‘विद्या-प्रेम’ संस्कृति न्यास द्वारा भव्य सम्मान समारोह का आयोजन

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‘विद्या-प्रेम’ संस्कृति न्यास द्वारा 1 मार्च 2024 को सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। माता विद्या पांडेय ने आयोजन के प्रांगण में बिखरे हुए आनंद को यूं ही बिखरे रहने का आशीर्वाद दिया। कार्यक्रम के साक्षी बने गणमान्य अतिथियों ने आयोजन के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं। आज के कार्यक्रम को तीर्थ यात्रा का नाम देते हुए विशेष सानिध्य के रूप में पंडित सुरेश नीरव जी ने विद्या और प्रेम के सुंदर प्रतिबिंब स्वरूप संस्था की अध्यक्ष डॉक्टर कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’ में उनके पिता को सतत् जीवंत और विद्यमान बनाए रखने के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं। व्यंयकारों को उन्होंने सर्जन की संज्ञा से संबोधित करते हुए कहा कि सामाजिक विद्रूपताओं को सच्चे मापदंड में तौलते हैं।

साहित्यकार सही दिशा का संकेत देता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार आदरणीय श्री रामस्वरूप दीक्षित जी ने ‘विद्या-प्रेम’ संस्कृति न्यास द्वारा संपादित आयोजन को आज के समय में, यथार्थ में मूल्यों को जीवित रखने वाला बताया। मुख्य अतिथि के रूप में प्रणेता साहित्य के अध्यक्ष एवं संरक्षक श्री एस जी एस सिसोदिया जी ने स्तुत्य प्रणेताओं के प्रति समर्पित ‘विद्या-प्रेम’ संस्कृति न्यास को उसके उद्देश्य में निरंतर सफ़ल होने के लिए शुभकामना दी। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री अनिल जोशी ने कहा कि समाज एवं भाषा की समझ के बिना व्यंग्य रचना नामुमकिन है। इस संस्था के द्वारा यह एक नया प्रयास है। एक नए रंग में साहित्यिक पुष्प की चतुर्दिक फैलती सुगंधि के लिए अपना आत्मीय आशीर्वाद दिया। श्री अजीज सिद्दीकी जी ने हंसी-हंसी में एक बहुत ही गहरी बात कही कि हमारे यहां सम्मान मरणोपरांत देने की परंपरा है पर ‘विद्या-प्रेम’ संस्कृति न्यास ने इसे नया मोड़ दिया है। किसी का एक शेर पढ़ते हुए उन्होंने कहा- एक से एक एहले फन न पहचाने गए कैसे-कैसे लोग इस दुनिया से अनजाने गए हाय ये मुर्दापरस्ती हाय ये ज़िंदा सितम मर गए तब वे पहचाने गए।
‘प्रेम-रत्न’ से सम्मानित डॉ. सविता चड्ढा ने सम्मान के प्रति आत्मीयता भरे शब्द कहे। उन्होंने कहा कि है ‘प्रेम रत्न’ सम्मान पिता को समर्पित है इसलिए आज से वह भी पितृ तुल्य हो गईं। उन्होंने स्वर्गीय श्री प्रेम किशोर पांडेय की कविता की कुछ पंक्तियां भी पढ़ीं-किसकी काली छाया पड़ी कि तू असहाय हो गया अपनी संस्कृति की रक्षा में क्यूंकर तू निरुपाय हो गया।
‘विद्याश्री’ सम्मान से सम्मानित डॉ. पुष्पा सिंह बिसेन ने सम्मान के प्रति अपनी भावाभिव्यक्ति इस रूप में दी कि इस सम्मान को पाकर आज वह पूर्ण रूप से समृद्ध और संपन्न हो गईं। अपने कविता के माध्यम से अलौकिक एवं शाश्वत प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी। झूम झूम गाती रही मधुबन में खो गया मीत सखी बचपन में।

इस वर्ष व्यंग्यात्मक पुस्तकों के निर्णायक की भूमिका में अपने योगदान के लिए ‘निर्णायक सम्मान’ से सम्मानित डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ ने अपनी भूमिका और उसके अनुभव को साझा करते हुए कहा-चावल के एक दाने के आधार पर पूरे चावल के पके होने का पता चलता है इस तरह साहित्य लेखन से साहित्यकार का बोध होता है। व्यंग्य रचनाएं लोगों को सचेत करती हैं जागरुक करती हैं। इसी क्रम में श्रीमती मधु मिश्रा ने सभी व्यंग्यकारों की रचनाओं को उत्कृष्ट बताया। श्री ब्रह्मदेव शर्मा ने भी अपने विचार रखते हुए श्रेष्ठ व्यंग्यकार के चयन प्रक्रिया और उसके महत्त्व को बताया। सुदामा को व्यंग्य के माध्यम से एक सशक्त चरित्र और संकेत का माध्यम बताने के लिए व्यंग्यकार की सराहना की।
‘तुझको क्या हो गया बनारस’ स्वर्गीय श्री प्रेम किशोर पांडेय द्वारा लिखित रचनाओं जिसका संपादन डॉ. कल्पना पांडेय ने किया है। आज कार्यक्रम में उसके आवरण का भी अनावरण किया गया।
‘श्रेष्ठ व्यंग्यकार सम्मान’ के लिए श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी को सम्मानित किया गया। श्री प्रभाशंकर जी ने आज के दौर को व्यंग्य का एक्सप्रेस वे कहते हुए कहा कि व्यंग्य रचना में आज लोग दौड़ रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए किसी भी साहित्य के लिए चिंतन मनन के साथ लेखन होना चाहिए। ‘हास्य व्यंग्यकार सम्मान से सम्मानित डॉ. अजित कुमार जैन ने बड़े अच्छे पीले अंदाज में हास्य व्यंग्य की कुछ मुक्तक सुनाए। संस्था के प्रति सुंदर भावों को कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से बताया -…कल्पना में कवियों के कल्पना ही सजी रहे,उच्च कोटि कल्पना ही कवियों का काम है।।
इन सम्मानों के अतिरिक्त व्यंग्यकार सम्मान से सम्मानित श्री घमंडी लाल अग्रवाल जी ने संस्था के प्रति अपनी आस्था और भाव अभिव्यक्ति देते हुए कहा- सपनों को आकार नया देना सपनों को आधार नया देना सपनों से रोज़ाना तुम खेलो सपनों को संसार नया देना। श्री सुरेश खांडवेकर जी के व्यंग्य लेखन के अलावा आज उनके शास्त्रीय गायन ने एक अलग ही समा बांधा। कविता के बोल इस प्रकार थे -गाओ री नव पल्लव बसंत गान रे बसंत है बसंत है।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती शकुंतला मित्तल जी ने किया। अपने संचालन के दौरान उन्होंने स्वर्गीय श्री प्रेम किशोर पांडेय जी की द्वारा रचित कविताओं की पंक्तियां बार पढ़ीं जिससे सभा में उपस्थित सभी साहित्यकारों ने उनके लेखन की गहराई महसूस किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की मधुर वंदना से हुआ जिसे बहुत ही मधुर कंठ से श्रीमती वीणा अग्रवाल जी ने प्रस्तुत किया
सभा में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों श्री अतुल प्रभाकर, डॉ शारदा मिश्रा, श्रीमती स्मिता श्रीवास्तव , श्रीमती चंचल वशिष्ठ श्रीमती निरंजन शर्मा, श्री सरोज जोशी, श्री संजय गर्ग श्री सुबोध जी ने उपस्थित होकर आज के कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया। अंत में आयोजन में आए हुए सभी अतिथियों का दिल से धन्यवाद देते हुए विद्या-प्रेम संस्कृति न्यास के संरक्षक डॉ. आर के सिंह ने किया सभी का आभार व्यक्त किया।

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