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किसानों की मांगों को मानने में बहुत हैं पेंच ?

आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइजर में लिखी गई संपादकीय में किसान आंदोलन पर उंगली उठाई गई है। इस संपादकीय में कहा गया है कि पिछले किसान आंदोलन का एक मकसद था। वह आंदोलन नये कृषि कानूनों को वापस करने के लिए किया गया था। इस आंदोलन का कोई मकसद नहीं है। आरएसएस ने इस आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताया है। इस संपादकीय में कहा गया है कि जिस तरह से मांगें मांगी जा रही हैं उसको देखते नहीं लग रहा है कि मांगें मानी जाएंगी।

अगर बात करे तो किसानों के काफिले में हज़ारों ट्रैक्टर और जेसीबी मशीने लगा रखी थी इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक कि संघ की संपादकीय के अनुसार पहले जो आंदोलन हुआ था उस में कुछ वजह भी सामने नजर आ रही थी। अबकी बार तो ये आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताया है साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि msp कानून की मांग उनकी गारंटी उनकी मांग भी अनुचित है पत्रिका ने बंगाल से संदेशकाली की घटना को आईएएस आईएएस से प्रेरित यौन दासता से जोड़ने की मांग की है।

पत्रिका के मुख्य संपादकीय में ऐसा लिखा हुआ है कि एमसपी की मांग को लेकर आप इस तरह मांग नहीं कर सकते और अगर इस प्रकार की मांग को रखा जाएगा तो कई प्रकार की दिक्कत भी सामने आ सकती है जिसके कारण इस प्रलर का एक्शन देखने को मिल रहा है। जब बातचीत चल रही है तो इस प्रकार कि गतिविधि को अंजाम देना सड़को में नाकाबंदी करना ये केवल ध्यान आकर्षित करने के लिए अलोकतांत्रिक है। आसान भाषा में बोला जाए विपक्षी दल सरकार वरोधी माहौल बनाने के लिए इस को हवा दे रहे है।

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