हरियाणा: एस्मा लागू होने के बाद भी आशा वर्कर नहीं झुकीं, कर्मियों ने कहा- मांगे पूरी होने तक जारी रहेगा आंदोलन

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आंगनवाड़ी वर्कर
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द न्यूज 15 
हिसार/ सिरसा। पिछले 6 महीने से हरियाणा के अंदर आंगनवाड़ी वर्कर व हेल्पर हड़ताल पर हैं। हरियाणा में इनकी संख्या 52 हजार के आस-पास है। आंगनवाड़ी वर्कर का पद राज्य सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रालय या स्वास्थ्य विभाग या स्वास्थ्य संबंधी (महिला एवं बाल विकास) परियोजनाओं या रिसर्च प्रोजेक्ट में होता है। आंगनवाड़ी वर्कर का पद लगभग सभी राज्यों में ब्लॉक स्तर पर अस्थायी आधार पर होता है। आंगनवाड़ी वर्करों का मुख्यत: काम संबंधित आंगनवाड़ी केंद्र में जन-स्वास्थ्य, विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों की देखभाल करना, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में सहायता करना, पास-पड़ोस के परिवारों में महिलाओं एवं बच्चों से मिलकर उनकी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिहाज से सरकारी कार्यक्रमों के बारे में बताना और जरूरत पड़ने पर उसके तहत उनकी मदद करना, स्वास्थ्य एवं पोषण के संबंध में जागरूकता फैलाना और सरकार के द्वारा चलाये जा रहे स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रमों के लिए डाटा एकत्रित करना और रिपोर्ट बनाना शामिल है।
इन सारे कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने वाले आंगनवाड़ीकर्मी पिछले 6 महीने से हरियाणा सरकार द्वारा किये गए वादों को पूरा करने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने इस दौरान ब्लॉक, जिला व मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र शहर करनाल में लगातार धरने-प्रर्दशन किये हैं। इस दौरान राज्य सरकार उनसे सार्थक बातचीत करने की बजाए उनके दमन का रास्ता अपनाने की तरफ बढ़ी है। आंदोलन का नेतृत्व करने वाले यूनियन नेताओं को इस दौरान टर्मिनेट किया गया है, हड़ताल में शामिल वर्करों को नोटिस जारी किए गए। जनचौक की टीम जब ये रिपोर्ट लिख रही थी उस समय तक करनाल में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने स्थाई मोर्चेबन्दी कर दी थी।
प्रदर्शन में शामिल महिलाएं : इस दौरान राज्य की आशा वर्कर ने भी जब अपनी मांगों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री के शहर में 17 फरवरी को रैली करने का एलान किया तो सरकार ने उनका भी दमन करते हुए यूनियन नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 18 फरवरी को राज्य सरकार के दमन के खिलाफ पूरे हरियाण में जिला मुख्यालयों पर आंगनवाड़ी, आशा वर्कर व मिड डे मील वर्करों ने मिलकर प्रदर्शन किया।
हिसार प्रदर्शन में हजारों महिलाएं सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) के लाल झंडे उठाये हुए ‘आवाज दो-हम एक हैं’, ‘हमारा संघर्ष जिंदाबाद व हरियाणा सरकार मुर्दाबाद’, तानशाही नहीं चलेगी के नारे लगाते हुए लघु सचिवालय की तरफ बढ़ रही थी। महिलाओं के चेहरे पर सरकार की तानशाही के खिलाफ गुस्सा व संघर्ष के लिए हौसला साफ झलक रहा था। वो सभी अपनी-अपनी ड्यूटी ड्रेस पहन के आयी हुई थीं जिससे साफ-साफ पता चल रहा था कि वे आशा वर्कर हैं या मिड डे मील या आंगनवाड़ीकर्मी हैं।
प्रदर्शन में शामिल रोशनी ढंढूर गांव की रहने वाली हैं और वह आंगनवाड़ी में हेल्पर के पद पर काम करती हैं। उन्होंने बताया कि “मुझे सरकार की तरफ से 5700 रुपये मिलते हैं”। मांग के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि “2018 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने हेल्पर के 750 रुपये व वर्कर के 1500 रुपये बढ़ाने व कुशल व अकुशल श्रेणी का दर्जा देने का वादा किया था। मुख्यमंत्री इस वादे को पूरा करें बस यही मांग है”।
प्रदर्शन स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मी : एक दूसरी महिला बेबी भी उसी गांव ढूंढर से आयी थीं। उन्होंने बताया कि “हम से बाहर का भी काम करवाया जाता है। कोरोना काल में जब लॉक डाउन था सब डरे हुए थे। कोई घर से बाहर नहीं निकल रहा था। उस समय हमने मास्क बांटे, राशन बांटा, सबको सेनिटाइजर करने में बड़ी भूमिका निभाई”।
यह पूछने पर कि सरकार ने दावा किया था कि कोरोना योद्धाओं को दोगुना वेतन दिया जाएगा। क्या आपको डबल वेतन मिला? इस पर बेबी ने कहा कि “दोगुना वेतन देना तो दूर हमको उस समय मूलभूत सुरक्षा के उपकरण भी उपलब्ध नहीं कराये गए। सेनिटाइजर भी हम खुद खरीद कर लाते थे या गांव का सरपंच दे देता था”। आंगनवाड़ी यूनियन की जिला स्तरीय नेता रामकली का गुस्सा तो परवान पर था। सवाल पूछते ही वह सरकार के खिलाफ आग उगलने लगीं, “सरकार दमन का रास्ता अपनाये हुए है। सरकार ने नारा दिया था बेटी बचाओ-बेटी बढ़ाओ लेकिन हरियाणा की 52 हजार बेटियां पिछले 6 महीने से सड़कों पर बैठने को मजबूर हैं। हमने इस दौरान हरियाणा के अलग-अलग मंत्रियों व विधायकों को मांग पत्र सौंपे हैं। वो उन मांग पत्रों को आगे भेजते हैं या डस्टबिन में डाल देते हैं ये हमको मालूम नहीं है”।
महिलाओं ने नारेबाजी के लिए अलग से माइक की व्यवस्था कर ली थी : सरकार से किसी वार्ता के सवाल पर रामकली ने बताया कि “29 दिसम्बर को मुख्यमंत्री से हमारी बातचीत हुई थी। सरकार वार्ता में पहले से ही ऐसी सरकार समर्थक यूनियनों को भी वार्ता में बैठा लेती है जो न आंदोलन में होते हैं और न वर्करों में उनका काम होता है बस वो कागजों में बनी होती हैं। जब वार्ता शुरू होती है तो वो सरकार की हाँ में हाँ मिलाते हैं”।
उन्होंने आगे बताया कि “सरकार की वर्कर विरोधी बातों का भी वो समर्थन करते हैं। जिससे सरकार जनता में ये सन्देश देने की कोशिश करती है कि वार्ता में शामिल यूनियनों से वार्ता सफल रही। इससे पहले भी झूठी वार्ता करके ऐसी फेक यूनियन लड्डू बांट चुकी है व हड़ताल खत्म होने का दावा भी कर चुकी है लेकिन राज्य का बहुमत वर्कर हमारे साथ है वो अब लड़ने के मूड में है। मुख्यमंत्री से वार्ता में जो वीडियो बना था वो सरकार सार्वजनिक कर दे मालूम हो जाएगा सरकार झूठी है या हम झूठे हैं। 60 किलोमीटर दूर से जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन में शामिल होने आई रानी ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि “मुख्यमंत्री ने विधानसभा में घोषणा की थी कि कुशल व अर्ध कुशल श्रेणी का दर्जा व महंगाई भत्ता दिया जाएगा। उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि देश में हरियाणा पहला राज्य होगा आंगनवाड़ी को ये दर्जा देने वाला। लेकिन उसको लागू नहीं किया। वार्ता में जब उनको उनके इस बयान की याद दिलाई तो मुख्यमन्त्री ने कहा कि हमारी जुबान फिसल गई थी। क्या मुख्यमंत्री की जुबान फिसल सकती है”?
हाथ में लाल झंडा जुबान पर नारे। एस्मा की फिक्र नहीं : \चित्रा का कहना था कि हमारे प्रधानमंत्री ने भी सितम्बर 2018 में हम सबको स्क्रीन के सामने बैठा कर मन की बात की थी। तब मोदी साहब ने हमको कहा था कि, मैं अपनी बहनों को 1500 व 750 की बढ़ोत्तरी दे रहा हूँ। मेरी बहनें दिवाली अच्छी मनाएंगी। लेकिन हमारी वो अच्छी दिवाली मनी ही नहीं, वो मन की बात भी जुमला ही साबित हुई।
वोट किसको दिए जाने के सवाल पर कमलेश, गुड्डी, ओमपति, बबली सब ने कहा कि इनके अच्छे दिन के झांसे में आकर बीजेपी को वोट दिया। हमने इनके कहने से ताली, थाली, घण्टी सब बजाई। हम ही मोदी को लेकर आये वो अब हमको ही मार रहे हैं।
सुखजीत कौर जो आशा वर्कर हैं वह उकलाना तहसील से आई हैं। उन्होंने बताया कि “सरकार आशा वर्कर को 4 हजार रुपये देती है। जबकि हमारी ड्यूटी 24 घण्टे की होती है”। मांग के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि 6 दिसम्बर को स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने हमसे वार्ता की थी। उस वार्ता में हमको कोरोना का इंसेंटिव देने की बात स्वीकार की थी लेकिन उसको अब तक लागू नहीं किया गया। सरकार ने हमको कर्मचारी नहीं माना है। सरकार कहती है कि हम स्वयं सेविका हैं। सरकार कहती कि आप समाज सेवा करते हो। समाज सेवा फ्री में तो नहीं होती है हमारे भी घर-परिवार है”। उन्होंने आगे बताया कि “बच्चे हमको भी पालने हैं। सारा दिन धूप में गर्मी में जब लोग कूलर के नीचे सोये रहते हैं। उस समय हम घर-घर जाकर काम करते हैं। जब मैं दस साल पहले लगी थी उस समय पांच सौ रुपये मिलते थे। दस साल में पांच सौ से चार हजार हुए, वो भी सड़कों पर संघर्ष के दम पर हुए। इन दस सालों में महंगाई चालीस गुना बढ़ चुकी है लेकिन हमारा वेतन कुछ नहीं बढ़ा”।
हांसी के पास की रहने वाली अनिता ने बताया कि “जब गांव में काम करते हैं तो लोगों का भी व्यवहार हमसे ठीक नहीं होता है। लोगों को लगता कि हमको बहुत ज्यादा पैसा मिलता है। इसलिए वो हमसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं करते हैं। व्यवहार भी बहुत बार उनका बुरा होता है। अगर किसी गर्भवती महिला को चेकअप के लिए शहर लेकर जाना पड़ जाए तो सरकार किराया भी नहीं देती किराया हमको या तो गर्भवती महिला का परिवार देगा या हम अपनी जेब से देते हैं”।
हिसार की सड़कों पर महिलाओं का मार्च : ऐसे ही उकलाना से आई सुमन ने बताया कि “जब हम किसी महिला की डिलवरी के लिए उसको शहर के अस्पताल में लेकर जाते हैं। अगर डॉक्टर उस महिला को बड़े हस्पताल में रेफर कर देता है तो हम रात को घर वापस कैसे आयें इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं होती। खासकर रात को ऐसे हालात में बहुत ज्यादा समस्या आती है। हमारे लिए न ही कहीं ठहरने का प्रबंध होता और न ही घर तक वापस छोड़ने की सरकार या प्रशासन जिम्मेदारी लेता है”। मूर्ति जो आदमपुर तहसील से आई थीं, ने बताया कि हरियाणा में 21 हजार आशा वर्कर हैं जो इंतजार में हैं कि कब सरकार उनको कर्मचारी का दर्जा दे। हमको तो सरकार मिनिमम वेज भी नहीं देती है। लेकिन काम हमसे 24 घण्टे करवाया जाता है। रात 12 बजे भी अगर फोन आ जाता है तो हमको गर्भवती महिला के साथ अस्पताल में जाना होता है। लेकिन उसके बाद भी सरकार हमारी जायज मांगों को सुनने की बजाए दमन का रास्ता अपना रही है। हम सरकार के दमन से डरने वाले नहीं हैं हम मजबूती से अपने हकों के लिए लड़ेंगे।
हिसार के शिव कालोनी से आईं अनिता ने बताया कि बाकी कर्मचारियों की तरह न उनका Pf  कटता है न ही ESI की सुविधा सरकार ने दी हुई है। अगर हम बीमार हो जायें तो हमको इलाज करवाना मुश्किल हो जाता है। हमको न डेथ क्लेम मिलता है न ही स्वास्थ्य बीमा मिलता है।
गांव कुंभा-खेड़ा, बरवाला से आयी है एक महिला गांव के स्कूल में मिड डे मील में काम करती हैं। उनको पिछले आठ से दस महीनों से वेतन ही नहीं मिला है। वेतन कितना मिलता इस सवाल पर उन्होंने कहा कि “3500 रुपये मिलते हैं। हमको हर महीने वेतन मिलने की बजाए 3 महीने में मिलता है”। काम क्या करवाया जाता है इस बारे में हसनगढ़ बोबुआ गांव से आई कमलेश ने बताया कि हमारा काम बच्चों के लिए खाना बनाना होता है, लेकिन स्कूल मास्टर हमसे खाना बनाने के साथ-साथ सफाई का काम भी करवाते हैं। हम स्कूल के कमरों की सफाई, टॉयलट की सफाई, पेड़ पौधों की सफाई, उनमें पानी डालने का काम भी करते हैं। जब हमने उनसे पूछा कि क्या सरकार ने सफाई करने का कोई आदेश दिया है तो उन्होंने बोला कि सरकार का तो ऐसा कोई आदेश नहीं है बस मास्टर ही ज़बरदस्ती हमको डरा-धमका कर करवाते हैं। इंकार क्यों नहीं करतीं ऐसे जबरदस्ती करवाये जाने वाले काम के लिए तो उन्होंने कहा कि हमारी नौकरी पक्की तो है नहीं। अगर स्कूल मास्टर की नहीं मानेंगे तो वो हमको काम से हटा देंगे। मिड डे मील में विधवा महिलायें ज्यादा हैं। अगर ये नौकरी भी नहां रहेगी तो उनका गुजारा कैसे हो पायेगा। हमारी इस दौरान सुनीता, धोली, सुमन से भी बात हुई। इन सबका पारिवारिक बैक ग्राउंड मजदूर परिवार था। उन्होंने बताया कि इसी का फायदा उठाकर स्कूल मास्टर हमसे हमारे काम से अलग भी काम करवाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि सरकार हमको साल में दस महीने का वेतन देती है। जबकी बाकी स्कूल स्टाफ को बारह महीने का वेतन मिलता है।
इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे Centre of Indian Trade Unions के जिला अध्यक्ष से बात हुई। उन्होंने हमको बताया कि वर्करों के संघर्षों से जूझते हुए समय-समय पर जो वार्ताएं हुई उनमें सरकार व वर्करों के बीच समझौता हुआ। सरकार उन समझौतों से मुकर रही है। इसी कारण हरियाणा की बावन हजार आंगनवाड़ी, इक्कीस हजार आशावर्कर व बाईस हजार मिड-डे-मील वर्कर संघर्ष के रास्ते पर हैं। सरकार मांगों पर बात करने की बजाए दमन का रास्ता अपना रही है। कल 17 फरवरी को सरकार ने आशा वर्कर की राज्य महासचिव सुनीता सोनीपत, राज्य अध्यक्ष सुरेखा रोहतक, महिला समिति की राज्य अध्यक्ष सविता, CITU के राज्य महासचिव जयभगवान, अम्बाला से CITU के नेता रमेश व बहुत से दूसरे साथियों को गिरफ्तार कर लिया। सरकार ने एस्मा लगाया है जो गैर कानूनी है। क्योंकि सरकार इनको कर्मचारी ही नहीं मानती है। एस्मा कानूनी तौर पर कर्मचारियों पर लागू होता है। रिपोर्ट लिखे जाने तक हरियाणा में आंगनवाड़ी, आशा वर्कर व मिड-डे-मील वर्कर जिनकी कुल संख्या 95 हजार के आस-पास है। ये सभी अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर संघर्ष कर रही हैं। सरकार जो दमन का रास्ता अपनाने की तरफ बढ़ रही है तो वहीं महिलायें भी सरकार के दमन के सामने मजबूती से जमीन में पंजे गाड़े हुए लड़ने के लिए तैयार हैं। अब देखना है सरकार का दमन जीतता है या महिलाओं का संघर्ष। (जनचौक से साभार)

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