मुस्लिम बुद्धिजीवियों को विश्वास में लेकर क्या हिन्दू राष्ट्र घोषित कराने की है आरएसएस प्रमुख की रणनीति?

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पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग समेत पांच प्रतिष्ठित मुस्लिमों से मीटिंग में हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत दिल्ली में जाकर दिल्ली में ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख इमाम डॉ. उमर अहमद इलियासी से मिलना और हिन्दू मुस्लिमों का डीएनए एक बताना क्या दर्शा रहा है ? मोहन भागवत का यह अभियान हिन्दू मुस्लिम एकता है, भाईचारा है या फिर हिन्दू राष्ट्र एजेंडे को मूर्त रूप देना ? दोनों मुलाकातों में मोहन भागवत ने जमकर मुस्लिमों के हितों की पैरवी की है।

मोहन भागवत चीफ इमाम इलियासी से मिलने के लिए दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग मस्जिद स्थित उनके कार्यालय पहुंचे थे। दरअसल आरएसएस ने हाल ही मुसलमानों से संपर्क बढ़ाया है और भागवत ने समुदाय के नेताओं के साथ कई बैठकें की हैं। इसके पहले भागवत ने कुछ मुस्लिम नेताओं से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात की है। भागवत से मिलने वाले नेताओं में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, जमीरुद्दीन शाह, सईद शेरवानी और शाहिद सिद्दिकी शामिल थे। भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री रामलाल की पहल पर हुई इस मुलाकात में भी दोनों समुदायों के बीच मतभेद को कम करने के लिए संभावित उपायों पर चर्चा की गई बताया जा रहा है।
उधर 30 अगस्त 2019 को जमीअत-उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने भी दिल्ली के झंडेवालान स्थिति संघ मुख्यालय पहुंचकर मोहन भागवत से मुलाकात की थी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार की पहल पर हुई इस मुलाकात की भी बहुत चर्चा हुई थी।

चर्चा है यह भी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत आने वाले दिनों में कश्मीर के कुछ मुस्लिम नेताओं से भी मुलाकात कर सकते हैं। इसे कश्मीर में चुनावी राजनीति की दोबारा शुरुआत के बाद घाटी में शांति बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। ये नेता कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को घाटी में दोबारा सक्रिय न होने और कश्मीरी युवाओं को नए भारत से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

मुस्लिमों को साधने की कोशिश

माना जा रहा है कि आरएसएस और भाजपा के नेता लगातार मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। भागवत मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान के पूरा नहीं होने की बात करते हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एलान कर देते हैं कि पार्टी का मिशन मुसलमानों के करीब तक पहुंचने का होना चाहिए।

कश्मीर के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा में भेजना भी संघ परिवार की मुसलमानों से करीबी बढ़ाने की इसी सोच की रणनीति का हिस्सा है। संघ और भाजपा में मुसलमानों के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? यह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी के बीच भारत की छवि बेहतर करने की कोशिश है या इसके जरिए संघ किसी बड़े बदलाव की योजना बना रहा है?

भागवत ने कहा-हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक

ऐसा नहीं है कि भाजपा और आरएसएस ने मुसलमानों के करीब पहुंचने की यह कोई पहली कोशिश की हो। दोनों ही संगठन लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते रहे हैं। भाजपा में तो इसके स्थापना काल से ही कई मुस्लिम नेता इसके सर्वोच्च नेताओं में शुमार रहे हैं। सिकंदर बख्त की लोकप्रियता आम जनता के बीच भले ही कम रही हो, लेकिन पार्टी संगठन में उनकी अहमियत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसी ही रही।

संघ ने भी अनेक मौके पर यह साफ किया है कि उसे उन मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है, जो भारत को अपनी मातृभूमि मानते हैं और यहां की संस्कृति को अपना समझते हैं। यह क्रम गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था, जो संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2018 के उस बयान में भी दिखाई पड़ा, जब उन्होंने मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान अधूरा होने की बात कही। उन्होंने भी यह बताने की कोशिश की कि हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है और दोनों ही इस देश के मूल निवासी हैं। इस देश की संस्कृति को बचाए रखना भी दोनों की ही जिम्मेदारी है।

गत दिनों मोहन भागवत के साथ हुई पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, नजीब जंग समेत पांच प्रतिष्ठित मुस्लिमों की मीटिंग में गोहत्या समेत कई मुद्दों पर हुई बातचीत हुई थी। एस वाई कुरैशी और शाहिद सिद्दीकी ने कहा था कि मोहन भागवत ने नियमित रूप से मुस्लिम समुदाय के संपर्क में बने रहने को संघ के चार वरिष्ठ पदाधिकारियों को नियुक्त किया है। एस वाई कुरैशी ने तो 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमान को भारत का ही बता दिया था।

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का यह कहना कि 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं, बल्कि यहां पर ही धर्मांतरित हुए हैं, क्या इशारा कर रहा है ? क्या यह आरएसएस का नफरत की जगह प्यार से मुस्लिमों को हिन्दू राष्ट्र के लिए तैयार करना तो नहीं है ? कहीं इस तरह से मुस्लिम प्रतिनिधियों से मिल मिल कर मोहन भागवत अपने हिन्दू राष्ट्र मुद्दे को आगे तो नहीं बढ़ा रहे हैं। वैसे भी देश में अधिकतर मुस्लिम कन्वर्ट ही हैं और अब देश में हिन्दू बड़े और मुस्लिम छोटे भाई के माहौल से ही देश और समाज का भला होता दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान में जिस तरह से गृह युद्ध के हालात हैं। ऐसे में अब मुस्लिमों का पाकिस्तान से मोह भंग हो रहा है। राणा, चौधरी मलिक सर नेम लिखने वाले मुस्लिम तो अपने को आज भी हिन्दू संस्कृति से जोड़कर दिखाई देते हैं। वैसे भी मोहन भागवत से मिलने के बाद मुस्लिम नेताओं ने मोहन भागवत की तारीफ की है। हां हिन्दू मुस्लिम भाईचारे और एकता में राजनीति और वोटबैंक घुसना मामले को बिगाड़ने वाला है।

दरअसल पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व एएमयू कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह, आरएलडी नेता शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के चलते संघ प्रमुख मोहन भागवत से मीटिंग की है। मीटिंग में सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल भी शामिल थे।

भागवत से मीटिंग करने वाले एसवाई कुरैशी और पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग के अनुसार मोहन भागवत ने इन लोगों से कहा है कि जहां हिंदू मूर्तियों की पूजा करते हैं, वहीं भारतीय मुसलमान भी काबरा (कब्र) में प्रार्थना करते हैं। देश की प्रगति के लिए सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है और हम सभी सहमत हैं। इन लोगों का कहना है कि ”“बातचीत बहुत सौहार्दपूर्ण रही।
दरअसल भले ही दिखावे के लिए हो पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपना रुख बदला है। भले ही बीजेपी हिन्दू मुस्लिम कर रही हो पर आरएसएस अब हिन्दू मुस्लिम एजेंडे से बचता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि मोहन भागवत कई बार मुस्लिमों के प्रति हमदर्दी बरतने की अपील कर चुके हैं। गत दिनों जब वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद का मामला उठा तो मोहन भागवत ने हिन्दू संगठनों को हर मंदिर में शिवलिंग न ढूंढने की सलाह दी थी।
दरअसल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ एक बैठक कर महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की है। बैठक में गोहत्या से लेकर अपमानजनक संदर्भों के उपयोग तक के मुद्दों पर चर्चा हुई। इस दौरान दोनों पक्षों ने दोनों समुदायों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बातचीत जारी रखने के लिए समय-समय पर मिलने का संकल्प भी लिया। दरअसल आरएसएस के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और हिन्दू राष्ट्र के मुद्दे पर मुस्लिम संगठन आरएसएस से नाराज रहे हैं। बाबरी मस्जिद और राम मंदिर मामले को लेकर दोनों पक्षों में ज्यादा टकराव हो गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो रहा है तो मुस्लिम संगठन आरएसएस के संपर्क में आ रहे हैं।

हिन्दू मुस्लिम एकता

मोहन भागवत मामले को लेकर कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ आरएसएस प्रमुख की बैठक का समय आधा घंटा निर्धारित था, लेकिन ये बैठक 75 मिनट तक चली। यह बैठक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय उदासीन आश्रम में एक महीने पहले हुई। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत के अलावा सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व एएमयू कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह, आरएलडी नेता शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी शामिल थे।

एस वाई कुरैशी और शाहिद सिद्दीकी ने एक राष्ट्रीय अख़बार से बात करते हुए कहा, “बातचीत बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। बैठक के बाद आरएसएस प्रमुख भागवत ने नियमित रूप से मुस्लिम समुदाय के संपर्क में रहने के लिए चार वरिष्ठ पदाधिकारियों को नियुक्त किया। अपनी तरफ से हम मुस्लिम बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों से संपर्क कर रहे हैं ताकि आरएसएस के साथ इस संवाद को जारी रखा जा सके।”
एस वाई कुरैशी ने कहा, “उन्होंने (मोहन भागवत) हमें बताया कि लोग गोहत्या और काफिर (गैर-मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले) जैसे शब्दों से नाखुश थे। जवाब में हमने कहा कि हमें भी इससे सरोकार है और अगर कोई गोहत्या में शामिल है तो उसे कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए। हमने उनसे कहा कि अरबी में काफिर का इस्तेमाल अविश्वासियों के लिए किया जाता है और यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे सुलझाया नहीं जा सकता। हमने उनसे कहा कि हमें भी दुख होता है जब किसी भारतीय मुसलमान को पाकिस्तानी या जेहादी कहा जाता है।”

रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने कहा, “नुपुर शर्मा की घटना के समय उन्होंने सबसे पहले आरएसएस से मिलने की मांग की थी। हमें लगा कि इस घटना के कारण मुस्लिम समुदाय के भीतर भी एक जहरीला माहौल बना दिया गया है। हालांकि जब तक हमें मोहन भागवत से मिलने की तारीख मिली, तब तक नूपुर शर्मा की घटना को एक महीना हो चुका था और विवाद काफी कम हो चुका है। इसलिए हमने दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक वैमनस्य के मामलों पर चर्चा की।”

हालांकि आरएसएस के प्रचारक सुनील आंबेकर ने बैठक पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया लेकिन संघ के एक सूत्र ने बताया कि संघ प्रमुख मोहन भागवत से इस तरह की अपॉइंटमेंट जो भी मांगता है, उसे समय मिलता है।

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