नई दिल्ली। इसी साल अक्टूबर नवम्बर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी दलों ने चुनावी बिसात बिछा दी है। इन चुनाव में वैसे तो हर दल और हर नेता की परीक्षा है पर असली परीक्षा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की है। उनका प्रभाव कई कारकों पर निर्भर करेगा। नीतीश कुमार, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं, अपनी रणनीतिक चालबाजी और विकास कार्यों के लिए जाने जाते हैं। सरकार किस भी गठबंधन की रही पर 20 साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं। हालांकि, उनकी लोकप्रियता और प्रभाव में हाल के वर्षों में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं।
नीतीश कुमार के पक्ष में कारक
विकास का ट्रैक रिकॉर्ड: नीतीश ने बिहार में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम किया है। उनकी साइकिल योजना, कन्या विवाह योजना और सात निश्चय जैसे कार्यक्रमों ने विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के बीच समर्थन बनाए रखा है।
एनडीए गठबंधन की ताकत: नीतीश की पार्टी जदयू, एनडीए के साथ गठबंधन में है, और 2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने 16 में से 12 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई। यह प्रदर्शन उनकी प्रासंगिकता को दर्शाता है।
जातीय समीकरणों पर पकड़: नीतीश का अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलित समुदायों में मजबूत आधार है। उनकी जाति आधारित जनगणना और आरक्षण बढ़ाने की पहल ने उनके कोर वोटबैंक को मजबूत किया है।
राजनीतिक चालबाजी: नीतीश की रणनीतिक समझ और गठबंधन बदलने की क्षमता उन्हें बिहार की सियासत में किंगमेकर बनाती है। हाल के महीनों में उन्होंने एनडीए के साथ एकजुटता दिखाकर अपनी स्थिति मजबूत की है।
चुनौतियां
लोकप्रियता में कमी: हाल के सर्वे (जैसे सी वोटर) में नीतीश की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गई है, जहां तेजस्वी यादव (36%) और प्रशांत किशोर (17%) उनसे आगे निकल गए, जबकि नीतीश को केवल 15% लोगों ने पसंद किया।
एंटी-इनकमबेंसी: 2005 से सत्ता में होने के कारण नीतीश को 20 साल की सत्ता-विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है।
गठबंधन में तनाव: बीजेपी के साथ गठबंधन में नेतृत्व को लेकर खींचतान की खबरें हैं। कुछ बीजेपी नेता नीतीश के बजाय अपनी सरकार चाहते हैं, और संसदीय बोर्ड की मंजूरी की शर्त ने अनिश्चितता पैदा की है।
विपक्ष का दबाव: तेजस्वी यादव और आरजेडी का महिलाओं और युवाओं पर फोकस, विशेष रूप से डायरेक्ट कैश बेनिफिट जैसे वादों के साथ, नीतीश के वोटबैंक में सेंध लगा सकता है।
पार्टी के भीतर असंतोष: जदयू के भीतर गुटबाजी और असंतोष की खबरें नीतीश के लिए चुनौती बन सकती हैं।
संभावित प्रभाव
सीटों का लक्ष्य: नीतीश ने एनडीए के लिए 220-225 सीटों का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जो 2010 के रिकॉर्ड (206 सीटें) को तोड़ने की कोशिश है। यह लक्ष्य उनकी रणनीति और आत्मविश्वास को दर्शाता है, लेकिन हाल के उपचुनावों में जदयू की हार (जैसे रूपौली) और 2020 में केवल 43 सीटें मिलना चिंता का विषय है।
क्षेत्रीय रणनीति : नीतीश ने सीमांचल जैसे क्षेत्रों में हार के बाद विशेष ध्यान देना शुरू किया है, जहां कल्याणकारी योजनाओं को तेजी से लागू करने के निर्देश दिए गए हैं।
तेजस्वी का उभार : तेजस्वी यादव की युवा अपील और आक्रामक रणनीति नीतीश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अगर विपक्ष महिला और युवा मतदाताओं को लुभाने में कामयाब रहा, तो नीतीश का जलवा कम हो सकता है।