परमात्मा शिव हम सभी आत्माओं के पिता ।
परमात्मा आत्माओं और इस सृष्टि का रचयिता।
सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के खुदीराम बोस रेलवे स्टेशन रोड स्थित स्थानीय सेवा केंद्र पर आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के दूसरे दिन परमात्मा के सत्य परिचय के बारे में बताते हुए पूजा बहन ने कहा कि परमात्मा एक हैं और देवी-देवतायें अनेक हैं। इसलिए भारत में 33 करोड़ देवी-देवताओं का गायन है।
किसी भी देवी-देवता, धर्म-संस्थापक या साधु-संत को परमात्मा नहीं कहा जा सकता। अगर ऐसा होता है तो परमात्मा अनेक हो जायें। परमात्मा सभी मनुष्य आत्माओं और इस सृष्टि का रचयिता है। बाकी सभी उनकी रचना हैं।
चूंकि परमात्मा एक है और उनका निवास-स्थान भी एक परमधाम ही है इसलिए उन्हें सर्वव्यापी भी नहीं कहा जा सकता। परमात्मा उसे ही कहा जा सकता है जो सर्वोच्च, सर्वधर्ममान्य, सर्वज्ञ, सर्वोपरि और सर्वशक्तिमान हो। यह सब योग्यताएं एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव में ही कही जा सकती हैं। परमात्मा अभी सृष्टि पर आकर मनुष्य को देवतुल्य बना रहे हैं।
देवी-देवताओं का जीवन परमात्मा द्वारा दिए जा रहे ज्ञान का संपूर्ण स्वरूप है, उनके जीवन में कहीं कोई अपूर्णता नजर नहीं आती इसलिए उन्हें भी भगवान मान लिया गया। किंतु भगवान एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव हैं, जो जन्म-मरण से न्यारे हैं लेकिन अपना दिव्य कर्तव्य करने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित होते हैं।
अभी परमात्मा अति गुप्त रीति से सृष्टि परिवर्तन का महान कार्य कर रहे हैं, शीघ्र ही सतयुगी दुनिया आने वाली है। इस दुनिया में चलने के लिए हम परमात्म-ज्ञान से अभी अपने दैवी संस्कारों का निर्माण कर रहे हैं। जिससे यह संसार दैवी बनेगा। घर-गृहस्थ में रहकर अपना कार्य-व्यवहार करते हुए परमात्मा पिता का वर्सा दिलाकर नई सतयुगी दुनिया में ले चलने की परमात्म-योजना से अवगत कराने हेतु यह नि:शुल्क आयोजन किया गया है।
उन्होंने कहा कि परमात्मा शिव हम सभी आत्माओं के पिता हैं। इसलिए उन्हें गॉडफादर, त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव…, तुम मात-पिता हम बालक तेरे… कहकर याद किया जाता है। चूंकि उनका रूप निराकार अर्थात् अति सूक्ष्म है इसलिए उस एक से आत्मा सर्व संबंधों के अतींद्रिय सुख का अनुभव कर सकती है। जैसे पिता के गुण बच्चे में स्वत: निहित होते हैं।
वैसे ही परमात्मा पिता के गुण हम सभी आत्माओं में स्वभाविक रूप से निहित हैं। इसी कारणवश आत्मा सो परमात्मा और परमात्मा सो आत्मा कह दिया गया और आत्मा को परमात्मा का अंश मान लिया गया। जबकि सत्यम शिवम सुंदरम परमात्मा आकर स्वयं सत्य ज्ञान देते हैं कि आत्मा परमात्मा का अंश नहीं, परंतु उनकी संतान होने के नाते उनका वंशज है।
स्वयं को आत्मा निश्चय करने से हमें अपने परमात्मा पिता से निकटता का अनुभव होता है। परमात्मा पिता से निकटता हमें उनकी रचना रुपी सभी आत्मा भाइयों के प्रति आपसी भाईचारे की भावना का भी विकास करती है। इससे विश्व एक परिवार की भावना साकार होने लगती है।
हमारी दृष्टि का एक मूलभूत परिवर्तन सारी सृष्टि का परिवर्तन कर देता है। ज्ञान, शान्ति, प्रेम, पवित्रता व सर्व गुणों के सागर, दयासिंधु कलियुग अंत और सतयुग आदि के मध्य की वेला संगमयुग पर इस धरा पर अवतरित होकर सृष्टि परिवर्तन का महानतम कार्य कर रहे हैं। इस कार्य में हम अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर परमात्मा के मददगार बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।