प्रोफेसर राजकुमार जैन
आर.एस.एस. के बडे़ नेता सुन्दर सिंह भंडारी ने कहा, राजनारायण को केवल कार्यकारिणी से निकाला गया है, अगर वो चाहें तो पार्टी को छोड़ने के लिए भी स्वतंत्र है। हरियाणा जनसंघ के बड़े नेता मंगल सैन ने कहा कि राजनारायण का बाहर जाना अच्छा है। हम खुश हैं कि एक जोकर खुद अपने आप छोड़कर चला गया। जनसंघ नेता जे.पी. माथुर ने कहा कि राजनारायण आदतन अनुशासनहीन है। उनके पार्टी छोड़ने से पार्टी कमज़ोर नहीं होगी। चंद्रशेखरजी राजनारायणजी के इस्तीफ़े से खुश नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि राजनारायणजी के कई और समर्थक पार्टी छोड़ देंगे।
6 जुलाई 1979 को राजनारायणजी ने तथा सात अन्य सदस्यों ने लोकसभा के अध्यक्ष को पत्र लिखकर सदन में अलग सीट पर बैठने के लिए निवेदन किया। राजनारायणजी के अतिरिक्त मणिराम बागड़ी, ब्रजभूषण तिवारी, चंद्रशेखर सिंह, रामधा
इसी मध्य कांग्रेस पार्टी के लोकसभा में नेता वाई. चव्हाण द्वारा मोरारजी देसाई सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पेश कर दिया गया। 9 जुलाई को राजनारायणजी ने जनता पार्टी (सैक्यूलर) के नाम से नयी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी।
दूसरे दिन बिहार के संसद सदस्यों-लालू प्रसाद यादव, रामबिलास पासवान, हुकुमदेव नारायण यादव, रामअवधेश सिंह, रामसजीवन सिंह ने जनता पार्टी को छोड़कर जनता पार्टी (सैक्यूलर) में शामिल हो गए। ये सब कर्पूरी ठाकुर के समर्थक थे। इंदौर के सांसद कल्याण जैन भी जनता पार्टी (सैक्यूलर) में शामिल हो गए।
जनसंघ, कांग्रेस (अर्स) मोरारजी समर्थक कुछ सोशलिस्टों ने इसकी निंदा करते हुए पार्टी तोड़क की संज्ञा दे दी।
जनसंघ के मुरलीमनोहर जोशी तथा माधव प्रसाद त्रिपाठी ने चौ. चरणसिंह से मिलकर कहा कि आप इस षडयंत्र से बाहर रहें। सच्चाई यह थी कि जनता पार्टी (सैक्यूलर) चौ. चरणसिंह के इशारे पर नहीं बनी थी। वे मंत्रिमंडल में आराम से थे। राजनारायण, चौ. देवीलाल, कर्पूरी ठाकुर के निष्कासन पर वे मौन थे। इसके बावजूद राजनारायणजी चौ. चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की योजना में लगे होने के कारण चौ. चरणसिंह से भी संपर्क साध रहे थे।
मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने रहने पर स्थिर थे। एक प्रयास हुआ कि वह हट जाएं। बाबू जगजीवनराम को प्रधानमंत्री बनने दें, परंतु मोरारजी तैयार नहीं थे। कुछ सोशलिस्टों, जैसे मधु दंडवते, सुरेन्द्र मोहन इत्यादि को छोड़कर बाकी सोशलिस्ट आर.एस.एस. प्रभावित जनता पार्टी में रहने को तैयार नहीं थे। जनता पार्टी के बाकी बचे नेताओं ने आसन्न संकट को देखकर मोरारजी पर दबाव बनाया कि वह अविश्वास प्रस्ताव पर वोट होने से पहले इस्तीफ़ा दे दें।
मधुलिमये शुरू से ही दोहरी सदस्यता का सवाल उठा रहे थे 15 जून 1979 को प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा था कि जनता पार्टी के नेतृत्व ने पार्टी के मध्य ही एक और पार्टी ;आर.एस.एस.को कार्य करने की इजाज़त दे रखी है। आर.एस.एस एक सांप्रदायिक कैंसर शुरू से ही पार्टी पर प्रभावशाली बना हुआ है। मेरी बार-बार की चेतावनी के बावजूद पार्टी हाई कमान ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
चौ. चरणसिंह के समर्थकों ने दो निर्णय ले लिए- एक, संगठन के चुनावों में वे हिस्सा नहीं लेंगे। दो, चौधरी चरणसिंह के जन्मदिवस पर किसान रैली का आयोजन किया जाएगा। राजनारायणजी ने लखनऊ में एक बयान देकर सनसनी फैला दी कि मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनवा कर ऐतिहासिक भूल उन्होंने की है। उनका विश्वास है कि चौ. चरणसिंह को प्रधानमंत्री बनाकर जनता पार्टी की साख तथा एकता को स्थापित किया जा सकता है।