Independence day : मोदी सरकार के एक फैसले से हुई के.के.जी.एस.एस. की दुर्दशा

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आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर देशभर में हर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। केंद्र सरकार सभी को अपने घरों में तिरंगा लगाने के लिए प्रेरित कर रही है। इस दौरान सरकार ने पॉलिस्टर कपड़े के तिरंगे की भी इजाजत दे दी है। इसकी वजह से खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारी नाखुश हैं।

ज्ञात हो कि कर्मचारियों का कहना है कि इस फैसले से खादी के तिरंगे की बिक्री पर असर पड़ेगा। इस पर बेंगेरी खादी ग्रामोद्योग संगठन के सचिव शिवानंद मठपति ने नाराजगी व्यक्त की है। दरअसल कर्नाटक खादी और ग्रामोद्योग संयुक्ता संघ (फेडरेशन) या केकेजीएसएस हुबली के बेंगेरी गांव में स्थित है। जो कि दुनिया भर में तिरंगे के निर्माण और आपूर्ति के लिए भारत में बीआईएस प्रमाणीकरण के साथ एकमात्र अधिकृत इकाई है। केकेजीएसएस में लगभग 1,300 लोग काम करते हैं, जिनमें से बेंगेरी खादी बनाने वाली इकाई में ही 600 लोग हैं। इसमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं। ज्यादातर महिलाएं जो बुनकर, कातने और दर्जी हैं, वे दिहाड़ी मजदूर हैं और प्रतिदिन लगभग 500-600 रुपये कमाती हैं। यूनिट में कार्यरत इस महिला ने बताया कि बिक्री में गिरावट आई है। इसक असर हमारे वेतन पर भी पड़ा है।

हमने सोचा था कि हम देश के हर घर में हमारे द्वारा बनाए गये खादी के झंडे को गर्व से देख पाएंगे लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा हैं। यूनिट में प्रबंधन के रूप में काम करने वाली अनुराधा ने कहा, हमने सोचा था कि इस साल हम आजादी का अमृत महोत्सव उत्सव के साथ बिक्री में भी बढ़ोतरी होगी लेकिन अब हमें निराशा हाथ लगी है। क्योंकि केंद्र ने पॉलिएस्टर में भी बड़े पैमाने पर झंडे के उत्पादन की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि खादी हमारे देश की शान है। क्या हमें इसका इस्तेमाल अपने देश की सबसे महत्वपूर्ण घटना को प्रदर्शित करने के लिए नहीं करना चाहिए ?

दरअसल पहले फ्लैग कोड के अनुसार पॉलिएस्टर और मशीन से बने झंडों के उपयोग की अनुमति नहीं थी लेकिन सरकार ने दिसंबर 2021 में इसमें संशोधन कर इन प्रतिबंधों को हटा दिया। ऐसे में अब खादी के अलावा, कपास, रेशम, और लकड़ी की सामग्री का उपयोग झंडे के बनाने में भी किया जा सकता है जो या तो हाथ से ने हुए या हाथ से बने हो सकते हैं। इस संशोधन के बाद आजादी के अमृत महोत्व के दौरान इस साल, बेंगेरी इकाई को झंडे के लिए करीब 8-10 करोड़ रुपये के आर्डर मिलने की उम्मीद थी लेकिन उन्हें इसमें निराशा हाथ लगी। अभी तक उन्हें केवल दो करोड़ रुपये के ही आडॅर मिले हैं। बेंगेरी में बना राष्ट्रीय ध्वज विदेशी दूतावासों में भी फहराया जा रहा था, लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है।

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