सी.एस. राजपूत
देश में सत्ता की राजनीति इतनी हावी है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद भी केंद्र सरकार का हिस्सा बनकर रह गये हैं। देखने में आता है कि राज्यपाल केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने लगते हैं। प्रख्यात समाजवादी सत्यपाल मलिक ने लोगों की इस धारणा तो बदला है। न केवल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए वह बेबाकी से केंद्र सरकार की नीतियों को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं बल्कि मेघालय के राज्यपाल बनने पर भी उन्होंने अपनी बेबाकी को नहीं छोड़ा है। नये कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के पक्ष में भले ही विपक्ष केंद्र सरकार पर दबाव न बना पा रहा हो पर सत्यपाल मलिक लगातार मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। सत्यपाल मलिक अब भाजपा के गले की हड्डी बन गये हैं। यदि उन्हें पार्टी हटाती है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोटबैंक के बिदकने का डर है और नहीं हटाते हैं तो वह लगातार भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मेघालय से पहले जम्मू-कश्मीर और गोवा के राज्यपाल रहे मलिक ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वह पद जाने से नहीं डरते। यह सत्यपाल मलिक ऐसे समाजवादी हैं, जिन्होंने तीन कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया कि जिस दिन सरकार उनसे कहेगी कि उसे उनसे परेशानी है तो वह तुरंत इस्तीफा दे देंगे। मतलब वह किसानों के पक्ष में राज्यपाल का पद भी ठुकराने को तैयार हैं। मलिक का किसान आंदोलन में जाने के लिए तैयार रहने की बात कहना किसान की पीड़ा को महसूस करना है।
यह सत्यपाल मलिक का ही नैतिक साहस ही है कि उन्होंने किसान आंदोलन में किसानों की मौत पर सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है। सत्यपाल मलिक ने कहा था कि देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन में करीब 600 से अधिक किसान मारे गए हैं, लेकिन सत्ताधारी दल के नेताओं की ओर से शोक का एक भी शब्द नहीं आया है। भाकियू नेता राकेश टिकैत ने सत्यपाल मलिक के बयान की प्रशंसा करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा है।
भाजपा से पहले वह वी.पी. सिंह की सरकार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों को साध चुके हैं। दरअसल मलिक उन समाजवादियों में रहे हैं जिन्होंने किसान और मजदूरों के पक्ष में अनेक आंदोलन किये हैं। अब जब किसान आंदोलन पर वह मोदी सरकार की उपेक्षा देख रहे हैं तो उनसे रुका नहीं जा रहा है। मलिक न केवल किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा चुके हैं। एक वीडियो में मलिक को लोगों के एक समूह को संबोधित करते हुए सुना जा सकता है, जिसमें वह आरोप लगा रहे हैं कि कॉर्पोरेट घराने से संबंधित फाइलों को मंजूरी देने के लिए उन्हें 150 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। किसान आंदोलन पर मलिक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार किसानों के मुद्दे पर अडिग है और किसान 10 महीने से अधिक समय से सीमा पर हैं और सरकार को उनकी मांगों को सुनना चाहिए। इससे पहले मलिक केंद्र सरकार को एमएसपी की गारंटी देने पर बातचीत की पेशकश भी दे चुके हैं।
जयपुर में आयोजित गलोबल जाट सम्मेलन में सत्यपाल मलिक किसान आंदोलन में पूरी तरह से मोदी सरकार के खिलाफ नजर आये। दरअसल सत्यपाल मलिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह के बाद चौधरी महेंद्र सिंह किसानों के बड़े नेता हुए हैं। अब महेंद्र सिंह टिकैत के बेटों राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने नये कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन खड़ा कर रखा है। गन्ना किसानों के क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन होने आम बात हैं। अब जब नये कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों ने मोर्चा संभाल रखा है तो वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी पूरी तरह से हटे हुए हैं। राकेश टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा है। सत्यपाल मलिक जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद रह चुके हैं, वहीं वह राज्य और केंद्र दोनों में कई अहम पदों पर काम कर चुके हैं। किसान आंदोलन में सत्यपाल मलिक लगातार राकेश टिकैत के संघर्ष की पैरवी कर रहे हैं। सत्यपाल मलिक भाजपा में जाने से पहले चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, लोकदल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जनता दल, और सोशलिस्ट पार्टी में रह चुके हैं।