सूर्य की उपासना का महापर्व – छठ पर्व

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 “छठ महापर्व: सूर्योपासना का अनोखा पर्व”

 “प्रकृति और भक्ति का संगम: छठ पूजा”

 “सूर्य की उपासना से जीवन में सुख और समृद्धि”

 दीपक कुमार तिवारी 

छठ पर्व, सूर्योपासना का वह महापर्व है जो श्रद्धा, भक्ति और आस्था के संगम को दर्शाता है। भारतीय सनातन संस्कृति में भगवान सूर्य को विशेष स्थान प्राप्त है, क्योंकि वे ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। छठ पर्व के दौरान, भगवान सूर्य के साथ-साथ उनकी शक्तियों – ऊषा (प्रात: की पहली किरण) और प्रत्यूषा (सांध्य की अंतिम किरण) की भी आराधना की जाती है। इस पर्व में, भक्तजन सूर्य की ऊर्जा और स्वास्थ्यवर्धक किरणों को समर्पित होकर अपने जीवन में सकारात्मकता और शुद्धता का स्वागत करते हैं।

छठ पूजा का उद्भव ऋग्वेदिक काल में हुआ माना जाता है। पुराणों में इसका उल्लेख विशेष रूप से किया गया है। विष्णु पुराण और भागवत पुराण में सूर्य की महिमा और उनकी आरोग्यकारी शक्तियों का वर्णन किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य को रोग निवारण और स्वास्थ्यवर्धन का देवता माना जाता है। इसी कारण, लोग सूर्य की उपासना कर स्वास्थ्य, संतान, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं।

छठ पूजा का महत्त्व और पौराणिक कथा:

छठ पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा द्रौपदी और पांडवों की है। महाभारत काल में जब पांडवों पर कष्टों का पहाड़ टूट पड़ा और वे अपने राज्य से निष्कासित हुए, तब द्रौपदी ने भगवान सूर्य की उपासना की और उन्हें अर्घ्य देकर छठ व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को राज्य पुनः प्राप्ति में सफलता मिली। इसके अलावा, मान्यता है कि त्रेता युग में माता सीता ने भी भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर संतान प्राप्ति की कामना की थी।

छठ पूजा की परंपराएं और विधि-विधान 

छठ पर्व का आयोजन चार दिनों तक चलता है, जिसमें प्रत्येक दिन विशेष अनुष्ठान और नियमों का पालन किया जाता है:

पहला दिन: (नहाय-खाय): व्रतधारी गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके शुद्धता का पालन करते हैं और संकल्प लेते हैं। इसके बाद शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।

दूसरा दिन (खरना): इस दिन व्रतधारी पूरे दिन निर्जल रहते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर का प्रसाद बनाते हैं। फिर इसे परिवार के साथ ग्रहण करते हैं।

तीसरा दिन (सांध्य अर्घ्य): तीसरे दिन भक्तजन नदी के किनारे संध्या को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस अवसर पर पूरी श्रद्धा और भक्ति से दीप जलाकर जल में खड़े होकर सूर्य को नमन किया जाता है।

चौथा दिन (प्रात: अर्घ्य): अंतिम दिन, व्रतधारी सूर्योदय के समय नदी किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है।

सूर्योपासना और वैज्ञानिक लाभ 

छठ पूजा के समय सूर्य की किरणों का शरीर पर सीधा संपर्क होता है, जिससे विटामिन डी मिलता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि सूर्य की किरणों में कुछ हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने की क्षमता होती है, जिससे स्वास्थ्य को लाभ मिलता है।

इस पर्व के दौरान उपवास रखने से शारीरिक और मानसिक शुद्धता प्राप्त होती है, क्योंकि व्रत का पालन हमारे मन को स्थिर करता है और हमें आत्मसंयम सिखाता है।

छठ पर्व की महत्ता और समाज पर प्रभाव 

छठ पर्व का महत्व केवल आध्यात्मिक नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, सहयोग और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। इस पर्व में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी सामाजिक, आर्थिक या धार्मिक पृष्ठभूमि से हो, एकसमान श्रद्धा और भक्ति के साथ शामिल होता है।

छठ पूजा का पर्व हमारे भीतर धैर्य, आत्मसंयम और प्रकृति के प्रति आदर भाव को भी जागृत करता है। यह पर्व हमें प्रकृति और सूर्य जैसे शक्तिशाली प्राकृतिक तत्वों के प्रति हमारी निर्भरता का अहसास कराता है।

शुभकामनाएं:

छठ पर्व का यह महापर्व सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लेकर आए। भगवान सूर्य की अनुकंपा सभी सनातनी भक्तों पर बनी रहे और विश्व का कल्याण हो।

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