सुनील पांडेय
वैसे तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संघर्ष के अनगिनत किस्से हैं पर सम्पूर्ण क्रांति के नारे के साथ जब उन्होंने 70 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थी। इसी जेपी आंदोलन के बल ही देश में बड़ा बदलाव हुआ था। देश में समाजवादियों की सरकार बनी थी।
बात 5 जून 1974 को शाम की है जब पटना के गांधी मैदान में करीब 5 लाख लोगों की अति उत्साही भीड़ थी। भरी जनसभा में पहली बार ‘संपूर्ण क्रांति’ के लिए आह्वान किया गया था । लोकनायक जयप्रकाश ने पहली बार ‘संपूर्ण क्रांति’ शब्द का उच्चारण किया था। क्रांति शब्द नया नहीं था, लेकिन ‘संपूर्ण क्रांति’ नया था। गांधी परंपरा में ‘समग्र क्रांति’ का इस्तेमाल होता था।
47 साल का हुआ संपूर्ण क्रांति
पटना के गांधी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ 5 जून 974 को ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया था। उसके बाद जो लपटें उठीं, उससे पूरे देश की सियासत में एक नए युग की शुरुआत हुई। बिहार सहित पूरा देश प्रभावित हुआ। उस दौर के नेताओं के दायरे से बिहार की राजनीति आज भी बाहर नहीं निकल पाई है। राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार बीजेपी के सीनियर नेता सुशील कुमार मोदी तब आंदोलन में सक्रिय थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जेपी के आंदोलन की ही उपज हैं।
जेपी ने तब कहा था ‘संपूर्ण क्रांति’ से मेरा मतलब समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। बिहार से उठे जेपी के संपूर्ण क्रांति के नारे का असर पूरे देश में देखने को मिला। वर्तमान में बिहार से लेकर देश तक की बागडोर जेपी के आंदोलनकारियों के हाथों में है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जेपी के 1974 आंदोलन के ही उपज हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में इसका जिक्र कर चुके हैं।
सत्ता पर संपूर्ण क्रांति का छाप
नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील मोदी, शिवानंद तिवारी, नरेंद्र सिंह सहित कई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। दरअसल 1965 से 70 के दौरान दुनिया भर में, खासकर फ्रांस में नौजवानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ था। वहीं से भारत के छात्रों को प्रेरणा मिली थी। वहीं, 1973 में गुजरात में छात्रों के आंदोलन की वजह से चिमन भाई पटेल की सरकार बदल गई थी। गुजरात के आंदोलन को भी जेपी ने समर्थन दिया था।
राजनीति की नई पीढ़ी के तेजस्वी यादव और चिराग पासवान को भी उसी जमीन का सहारा लेना पड़ रहा है, जिसे जेपी ने उर्वर बनाया था। बिहार की सियासत में तीन दशक से सीधे जेपी के ध्वज वाहक ही परिवर्तन की इबारत लिख रहे हैं। सबने पटना के गांधी मैदान को अपने राजनीतिक जीवन में समाहित किया। जहां से जेपी ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था।
पटना के गांधी मैदान में बजा था बिगुल
गांधी मैदान पटना शहर के बीचोबीच है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसे पटना लॉन्स या बांकीपुर मैदान कहा जाता था। अंग्रेज यहां हवाखोरी के लिए आते थे। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत चंपारण सत्याग्रह से की थी। भारत का पहला सिविल नाफरमानी का संघर्ष शुरू करने के बाद बापू की विशाल जनसभा जनवरी 1918 में इसी गांधी मैदान में आयोजित हुई। तभी से इसका नाम गांधी मैदान पड़ा। इस क्रांति के स्मारक के तौर पर महात्मा गांधी की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है।
आजादी से पहले बांकीपुर मैदान नाम से पहचाने जाने वाले गांधी मैदान में 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम लीग की एक ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में नव गठित फॉरवर्ड ब्लॉक की पहली रैली को पटना के इसी ऐतिहासिक मैदान में किया था। कांग्रेस के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1974 में गांधी मैदान में ही संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। उनकी एक आवाज पर यहां जुटी पांच लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ ने पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ बिगुल बजने का संदेश दे दिया था। पटना के इसी गांधी मैदान में हुई जेपी की वह रैली इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो गई। बिहार और देश के कई शख्सियतों ने सियासी करियर की शुरुआत इसी गांधी मैदान से की, जहां से संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजा था।