली सोफा व कुर्सियां विराजमान थीं। घड़े का पानी खुद भी पीते और आनेवालों की प्यास भी उसी घड़े के पानी से बुझती।

उनकी प्यास बुझाने की चाहत क्या थी, उन्हीं के शब्दों में-

“शेक्सपीयर की सभी रचनाओं, महाभारत और ग्रीक दुखान्त रचनाओं के साथ मुझे एकान्त आजीवन कारावास भुगतने में ख़ुशी होगी और अगर जीवन के अंत तक मुझे यह अवसर नहीं मिला तो संत ज्ञानेश्वर की रचनाओं को पढ़ने की मेरी प्यास अतृप्त रहेगी।”

बर्तानिया हुकूमत तथा पुर्तगाली गुलामी से हिंदुस्तान को आजादी दिलाने के लिए तो मधु जी ने लंबा कारावास भोगा ही था, परंतु आजाद हिंदुस्तान में भी अन्याय, गैर-बराबरी तथा नागरिक आजादी के खात्मे के विरुद्ध लगातार संघर्ष किया।
1958 में हिसार (हरियाणा), 1968 में मुंगेर तथा 1970 में बनारस में उनकी गिरफ्तारी हुई, 1972 में इलाहाबाद, 1975 में आपातकाल में मध्य प्रदेश में भी वे गिरफ्तार हुए।
मधु जी अदालत में अपने केस तो खुद ही लड़ते थे तथा जेल में निर्दोष सताए हुए नागरिक आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के केस की भी हैवियसकार्पस के माध्यम से पैरवी करते थे।
मुझे भी मधु जी के साथ जेल काटने का मौका मिला है। मई 1974 में मधु जी सुप्रीम कोर्ट में अपना केस लड़ने के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल लाए गए थे। जॉर्ज फर्नांडीज भी रेल हड़ताल के कारण बंदी थे। दिल्ली के दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनिरिंग, कश्मीरी गेट के छात्र आंदोलन के सिलसिले में मैं भी तिहाड़ में बंदी था।

मधु जी के द्वारा नागरिक आजादी के लिए लड़ने का जज्बा मैंने तिहाड़ जेल में देखा। हमारे वार्ड में तीन कैदी– रामसिंह, रामचंद, ललित कुमार झाडू लगाने के लिए आए थे। मधु जी ने उऩसे पूछा कि तुमने क्या अपराध किया है। उस समय फौजदारी कानून की 55/109 या 151/107 धाराओं के अंतर्गत पुलिस किसी भी सामान्य व्यक्ति को इस आधार पर गिरफ्तार कर सकतीफ थी कि उसके पास कोई वैध आजीविका साधन नहीं है, उसकी बुरी नजर कार चुराने की थी। आवारागर्दी के नाम पर उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया। मजिस्ट्रेट ने एक साल की कैद की सजा देकर जेल भेज दिया। उनकी जमानत करवाने वाला कोई नहीं था। मधु जी ने रामसिंह और ललित कुमार के दोस्त के नाते एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय को भेजी। इस नृशंस दुनिया में उन बेचारे असहाय लड़कों का दूसरा कौन दोस्त हो सकता है? सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्टर पर मुझे पता चलता है कि जल्दी ही इस याचिका पर सुनवाई होगी।

मधु जी लिखते हैं कि हॉल में ही विधि मंडल की जेल संबंधी समिति की जाँच रपट पेश हुई है। उसके अनुसार बिहार की गया जेल में 6 साल से एक बंदी को रखा गया था, न उस पर मुकदमा दायर किया गया था, न उसको जमानत पर रिहा किया गया था। कभी उसको मजिस्ट्रेट के सामने खड़ा किया गया था, पुलिस उसके खिलाफ जारी किया गया वारंट ले जाती है। मजिस्ट्रेट उस पर आगे की तारीख लिखता है और दस्तखत करता है। उसके आधार पर जेल के अधिकारी उसे जेल में बंद रखते हैं। यहां स्वामी और महात्मा अध्यात्म की चिंता नहीं करते। संपत्ति के अधिकार की रक्षा कैसे करें इसकी चिंता करने में वे व्यस्त रहते हैं। मनचाही फीस लेकर बड़े-बड़े वकील संपत्ति संबंधी मुकदमों में विवाद करते समय स्वतंत्रता तथा जनतंत्र के महत्त्व का बखान करते हैं। उसी समय जेल की चहारदीवारों के अंदर रामसिंह, ललित कुमार और रामचंद्र अपने फूटे नसीब को दोष देते हुए आंसू बहाते हैं और जैसे-तैसे समय बिताते हैं।
मधु जी कितने संवेदनशील थे उन्होंने लिखा “ऐसे अन्याय का प्रतिकार करने का दूसरा ढंग अहिंसा के पुजारियों को, गांधी और लोहिया के शिष्यों को मालूम है, क्या वह मालूम नहीं होगा तो अधिकारों की रक्षा के बारे में बकबक करना बंद होना चाहिए। हर जेल यात्रा के बाद रिहाई के वक्त मैं ज्यादा दुखी होकर जेल से बाहर आता हूं। बहुत समय से मेरी यह हालत हो रही है।”
इसी तरह मेरे केस में भी मधु जी ने 31 मार्च, 1984 को सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हैवियस कार्पस याचिका भेजी।
केस इस प्रकार था कि 2 फरवरी, 1978 को ईरान का शाह भारत के दौरे पर दिल्ली आया हुआ था। उनके खिलाफ दिल्ली, जे.एन.यू. के छात्रों ने प्रदर्शन किया था, ईरान का शाह निरंकुश तानाशाह था। 16 ईरानी छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया उनकी जमानत करवाने वाला हिंदुस्तान में कोई नहीं था। अगर उऩकी सूची बन जाती और वापस ईरान भेज दिए जाते, तो शाह का अमानुषिक अत्याचारी विभाग उन्हें हवाई अड्डे पर ही गोली मारकर हत्या कर सकता था। कानून की धारा 110/111 तथा 112/117 में गिरफ्तार 16 ईरानी छात्रों की जमानत मैंने ले ली। मैं दिल्ली विधानसभा का सदस्य तथा मुख्य सचेतक था। ईरान में तख्ता पलट जाने पर वो छात्र वापस ईरान चले गए परंतु केस चलता रहा। 1980 में जज ने जमानती के रूप में जुर्माना न भरने के आरोप में शुरू में आठ साल की सजा मौखिक रूप से मुझे अदालत में सुनाई, परंतु जब मैंने कहा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाला तथा सिद्धांततः जुर्माना न भरने पर तथा मेरा केस बी.एम. तारकुंडे, आर.के.गर्ग, प्राणनाथ लेखी बिना फीस के लड़ेंगे तो जज ने डर के मारे 6 महीने की सजा देकर तिहाड़ जेल भिजवा दिया। मधु जी को सायंकाल पता चला, उनकी एक आंख पर पट्टी बंधी हुई थी, उन्होंने तभी हाथ से हैवियस कार्पस तैयार कर रात्रि 9 बजे भारत के मुख्य न्यायधीश यशवंत राव चंद्रचूड़ के निवास स्थान पर मशहूर सुप्रीम कोर्ट की वकील नित्या रामकृष्णा के हाथों उनके घर पर भिजवा दी। मुख्य न्यायाधीश ने मधु जी के कानूनी नुक्तों को देखकर अगले दिन के लिए केस लगा दिया। अगले दिन मुख्य न्यायाधीश यशवंत राव चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति आर.एस. पाठक, न्यायमूर्ति वी. खालिद की पीठ के सामने मेरे केस की सुनवाई हुई। मधु जी ने सुप्रीम कोर्ट में अपने मित्र की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों की रक्षा पर बहस की। मुख्य न्यायधीश का चैंबर वकीलों से भरा था। मधु लिमये के तर्कों को सुनकर कोर्ट में सन्नाटा छा गया। हालांकि कोर्ट के आदेश से मेरी रिहाई हो गई, परंतु मधु जी इतने से संतुष्ट नहीं थे।
एक अन्य मामला बागपत के माया त्यागी हत्याकांड से जुड़ा था। जून 1980 में वहां के एक नृशंस थानेदार ने तीन निर्दोष लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस दरोगा का उस इलाके में आतंक था। मधु जी लोक दल के महामंत्री तथा चौ. चरणसिंह अध्यक्ष थे, वह चौ. चरणसिंह के प्रभाव वाला इलाका था। मधु जी को पता चला। मधु जी के नेतृत्व में वहां आंदोलन शुरू हो गया, प्रदर्शन में मधु जी के साथ मैं भी गिरफ्तार हो गया। गिरफ्तार करके हमको मेरठ जेल में बंद कर दिया गया।

जेल में मधु जी से एक सीख मिली। सायंकाल जेल कपांउड में सत्याग्रहियों की सभा होती थी। मधु जी ने मुझसे पूछा कि कितने लोग हैं, अहाता दूर तक भरा था, मेरे मुंह से हजारों लोग निकल गया। मधुजी ने कहा, गिरफ्तार कितने लोग हुए थे। मुझे अपनी गलती का एकदम अहसास हो गया। तब मधु जी ने हँसते हुए कहा कि तुम समाजवादियों की यह फितरत है कि विरोधियों की भीड़ की गिनती में तुम दो बिंदी घटा देते हो, और अपनी गिनती में एक बिंदी बढ़ा देते हो।

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