चरण सिंह
गैर कांग्रेसवाद का नारा देने वाले डॉ. लोहिया के अनुयाई तो उनके नारे को आगे न बढ़ा सके पर बीजेपी जरूर उनके नारे पर काम करती रही। कहना गलत न होगा कि कभी आरएसएस के प्रचारक रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नारे को चरितार्थ कर रहे हैं।
दरअसल जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस को पूरी तरह से समेट कर रख दिया है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पीएम मोदी अब कांग्रेस के सफाये के लिए पूरी तरह से जुट गए हैं। कांग्रेस के काफी नेता पार्टी छोड़कर घर बैठ चुके हैं तो काफी बीजेपी में शामिल हो गये हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। कपिल सिब्बल समाजवादी पार्टी के सहयोग से राज्य सभा में हैं। पार्टी टूटने और कांग्रेसियों का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला जारी है। कहा जा रहा है कि अवैध ढंग से कमाई संपत्ति को बचाने के लिए कांग्रेस के नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं।
महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के बाद अब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की बारी है। कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के साथ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। बीजेपी की रणनीति है कि किसी भी तरह से इंडिया गठबंधन मूर्त रूप न ले पाए। क्षेत्रीय दल उससे इंडिया गठबंधन से चुनाव न लड़ पाएं। यही वजह रही कि बिहार में जदयू तो उत्तर प्रदेश में रालोद को एनडीए में शामिल कर लिया गया।
उधर पश्चिमी बंगाल में टीएमसी, पंजाब और दिल्ली में आप अलग अलग चुनाव लड़ने की बात करने लगी। उत्तर प्रदेश में बसपा को भी अलग चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया। आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी के भी एनडीए में शामिल होने की बात सामने आ रही है।
दरअसल महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस सोशलिस्ट से जुड़े नेताओं से कह दिया कि या तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएं नहीं तो अपनी अलग पार्टी बना लें। उस समय डॉ. राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव की अगुआई में सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया। उस समय डॉ. लोहिया ने पंडित नेहरू पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाते हुए गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था।
यह वह दौर था कि समाजवादियों के साथ जनसंघ के नेताओं और वामपंथी कांग्रेस के खिलाफ थे। लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे को बल मिला 1970 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ छात्र आंदोलन से शुरू हुआ था तो उसने उग्र रूप ले लिया। आंदोलन को अहिंसात्मक करने की बात करते हुए लोक नायक जयप्रकाश ने देश में एक बड़ा आंदोलन किया है। यह ऐसा आंदोलन था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे।
देश में ईमरजेंसी लगी। ईमरजेंसी में न जाने कितने पत्रकार, साहित्यकार, नेता, छात्र जेल में ढूंस दिये गये। कितने लोग तो डेढ़ महीने तक जेल में बंद रहे। इस आंदोलन का असर यह हुआ कि 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी जीती और मोरारजी देसाई की सरकार बनी। दरअसल देश में जितनी भी विपक्षी पार्टियां थी, उनका जनता पार्टी में विलय कर लिया गया था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री तो चौधरी चरण सिंह गृहमंत्री बनाये गये थे।
चौधरी चरण सिंह ने उस समय पहली और आखिरी गलती की थी। दरअसल तमाम समझाने के बावजूद चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करा दिया था। इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले राजनारायण सिंह ने संजय गांधी की बातों में आकर मोरारजी देसाई से नाराज चौधरी चरण सिंह के गुट ने कांग्रेस के साथ मिलकर चौधरी चरण सिंह की सरकार बनवा दी थी। 1979 चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन गये। चौधरी चरण सिंह यह पहली और आखिरी गलती थी कि जिन इंदिरा गांधी को उन्होंने गिरफ्तार कराया था, उन्हीं इंदिरा गांधी की बातों में आकर उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। वही हुआ जिसका डर था। इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण पर कांग्रेसियों पर दर्ज हुए मुकदमों को वापस लेने का दबाव चौधरी चरण सिंह पर बनाना शुरू कर दिया। चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के दबाव में न आये और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति से मध्यावधि चुनाव की अनुशंसा कर दी। जब चुनाव हुए तो जनता पार्टी के कई टुकड़े हो गये थे। जनसंघ से निकले नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया गया था। मध्य वति चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और इंदिरा गांधी ने सरकार बनाई। दरअसल चौधरी चरण सिंह की सोच ही थी कि उनके काम को देखते हुए लोग राष्ट्रीय लोकदल को बढ़चढ़कर वोट देंगे पर ऐसा हो न सका।
चौधरी चरण सिंह के बाद चाहे मुलायम सिंह यादव हों, लालू प्रसाद यादव हों, राम विलास पासवान हों, नीतीश कुमार होंे सभी नेता किसी न किसी रूप में कांग्रेस से जुड़े रहे। इनमें से कई नेता कांग्रेस राज में मंत्री भी रहे। मतलब देश के समाजवादी डॉ. लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे से भटक गये थे। १९८९ में वीपी सिंह की अगुआई में समाजवादियों की सरकार बनी। वीपी सिंह प्रधानमंत्री तो चौधरी देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने। मुफ्ती मोहम्मद गृहमंत्री बने। यह वह समय था जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश तो लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।
वीपी सिंह ने चौधरी देवीलाल को डाउन करने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू कर दिया। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होते ही आरक्षण विरोधी आग देशभर में फैल गई। आरक्षण विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए तत्कालीन भाजपा के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम मंदिर निर्माण यात्रा निकालनी शुरू कर दी। यात्रा के बिहार में घुसने ही लालू प्रसाद यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवा लिया। आडवाणी को गिरफ्तार करना था कि देश में राम मंदिर निर्माण को लेकर हिन्दुत्व की लहर दौड़ गई। यही वह समय था जब भाजपा का देश में उभार हुआ था।
बात डॉ. लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे की करें तो न केवल 1991 में मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस के सहयोग से अपनी सरकार बचाई थी बल्कि कांग्रेस के सहयोग से 1996 में तीसरे मोर्चे की सरकार भी बनी। मतलब समाजवादी होने का दावा करने वाले नेता सत्ता के लिए लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे से भटकने लगे।
वजह कुछ भी रही हो पर भाजपा ने कभी सत्ता के लिए कांग्रेस के साथ समझौता नहीं किया। यही वजह है कि बीजेपी के नेता राजनाथ सिंह ने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में अपने को असली समाजवादी तक कह दिया था। आज की तारीख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी समाजवादियों और कांग्रेसियों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए विपक्ष को समेटने में लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां वंशवाद पर हमला बोलते हुए कांग्रेस से राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव, राजद से तेजस्वी यादव शिवसेना से उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य ठाकरे, एनसीपी चीफ शरद यादव की बेटी सुप्रिया सुले, एम.के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन को लेकर क्षेत्रीय दलों पर हमला बोला है। वह बात दूसरी है कि रालोद मुखिया जयंत चौधरी को उन्होंने एनडीए में शामिल कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी तरह से कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं। मतलब वजह कोई भी हो पर प्रधानमंत्री जाने अनजाने में डॉ. लोहिया के गैर कांग्रेसवाद नारे पर काम कर रहे हैं। भाजपाई तो कांग्रेस मुक्त भारत की भी बात करने लगे हैं।