त्योहार जीवन में संजीवनी बूटी का काम करती है

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 ऊषा शुक्ला 

त्यौहार हमें प्रेम के साथ-साथ त्याग की भावना भी सिखाते हैं। बिना त्याग की भावना के त्यौहारों का आनंद अधूरा है। कोई भी त्यौहार तभी सार्थक है, जब उसे सभी मिलजुलकर मनाएउत्सवों का एकमात्र उद्देश्य आनंद-प्राप्ति है। यह तो सभी जानते हैं कि मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए आजीवन प्रयत्न करता रहता है। आवश्यकता की पूर्ति होने पर सभी को सुख होता है। पर, उस सुख और उत्सव के इस आनंद में बड़ा अंतर ।त्योहार हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। त्योहारों के बहाने हम अपने व्यस्त जीवन में थोड़ा सा समय अपने लिए निकाल पाते हैं । जाने कहाँ गए वो दिन जब त्योहार ख़ुशी लेके आते थे और आज त्योहार चिंता लेकर आते हैं। हर मनुष्य सोचता है जल्दी से यह त्योहार ख़त्म हो जाए तो मैं यह करूँ। अब मनुष्य यह नहीं सोचता कि जल्दी से काम ख़त्म हो जाए तो मैं त्योहार में मौज मस्ती करू। कोई भी त्योहार आ रहा हो उसके ख़त्म होने का इंतज़ार आज कल अधिकतर लोग करते हैं । जाने अनजाने सबके मुख से एक ही शब्द सुनने को मिलता है कि यह त्योहार ख़त्म हो जाए तब मैं यह काम करूँ ।आज की इस भागदौड़ के जीवन में हर व्यक्ति धन के पीछे भाग रहे हैं ।आजकल के युवा पीढ़ी अपने लक्ष्य की तरफ़ बढ़ने में हर पल अपना क़ीमती सकूँ खोती जा रही है । शायद ही इस युवा पीढ़ी के लिए त्योहार एक अमृत की तरह हो जाते हैं कि जब सारे परेशानियाँ दुख और चिंता छोड़कर युवा पीढ़ी दिल खोलकर हंसती है ।त्योहारों से सांस्कृतिक सद्भाव का वातावरण बनता है। त्योहारियाँ के माध्यम से जीवन के नैतिक सामाजिक मूल्य मनोरंजन के साथ मिल जाते हैं। संपन्न लोगों का यह कर्तव्य है कि वे गरीबों को त्योहारों का भागीदार बनाएं। त्योहारों के नाम पर धन का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।सभी त्योहार हमें प्रसन्नता से जीने और मिल-जुलकर रहने का संदेश देतें हैं। फिर भी आज कल की युग में कोई भी त्योहार आपसी मतभेद मिटा ही नहीं पा रहा। एक ही माँ से जन्में दो बेटे तीज त्योहार में भी एक दूसरे को बधाइयां नहीं देते । और आश्चर्यजनक प्रथा तो यह निकली है कि शादी होने के बाद लड़कियाँ अपने पति को अपने मायके के तर्ज़ पर नाचना शुरू कर देते हैं । यह भी देखा गया है कि दामाद शादी के बाद अपनी ससुराल में रहने लग जाता है ग़लत है यह।दामाद को ससुराल में क्यों नहीं रहना चाहिए? सीधा सा जबाब है- बेटा बनकर रहना चाहें तो अवश्य रहना चाहिए । दामाद के रूप मे वह मात्र मेहमान बनकर ही रहेंगे जिसके कारण वह ससुराल में ज्यादा दिन नही रुक सकते । एक समय था जब सभी लोग महीनों पहले से त्योहारों की प्रतीक्षा करते थे पर आज के युग में किसी के पास त्योहार मनाने का समय नहीं है । बड़ी बड़ी क्लाइंट के साथ मीटिंग और अत्यंत व्यस्त जीवन भविष्य को व्यस्तता के तरफ़ धकेल रहा है ।त्योहारों के आने से हम अपनी सामान्य दिनचर्या से अलग एक विशेष उत्साह का अनुभव करते हैं। सबके घर मिठाइयां जाती हैं सबसे घरेलू सकते हैं और सगे रिश्तेदार सगे भाई एक दूसरे को देखते तक नहीं।मित्रों और सगे-संबंधियों से मिलकर, आपस में प्यार बाँटकर हमें प्रसन्नता होती है । इस प्रकार त्योहारों का हमारे जीवन में काफी महत्व है ।स्वभाव से ही मनुष्य उत्सव-प्रिय है, पर्व हमारे जीवन में उत्साह, उल्लास व उमंग की पूर्ति करते हैं। बुन्देलखण्ड के पर्वों की अपनी ऐतिहासिकता है। उनका पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व है और ये हमारी संस्कृतिक विरासत के अंग हैं। कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण त्यौहारों का विवेचन किया जा रहा है।त्यौहार अक्सर विशिष्ट सामुदायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए काम करते हैं, विशेष रूप से देवी-देवताओं या संतों के स्मरण या धन्यवाद के संबंध में: उन्हें संरक्षक त्यौहार कहा जाता है। वे मनोरंजन भी प्रदान कर सकते हैं, जो बड़े पैमाने पर उत्पादित मनोरंजन के आगमन से पहले स्थानीय समुदायों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। ऐसा देखा गया है कि लोग त्योहार दिखाने के लिए मनाते हैं ,ख़ुद ख़ुश होने के लिए नहीं मनाते हैं। आज कल तो मोबाइल का ज़माना है आरती करनी है और वीडियो बनाना है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मोबाइल में वीडियो बनाने से एकाग्रता कैसे आएगी। काशी ऐसी बारिश आ जाए जिसमें रिश्तों में दरार और दुश्मनी बह जाए।

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