Gyanvapi Masjid
Gyanvapi Masjid : भारत में खुदरा महंगाई 15 फीसदी बढ़ चुकी है यानि पिछले दशक से भारत ने इतनी महंगाई नहीं देखी थी जितनी कि आज झेल रहा। साथ ही घरों से ज्यादा चोरी और धांधली की खबरें सरकारी नौकरियों की भर्तियों में आ रही है। लेकिन खबरों में मंदिर और मस्जिद के विवाद उफान पर है कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब किसी मस्जिद के अतीत को मंदिर न जोड़ा जाए, जोड़ने के बाद के क्रम में उसके अतीत के न्याय और राजनीति चमकाने पर चली जाती है।
उत्तर प्रदेश के डिप्टी CM ने अपने पुराने Tweet कर बताया था कि अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा की बारी है, लोगों ने इस Tweet के बाद कयास लगाना शुरु कर दिया कि बात मस्जिदों को मन्दिरों से रिप्लेस की हो रही जबकि भारत में 1991 का उपासना स्थल क़ानून भी है जो कि किसी भी धार्मिक स्थल में 15 अगस्त 1947 के बाद परिवर्तन का विरोध करता हैं उसकी वस्तु स्थिति में परिवर्तन का विरोध करता है। वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद और और मथुरा की शाही ईदगाह दोनों ही इस कानून के अंतर्गत आते हैं। इसके बावजूद भी निचली अदालतों ने ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की मंजूरी दे दी।
क्या है 1991 का कानून ?
1991 के समय पर देश में मंदिर का मुद्दा उबाल पर था, केन्द्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी। लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथ यात्रा लेकर निकले जिससे देशभर में धार्मिक हिंसा चरम पर बढ़ गया। ऐसे में केन्द्र सरकार ने 18 सितम्बर 1991 उपासना स्थल कानून को संसद की सहायता से लागू किया था।
इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थल जिस भी स्थिति और स्वरूप में थे, वह उसी स्थिति में रहेगा, उस स्थल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।
कानून के सामने आने के बाद BJP की उमा भारती ने और अन्य नेताओं के साथ इस कानून का विरोध किया। उनके अनुसार हम इस तरीके से अपने इतिहास से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।
ज्ञानवापी को लेकर कब- कब हुए विवाद –
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ये विवाद नया नहीं है, इतिहास में 1809 में इसके विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे। इसके बाद रथयात्रा और उपासना स्थल कानून आने के बाद मस्जिद में सर्वे के लिए कोर्ट में 3 लोग हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने याचिका दायर की थी। वर्तमान में हरिहर पांडेय के अलावा अन्य दोनो याचिकाकर्ता अब जीवित नहीं हैं।
इस याचिका के विरोध में ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ‘उपासना स्थल क़ानून, 1991’ का हवाला देकर रोक की मांग की। तब इलाहाबाद हाईकोर्ट साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।
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2017 में हरिहर पांडेय ने पुनः याचिका वाराणसी के सिविल कोर्ट में दायर की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ही अन्य मामलों की रुलिंग का हवाला दिया कि किसी भी 6 महीने से ज्यादा स्टे ऑर्डर वैध नहीं माना जाएगा। 2019 में फिर से मस्जिद के सर्वे की याचिका दायर की इस बार कोर्ट ने मंदिर पक्ष के पुरातात्विक सर्वे की अनुमति दी। इसके बाद पुनः ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ‘उपासना स्थल क़ानून, 1991’ का हवाला दिया जिससे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। ये मामला अभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में है बिना किसी निर्णय के।
1991 के कानून के बाद भी सर्वे कैसे?
18 अगस्त 2021 को उसी वाराणसी जगह के अन्य कोर्ट में 5 महिलाओं ने याचिका दायर किया की। जिसमें से एक महिला और अन्य 4 महिलाएं वाराणसी की निवासी है। इन महिलाओं ने मन्दिर परिसर में उपस्थित देवा देवताओं के मूर्ति के दर्शन करना, पूजा करना और भोग लगाने की मांग की ।
इसके अलावा किसी भी देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए और राज्य सरकार मंदिर के परिसर की सुरक्षा को बनाए रखें। इसके साथ ही एक एडवोकेट कमिश्नर की मांग की जो सुरक्षा को सुनिश्चित करें।
अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद को देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए, और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया जाए कि वो “प्राचीन मंदिर” के प्रांगण में देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन, पूजन के लिए सभी सुरक्षा के इंतज़ाम किया जाए।
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भारत के इतिहास में कई बाहरी आक्रांताओं ने मन्दिरों पर आक्रमण किया हैं जो कि इतिहास में बकायदा दर्ज है इस बात से किसी भी पक्ष को इनकार नही लेकिन अब अतीत के मुद्दो को लेकर सिविस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई साथ ही BJP के प्रवक्ता “अश्विनी उपाध्याय” ने 1991 के उपासना स्थल क़ानून को ही चुनौती दे डाली। देखना होगा कि क्या भारत में आम जनता के मुद्दो को कब तक मन्दिर – मस्जिद (Gyanvapi Masjid) राजनीति से दबाया जाएगा।