जिनके सच्चे प्यार ने, भर दी मन की थोथ ।
उनके जीवन में रहा, हर दिन करवा चौथ ।।
हम ये सीखें चाँद से, होता है क्या प्यार ।
कुछ कमियों के दाग से, टूटे न ऐतबार ।।
मन ने तेरा व्रत लिया, हुई चाँदनी शाम ।
साथी मैंने कर दिया, सब कुछ तेरे नाम ।।
मन में तेरा प्यार है, आँखों में तस्वीर ।
हर लम्हे में है छुपी, बस तेरी तासीर ।।
अब तो मेरी कलम भी, करती तुमसे प्यार ।
नाम तुम्हारा ही लिखे, कागज़ पर हर बार ।।
मन चातक ने है रखा, साथी यूँ उपवास ।
बुझे न तेरे बिन परी, अब ‘सौरभ’ की प्यास ।।
तुम राधा, मेरी बनो, मुझको कान्हा जान ।
दुनिया सारी छोड़कर, धर लें बस ये ध्यान ।।
मेरे गीतों में बसी, बनकर तुम संगीत ।
टूटा हुआ सितार हूँ, बिना तुम्हारे मीत ।।
माने कब हैं प्यार ने, ऊँच-नीच के पाश ।
झुकता सदा ज़मीन पर, सज़दे में आकाश ।।
-(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )