चरण सिंह
यह आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कोई रणनीति हो या फिर देश और समाज को जोड़ने की भावना, बात तो उन्होंने जर्बदस्त कही है। जब बीजेपी में मंदिर मस्जिद मुद्दे को जोर शोर से उठाया जो रहा हो। आरएसएस के चहेते यूपी के मुख्यमंत्री विधानसभा में जय श्री राम और अल्लाहु अकबर के नारे पर चर्चा कर रहे हों। गृह मंत्री अम्बेडकर के नाम लेने को फैशन बता रहे हों ऐसे में यदि बीजेपी के मातृ संगठन के मुखिया मोहन भागवत यह कहते हैं कि देश सद्भावना और संविधान से चलेगा। तो क्या यह माना जाए आरएसएस अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलकर सभी धर्मों और जातियों की एकजुटता की बात करने लगा है। काश मोहन भागवत की इस सोच पर आरएसएस और बीजेपी दोनों चल पड़ें।
दरअसल हमारे देश की पहचान अहिंसा और शांति के नाम से है। महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी से है। ऐसे में यदि कुछ लोग निजी स्वार्थ के चलते जाति और धर्म के नाम पर नफरत का जहर घोल कर विश्व गुरु बनने का सपना देख रहे हैं तो इसे हास्यापद ही कहा जाएगा। ऐसा भी नहीं है कि मोहन भागवत ने इस तरह का बयान कोई पहले दिया हो। इससे पहले उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग न तलाशी जाए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब बीजेपी में कट्टरता बरती जाती है तो आरएसएस चुप क्यों हो जाता है ?
दरअसल यह माना जाता है कि बीजेपी में आरएसएस का सीधा हस्तक्षेप होता है। बीजेपी के अधिकतर नेता आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आरएसएस प्रचारक रहे हैं। ऐसे में बीजेपी नेताओं की कट्टरता पर वह हस्तक्षेप क्यों नहीं करते ? यदि बीजेपी उनकी सुन नहीं रही है तो फिर देश और समाज हित में उन्हें बीजेपी के खिलाफ भी मोर्चा खोलना चाहिए।
दरअसल देश में काशी, मथुरा में मंदिर मस्जिद का विवाद और संभल का प्रकरण के चलते ऐसा लग रहा है कि जैसे सभी शहरों में इस तरह के विवाद पैदा होने लगेंगे। वैसे भी धार्मिक ढांचों को लेकर सवाल उठाए जाने लगे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ये जो चिंता जताई है। इसे एक अच्छी पहल मान सकते हैं।
दरअसल मोहन भागवत का कहना है कि हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है यह ठीक नहीं है। इस तरह के मुद्दों को उठाने वाले लोगों पर निशाना साधते हुए भागवत ने कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि जैसे ऐसे मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। आज की तारीख में संघ प्रमुख समावेशी समाज की वकालत कर देश को सद्भावना के साथ चलाने की बात कर रहे हैं। उनके इस बयान से आरएसएस का हिंदू राष्ट्र बनाने का मुद्दा अपने आप ही खत्म हो जाता है। तो भागवत वास्तव में ही देश को सद्भावना से चलाना चाहते हैं। भागवत ने रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाने की बात की है। उन्होंने हिंदुओं की उदारता को उभारते हुए कहा कि यह हम कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं। कट्टरता को दरकिनार करते हुए भागवत ने कहा कि हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं। अगर हम दुनिया को यह सद्भावना प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है।
मतलब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी को साथ मिलकर रहना होगा। मोहन भागवत ने हर दिन एक नया विवाद उठाने की बात जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। हाल के दिनों में मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों के सर्वेक्षण की कई मांगें अदालतों तक पहुंची हैं, हालांकि भागवत ने अपने व्याख्यान में किसी का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आ जाए। मोहन भागवत ने मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन को कट्टरता से जोड़ा तो बहादुर शाह जफर ने 1857 में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात भी कही।
मोहन भागवत के अनुसार बहादुर शाह जफ़र के राज में तय हुआ था कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को दिया जाना चाहिए, लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई और उन्होंने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी। मतलब राम मंदिर बाबरी मस्जिद मामला 1857 में निपटा लिया गयाथा पर अंग्रेजों ने उलझा दिया। मोहन भागवत के अनुसार उसके बाद अलगाववाद की भावना अस्तित्व में आई और जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान अस्तित्व में आया। मतलब आज़ादी की लड़ाई में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही अपने धार्मिक मामले निपटा लेना चाहते थे। मोहन भागवत अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद मिटाकर सबको समान बता रहे हैं। उनका यह कहना कि देश की परंपरा है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं। हिन्दू मुस्लिम एकता की बात कर रहा है।