दरअसल विपक्षी दलों के गठबंधन ने वर्चुअल मीटिंग में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन का चेयरपर्सन चुन लिया है। इंडिया ब्लॉक की इस पांचवीं मीटिंग में 10 पार्टियों के नेता शामिल हुए। इसमें शामिल सभी दलों ने खरगे को इंडिया ब्लॉक का चीफ बनाए जाने पर सहमति दे दी है। हालांकि इसका औपचारिक ऐलान गठबंधन के बाकी नेताओं से चर्चा के बाद किया जाएगा। इस वर्चुअल मीटिंग में न तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल हुई थीं और न ही उनकी पार्टी टीएमसी से कोई और प्रतिनिधि शामिल हुआ। इसी तरह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे भी शामिल नहीं हुए। बैठक से पहले ये अटकलें थीं कि इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाए जाने का फैसला हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिर खरगे को इंडिया गठबंधन का चेयरपर्सन बनाए जाने का मतलब क्या है?
खरगे का I.N.D.I.A. चीफ बनने का मतलब नीतीश कुमार का एनडीए में जाना तय
इंडिया गठबंधन की वर्चुअल बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन की मुखिया चुन लिया गया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि विपक्षी दलों को जोड़कर इंडिया गठबंधन का स्वरूप देने वाले नीतीश कुमार का अब क्या होगा ? ऐसे में यह कहा जा सकता है कि अब नीतीश कुमार एनडीए में जा सकते हैं। दरअसल पीएम मोदी की चम्पारण की रैली रद्द करने के पीछे नीतीश कुमार को एनडीए में लेने की रणनीति है।
दरअसल कुछ मीडिया घराने बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच मध्यस्थता का काम कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार अयोध्या में राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाएंगे। वहां पर ही उनकी पीएम मोदी से मुलाक़ात होगी। जहां पर भविष्य की रणनीति बन सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि राम मंदिर में राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद पीएम मोदी चम्पारण में रैली करेंगे और बिहार को मोती सौगात देंगे। इसी सौगात के माध्यम से नीतीश कुमार बीजेपी के पक्ष और इंडिया गठबंधन के विरोध में माहौल बनाएंगे। दरअसल गत लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए से चुनाव लड़कर 16 सीटें जीते थे। ये सीटें जदयू ने मोदी के चेहरे पर जीती थी। इस बार भी माहौल बीजेपी के पक्ष में है। राम मंदिर निर्माण की वजह से देश के हिन्दू वोटबैंक बीजेपी की ओर जा रहा है। ऐसे में राजनीति में नफे और नुकसान का गणित लगाने वाले नीतीश कुमार बीजेपी की साथ जाना जायेंगे।
मल्लिकार्जुन खरगे को इंडिया ब्लॉक का चीफ बनाने का कहीं ये मतलब तो नहीं कि वह विपक्ष की तरफ से लोकसभा चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार होंगे? दरअसल पिछली मीटिंग में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने खरगे को गठबंधन की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने का सुझाव दिया था। उनका कहना था कि दलित समुदाय से आने वाले खरगे को पीएम फेस बनाने से चुनाव में विपक्ष को फायदा होगा। तो क्या खरगे को विपक्ष की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार माना जा सकता है? इसका जवाब है- नहीं। गठबंधन का चेयरपर्सन होना अलग बात है, पीएम पद के लिए दावेदार होना अलग। यूपीए के दौरान सोनिया गांधी गठबंधन की चेयरपर्सन थीं लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। इसलिए गठबंधन का चेयरपर्सन बनाए जाने को पीएम पद की उम्मीदवारी के तौर पर नहीं देखा जा सकता।
इंडिया ब्लॉक का संयोजक या मुखिया कौन होगा, ये तय करना एक बड़ी चुनौती थी। विपक्ष इस बड़ी चुनौती से पार पा लिया है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तो सीट शेयरिंग की है। लोकसभा चुनाव में बमुश्किल 3-4 महीने बचे हैं लेकिन विपक्षी गठबंधन अब तक यही नहीं तय कर पाया है कि किस राज्य में कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी। अभी यह तय हो जाए तो आगे ये तय करना भी चुनौती होगी कि किन-किन सीटों पर कौन पार्टी लड़ेगी।
हालांकि, इसे लेकर बातचीत चल रही है। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभाव है इसलिए वह सीट शेयरिंग को लेकर क्षेत्रीय दलों के साथ अलग-अलग बैठकें कर रही है। शनिवार की बैठक में नीतीश कुमार ने भी सीट शेयरिंग को सबसे बड़ी चुनौती बताया। ममता बनर्जी के बैठक में शामिल नहीं होने को भी सीट शेयरिंग की जटिलता से जोड़कर देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, यूपी, पंजाब, दिल्ली जैसे राज्यों में सीट शेयरिंग फॉर्म्युला तय करना विपक्ष के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है। ये मामला इतना जटिल है कि अगर इसे सही से हल नहीं किया गया तो चुनाव से पहले हो सकता है कि कुछ पार्टियों की राह गठबंधन से अलग भी हो जाए।
मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन का चेयरपर्सन बनाए जाने के बाद अब गठबंधन का कोई संयोजक भी चुना जाएगा, इसकी संभावना कम है। वैसे चेयरपर्सन और कन्वेनर यानी संयोजक ये दोनों पद एक साथ भी रह सकते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में गठबंधनों पर नजर डालें तो इसकी संभावना बहुत कम है। कांग्रेस की अगुआई में इससे पहले जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) था, उसकी चेयरपर्सन सोनिया गांधी थीं। यूपीए में कोई संयोजक नहीं था।
दूसरी तरफ, अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से बीजेपी की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में संयोजक का पद रहा है, चेयरपर्सन का नहीं। जॉर्ज फर्नांडीज, शरद यादव और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता एनडीए के संयोजक रह चुके हैं। फिलहाल उसमें संयोजक पद खाली है। अब खरगे को चेयरपर्सन बनाए जाने के बाद नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाए जाने को लेकर चलने वालीं अटकलों पर विराम लग गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मीटिंग के दौरान सोनिया गांधी समेत कुछ बड़े नेताओं ने नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने की पेशकश की लेकिन नीतीश ने उसे ठुकरा दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए नीतीश कुमार ने ही सबसे पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया। असल में वही इंडिया गठबंधन के शिल्पकार हैं। इसलिए समय-समय पर उन्हें गठबंधन का संयोजक बनाए जाने की अटकलें लगती रहती थीं। ये भी अटकलें लगती थीं कि इसमें देरी की वजह से नीतीश कुमार नाराज हैं। अब गठबंधन की पांचवीं बैठक से साफ हो गया कि वह संयोजक नहीं बनने वाले तो क्या इससे बिहार के सीएम वाकई नाराज हैं? कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि मीटिंग के दौरान नीतीश कुमार ने ही कहा कि कांग्रेस से ही किसी नेता को गठबंधन का चेयरपर्सन बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी पद में दिलचस्पी नहीं है, वह अपने लिए कोई पद नहीं चाहते हैं। वह सिर्फ ये चाहते हैं कि गठबंधन मजबूत हो। नीतीश कुमार ने कहा कि एकजुटता जरूरी है।