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Indian Politics : विपक्ष की लामबंदी की कमजोर कड़ी बने शरद पवार

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प्रेस कांफ्रेंस कर जेपीसी की मांग को गलत ठहराने की क्या जरूरत थी शरद पवार को, विपक्ष की कमजोरी की फायदा उठा रही है बीजेपी

सी.एस. राजपूत

विपक्ष के कमजोर होने का बड़ा कारण यह है कि विपक्ष के अधिकतर नेता अपनी गर्दन बचाने में लगे हैं। जब भी विपक्ष की एकजुटता देखने को मिलती है तभी कोई विपक्ष के नेता ऐसा बयान जारी कर देता है कि विपक्ष कमजोर पड़ जाता है और मोदी सरकार को मजबूती मिल जाती है। कभी अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी करते हैं तो कभी ममता बनर्जी और कभी अखिलेश यादव। अब जब राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद विपक्ष की लामबंदी दिखाई दी थी तो एनसीपी मुखिया शरद पवार विपक्ष की मजबूती को कमजोर करने आ गये। जो मजबूती प्रधानमंत्री मोदी और अडानी समूह के मुखिया गौतम अडानी के संबंधों को लेकर विपक्ष की जेपीसी की मांग को लेकर हुई थी वह शरद पवार ने जेपीसी की मांग को गलत करार देकर कमजोर कर दी। बाकायदा शरद पवार ने यह बात एक प्रेस कांफ्रेंस कर कही है।

दरअसल अडानी मुद्दे पर जेपीसी जांच की मांग को गलत बताने के बाद एनसीपी चीफ शरद पवार ने शनिवार को दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस की। शरद पवार ने इस कांफ्रेंस में शरद पवार ने जेपीसी जांच पर विपक्ष की मांग को गलत ठहराया दिया। शरद पवार ने कहा कि एक जमाना ऐसा था कि जब सत्ताधारी पाटी की आलोचना करनी हाती थी तो हम टाटा बिडला का नाम लेते थे। टाटा का देश में योगदान है। आजकल अंबानी-अडानी का नाम लेते हैं। उनका देश में क्या योगदान है ? इस बारे में सोचना की आवश्यकता है। अपनी सफाई में शरद पवार ने कहा, इंटरव्यू अडानी को लेकर नहीं था वह कई और मुद्दों को लेकर था, जिसमें मुझसे अडानी को लेकर भी सवाल पूछे गये, जिनके मैंने जवाब दिये। दरअसल शरद पवार खुस एक उद्योगपति हैं। स्वभाविक है कि वह उद्योगपतियों की ही पैरवी करेंगे। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि धंधेबाज लोग राजनीति में स्थापित हो गये हैं। ये लोग जनता के लिए नहीं बल्कि अपने धंधों के लिए राजनीति कर रहे हंै।

जेपीसी की मांग से क्यों किया इनकार ?

प्रश्न उठता है कि जब विपक्ष सत्तापक्ष को घेरने में लगा था तो आखिरकार शरद पवार को प्रेस कांफ्रेंस कर यह जेपीसी की मांग को गलत ठहराने की क्या जरूरत थी? दरअसल शरद पवार ने कहा कि उन्होंने विपक्षी दलों के साथ बैठक में भी यह बात कही थी कि जेपीसी में २१ में से १५ सदस्य सत्ताधारी पार्टी की होंगे। इसलिए मैंने कहा कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्र टीम करे। उन्होंने कहा कि जहां तक जांच के संबंध में मेरी राय का सवाल है तो मैंने यही कहा कि जेपीसी की जांच की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि जेपीसी की कोई भी जांच प्रभावी तरीके से नहीं हो सकती क्योंकि जब जेपीसी बनेगी उसमें भाजपा का बहुमत होगा अन्य दलों के अधिकतर एक या दो सदस्यों का ही प्रतिनिधित्व मिल पाएगा और ऐसे में वही निेष्कर्ष निकाला जाएगा जो सत्ता पक्ष को चाहिए होगा।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार शरद पवार को यह कांफ्रेंस करने की करने की क्या जरूरत पड़ गई? कहीं सरकार के दबाव में तो शरद पवार ने ऐसा नहीं किया है ? दरअसल शरद पवार जहां कई शुगर मिलों के मालिक हंै वहीं कई तरह के आरेाप भी उन पर हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सरकार ने उन पर विपक्ष की लामबंदी को कमजोर करने का दबाव बनाया हो। नहीं तो ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी कि जहां अडानी मामले पर शरद पवार ने इंटरव्यू दिया वहीं कांफ्रेंस कर जेपीसी की मांग को गलत ही करार दे दिया।