Labour Day : 1 मई के दिन विश्व भर में मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसे हम मई डे या लेबर डे भी कहते हैं। कई देशों में आज के दिन छुट्टी मनाई जाती हैं। मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर साल एक मई का दिन उनको समर्पित होता है। मजदूर दिवस का दिन ना केवल श्रमिकों को सम्मान देने के लिए होता है बल्कि इस दिन मजदूरों के हक के प्रति आवाज भी उठाई जाती है।
ये आम बात है कि हम मजदूर दिवस (Labour Day) में हम जगह- जगह जुलूस और रैली देखना है। 1 मई 1986 से लगातार आज तक मजदूर दिवस मनाया जाता है।
चलिए जानते हैं कि यह 1 मई को ही क्यों मनाया जाता है Labour Day –
19वीं सदी में अमेरिका में मजदूरों ने की इसकी शुरुआत की। अमेरिका के मजदूर अपने शोषण से परेशान थे। उन्हें 15-15 घंटे काम करना होता था जिसके विरोध में मजदूर सड़कों पर आ गए थे और वो अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे। 1 मई 1886 को अमेरिका में आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
आंदोलन के बीच हुए एक धमाके के कारण पुलिस को आंदोलन उग्र होता दिखा जिसके कारण पुलिस ने मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी और कई मजदूरों की जान चली गई। वहीं 100 से ज्यादा श्रमिक घायल हो गए। मजदूरों के तरफ से इसे मालिकों की साजिश बताया गया। बस उसी दिन से शिकागो में 1 मई को मजदूर दिवस (Labour Day) मनाया जाता है।
भारत में 1 मई 1923 को चेन्नई से मजदूर दिवस (Labour Day) मनाने की शुरुआत की गई। लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में ये फैसला किया गया। इस बैठक को कई सारे संगठन और सोशल पार्टी का समर्थन मिला। जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों और शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। इसका नेतृत्व कर रहे थे वामपंथी।
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भारत में इस समय महिलाओं से ज्यादा महिला है इसके बाद भी भारत में रोजगार के मामलों में भारत में महिलाएं, पुरुषों से काफी पीछे नजर आती है। भारत के विकास में जरूरी है कि उसकी 50 फीसदी जनसंख्या किसी भी प्रकार से भारत के विकास में योगदान नहीं दे पा रहे हैं। जबकि भारत की एक आम महिला हर दिन के 4 घंटे रसोई में बिता देते है जिससे उसे कोई श्रम नही मिलता।
अगर आप डेटा की बात करें तो 2019 से 2021 के बीच महिलाओं की नौकरी में आवेदन करने की संख्या लगातार कम होती दिखी है इसके अलावा। 2017 से 2022 के बीच 2 करोड़ से अधिक महिलाओं ने अपनी नौकरी छोड़ दी है। ये आंकड़े तब सामने आ रहे जब भारत हर जगह अपने शौर्य के परचम लहरा रहा।
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अक्सर हम मजदूर दिवस (Labour Day) पर बात करते हुए इसके 50 फीसदी जनसंख्या की बात करते ही नही ये जरूरी है कि भारत में महिलाएं आगे बढ़कर पुरुषों के साथ कन्धा मिलाकर उनके साथ काम करें। मजदूर दिवस पर ये बात बार-बार सामने आती है कि हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम करना मानक है 48 घंटे से ज्यादा काम करना अमानवीय और अत्याचार से कम नही लेकिन आप अपने आसपास देख सकते है हफ्ते के 60 घंटे काम करना आज की तारीख में आम बात है।
श्रम मंत्री जी को इस बात पर ध्यान देना चाहिए । मजदूरों को अपने अधिकारों को लेकर जागरूक रहना चाहिए। आदर्श स्थित में 8 घंटे काम को समय, 8 घंटे परिवार को समय इसके बाद 8 घंटे की नींद हर मजदूर इंसान के लिए आवश्यक हैं। समाज के अन्य तबको को भी ध्यान देना चाहिए का मजदूरों के अधिकारों के साथ खड़े होना चाहिए।