Indian Society : आत्मीयता के संबंधों से निपटना जा सकता है हर समस्या से!

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Indian Society : परिवार की एकजुटता ही आदमी की सबसे बड़ी मजबूती, बिखरने से रोकने को लगा दें सब कुछ दांव पर

चरण सिंह राजपूत 

Indian Society : हमारे देश की पहचान अनेकता में एकता की रही है। विभिन्न संस्कृति, विभिन्न भाषा, विभिन्न क्षेत्र होने के बावजूद हम एक सूत्र में बंधे रहे हैं। देश की संस्कृति ही रही है कि दूसरे देश भी हमारे रीति-रिवाज, त्योहारों और भाईचरे का लोहा मानते रहे हैं। यह Indian Society की खासियत रही है कि हमारे देश की सबसे बड़ी खासियत परिवारों की एकजुटता मानी जाती थी। अभाव में भी मिलजुलकर हर समस्या को निपटा लेने में हमारे पूर्वज पारंगत रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि संसाधनों और आर्थिक स्तर के मामले में हम आगे बढ़े हैं पर आज की तारीख में प्यार मोहब्बत, भाईचारा और परिवारों की एकजुटता में लगातार हो रही गिरावट समस्याओं को जन्म दे रही है।

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समाज में जिस तरह से Split in Families हो रहा है। यह तनाव को बढ़ा रहा है। यह बदला हुआ माहौल ही है कि नये-नये बच्चों के आत्महत्या करने की बातें सामने आ रही हैं। यह समय बैठकर रिश्तों पर मंथन करने का है। कहीं बनावट में हम सब कुछ बर्बाद तो नहीं कर रहे हैं ऐसे में हमें अपनी संस्कृति रहन-सहन और प्यार मोहब्बत पर मंथन करना चाहिए। इसमें दो राय नहीं है कि आज के हालात में संयुक्त परिवारों का होना बहुत मुश्किल है। इसका बड़ा कारण विभिन्न रोजगारों में परिवार के सदस्य गांवों के अलावा विभिन्न शहरों में रह रहे हैं। फिर भी प्यार मोहब्बत और लगाव तो रखा जा सकता है। ऐसे क्या कारण हैं कि परिवारों के बिखराव प्यार मोहब्बत और लगाव का अभाव देखा जा रहा है। हम गरीब आदमी को कितनी भी हेय दृष्टि से देखते हों पर आज भी वह सुकून की जिंदगी बिता रहा है।

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दरअसल हमारे communication is over. संवाद से भले ही भड़ास निकले पर संबंध बिगड़ते नहीं हैं। थोड़े-थोड़े संसाधन और थोड़ी सी संपन्नता पर भी हम अपने को अपनों से अलग समझने लगते हैं। अभाव में रहने वाले व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखने लगते हैं, भले ही वह अपना कितना भी करीबी हो। उसकी भावनाओं और लगाव को उसकी जरूरत समझने लगते हैं। अपनी संपन्नता को किसी की जरूरत न पड़ना समझने लगते हैं। कहना गलत न होगा कि संसाधन और पैसों ने भले ही सपन्नता लाई है पर हम बहुत कुछ खो रहे हैं। जो लोग यह समझते हैं कि उनके परिचित और उनके रिश्तेदार तो उनको बहुत मानते हंै।

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वे यह भलीभांति समझ लें money gives birth to fake relationships. नहीं तो सम्पन्न व्यक्ति जब अभाव में आता है तो उसको बहुत करीबी दिखाने वाले भी उससे पीछा छुटाने लगते हैं। यदि समाज पर मंथन करें तो पायेंेगे कि नैतिकता, प्यार मोहब्बत, लगाव, सेवा भाव, दर्द को समझने की भावना आदमी में अभाव में ही होती है। ज्यों-ज्योें आदमी पर पैसा आता है वह भावनात्मक रूप से समाज से कटना शुरू हो जाता है उसके रिश्ते बनावती और दिखावती बनने लगते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या आदमी गरीब ही रहे। संपन्नता हासिल न करे।

दरअसल कमी सम्पन्ना और पैसों में नहीं है। कमी हममे में है। हम अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं। जो व्यक्ति अपना समय नहीं भूलता है उसके अंदर प्यार-मोहब्बत भी होती है। दूसरे की भावनाओं को भी समझता है। आज के इस दौर में सबसे अधिक Misfortune Elders हो रही है। आप समाज का सर्वे कर लें। भाईयों में या तो गरीब भाई ही मां-बाप की देखभाल कर रहा है या फिर बेटियां। अधिकतर परिवारों के मामले हंै जितने भी अधिक संपन्न बेटे उतनी ही बुजुर्गांे की दुर्गति। क्या इसे विकास कहा जा सकता है ? संपन्नता दुआ में होती है न बददुआ में।

कोशिश करो कि लोगों को दुआ लो, बददुआ नहीं। वृद्धाआश्रम में आपको संपन्न परिवारों के लोगों के ही मां-बाप मिलेंगे। क्या किसी वृद्धाआश्रम में किसी गरीब परिवार का बुजुर्ग किसी ने देखा है ? ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर इस सपन्नता और पैसे का क्या करेंगे ? यदि आज हम अपने करीबियों या फिर misfortune elders कर रहे हैं तो फिर यह दुर्गति एक दिन हमारी भी होगी। एक समय था कि अपने करीबियों को देखकर आदमी का चेहरा खिल उठता था। आज का समय ऐसा है कि मिलना-जुलना, हंसना, रोना सब दिखावती होता जा रहा है। जो व्यक्ति दिल से जिंदगी जी रहा है उसके समाज में बेवकूफ का दर्जा दिया जा रहा है। किसका नुकसान कर रहे हो ? बीमारियों को न्यौता दे रहे हो।

क्या आज के दौर में दौस्त, ननिहाल, बूआ, मौसी जैसे Importance of Relationships है ? आखिर हम जा कहां रहे हैं ? क्या अपनी इस प्रवृत्ति से तमाम Treat Diseases नहीं दे रहे हैं ? आदमी को यह समझ लेना चाहिए। जो व्यक्ति दिल का साफ होता है वह बीमार कम होता है। उसका बड़ा कारण यह होता है कि वह अपनी भड़ास निकालता रहता है। जो व्यक्ति दिखावे से मिलता है। दिखावे से बोलता है तो वह अपने अंदर विकार पालता है जो बीमारी का रूप ले लेती है । तो हम बिगाड़ किसका रहे हंै, अपना न।

मेरा अपना मानना है कि आदमी के स्वस्थ रहने के लिए आत्मीयता के रिश्ते बनाना बहुत जरूरी है। In Indian Society आत्मीयता से जो सुगून मिलता है वह नई ऊर्जा प्रदान करता है। हमें यह समझना चाहिए कि भले ही हम कितने भी संपन्न हो गये हों। कितना भी विकास हमने कर लिया हो पर खुशहाली के मामले में हम बहुत पिछड़े हुए हैं। यह गांठ बांध लें कि खुशहाली से सम्पन्नता का कोई मतलब नहीं है। खुशहाली आत्मीयता और मधुर संबंधों से आती है। जो व्यक्ति बीमार रहता हो वह अपने संबंधों को सुधार ले, स्वस्थ होने लगेगा। अपने से बड़ों को सम्मान देना, एक दूसरे की परेशानी को समझना जिस दिन से हम शुरू कर देंगे, उस दिन से हमारी जिंदगी में बहुत सुकून आने लगेगा।

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