कभी शरद पवार अडानी और मोदी मामले के साथ ही जेपीसी मामले पर विपक्ष की कमियां निकालने लगते हैं तो कभी अखिलेश यादव कांग्रेस ही हमलावर हो जाते हैं, पहले ही आत्मसमर्पण कर चुकी हैं मायावती
चरण सिंह राजपूत
समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के नारे की तर्ज पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गैर संघवाद का नारा तो दिया पर वह अपनी सरकार को बचाने के लिए बीजेपी की गोद में जा बैठे। नीतीश कुमार कई बार एनडीए का हिस्सा तो रहे हैं पर अब फिर से उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है। नीतीश कुमार विपक्ष को लामबंद करने के लिए दिल्ली में पहुंच गये हैं। नीतीश कुमार का यह दूसरा प्रयास है। नीतीश कुमार के साथ बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और सांसद मनोज झा भी हैं। ये लोग कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व सांसद राहुल गांधी से मिले। इन नेताओं ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर विपक्ष की लामबंदी की बात कही। नीतीश कुमार ने जहां विचारधारा की लड़ाई की बात कही वहीं राहुल गांधी ने इस मीटिंग को ऐतिहासिक करार दिया। नीतीश कुमार की लगभग सभी विपक्षी नेताओं से मिलने की रणनीति है।
पहले दौर के प्रयास में नीतीश कुमार न केवल कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी बल्कि टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी, आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल और भारत राष्ट्र समिति के मुखिया चंद्रशेखर राव से भी मिल चुके हैं। इस बीच में जब नीतीश कुमार गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले संजय मयूख से चैती छठ के दूसरे दिन खरना का प्रसाद ग्रहण करने गये तो यह चर्चा का दौर भी चला था कि नीतीश कुमार फिर से एनडीए में जाने का प्रयास कर रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह के बिहार के दौरे के बाद नीतीश कुमार फिर से विपक्षी की लामबंदी में लग गये हंै।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब एनसीपी मुखिया शरद पवार अडानी-मोदी मामले के साथ ही जेपीसी की मांग पर उंगली उठाते हुए विपक्षी की मजबूती की हवा निकालने में लगे हैं। बसपा प्रमुख मायावती पहले ही बीजेपी के सामने आत्मसमर्पण किये हुए हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर हैं। कांग्रेस चुनाव के बाद मिलने की बात कर रही है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी मानने लगे हैं तो ऐसे में नीतीश कुमार विपक्ष की लामबंदी करेंगे। वैसे उनकी पार्टी में ही उनके खासमखास माने जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने भी उनसे बगावत कर रखी है। मनीष कश्यप, कानून व्यवस्था, बेरोजगारी मामले में नीतीश कुमार को अपने ही प्रदेश में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। खुद नीतीश कुमार भी कई बार बीजेपी की गोद में जा बैठे हैं।
दरअसल नीतीश कुमार के पास उस समय एक अच्छा मौका था जब वह राजद के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे और उनकी तेजस्वी यादव से खटास हो गई थी। उस समय नीतीश कुमार राजद की कमियां निकालकर गठबंधन तोड़कर जनता के बीच जाते तो न केवल बिहार बल्कि देश के भी हीरो बन जाते पर नीतीश कुमार सत्ता के लिए बीजेपी की गोद में जा बैठे। सरकार बचाने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाकर उन्होंने वह मौका भी खो दिया था। यही वजह रही कि जब उन्होंने फिर से राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई तो बीजेपी उन्हें पलटूराम बोलने लगी थी। इसमें दो राय नहीं कि विपक्षी दलों में एकमात्र लालू प्रसाद ही नेता हैं जो आरएसएस और बीजेपी के दबाव में नहीं आये नहीं तो चाहे मुलायम सिंह यादव रहे हों, शरद पवार रहे हों, जार्ज फर्नांडीज रहे हों राम विलास पासवान रहे हों सभी समाजवादी किसी न किसी रूप में बीजेपी के साथ मिले हैं। वैसे भी नौकरी के बदले जमीन लिखवाने के मामले में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है।
ऐसे में जब बीजेपी के पास लगभग सभी विपक्षी नेताओं की फाइलें हैं। ईडी,सीबीआई,इनकम टैक्स डराने के लिए हैं तो फिर भला बीजेपी विपक्ष की लामबंदी कैसे होने देगी। वैसे भी आम आदमी पार्टी में सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया को जेल में डालकर तथा शिवसेना में संजय राउत और राजद में तेजस्वी यादव पर शिकंजा कसकर बीजेपी ने विपक्ष को डरा रखा है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दल जब दबाव में होते हैं तो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर हो जाते हैं।