The News15

Faith : मदरसों के सर्वे पर सवाल 

Spread the love

राजेश बैरागी 

मुझे कभी समझ में नहीं आया कि मदरसों में छात्र हिल हिल कर ही क्यों पढ़ते हैं। बचपन की स्मृतियों में आता है कि जिस सबक को ज्यों का त्यों याद करना होता था, उसे हिल हिल कर पढ़ते थे।इसे आम बोलचाल में रट्टा मारना भी कहा जाता है। इससे पुस्तकों में लिखे ज्ञान को सीखा नहीं जा सकता, उसे केवल लिखे हुए रूप में याद रखा जा सकता है। परिभाषाओं, सूक्ति, मुहावरे या विद्वानों की कही गई विशेष बातों को ज्यों का त्यों याद रखना अलग है। अधिकांश मदरसों में शिक्षा का स्तर यही है। वहां पढ़ाने के स्थान पर रटाया जाता है। वहां से निकलने वाले छात्र केवल धार्मिक उद्देश्यों को पूरा करते हैं। इसलिए गाहे बगाहे उनमें से कई छात्र राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते हैं।

ऐसा विशेष विचारधारा से संचालित अन्य शिक्षा संस्थानों में भी हो सकता है। परंतु उत्तर प्रदेश की योगी सरकार फिलहाल राज्य के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करा रही है। इनकी संख्या 40 से 50 हजार तक बताई जा रही है। जबकि मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 16461 व सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों की संख्या मात्र 558 ही है।गैर मान्यता प्राप्त मदरसों में अधिकांश की स्थिति काफी दयनीय है। एक कमरे से लेकर एक बड़े हॉल या दो चार कमरों में संचालित मदरसों में छात्रों को मुख्यतया कुरान और हदीस रटाई जाती है।

इन धार्मिक पुस्तकों में वर्णित महत्वपूर्ण जानकारी से ज्यादातर छात्र महरूम ही रहते हैं। उन्हें देश दुनिया की जानकारी भी नहीं हो पाती। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के आदेश पर कराए जा रहे इस सर्वे को लेकर मदरसों के संचालकों तथा मुस्लिम नेताओं में बेचैनी है। उन्हें असम की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी मदरसों को ढहाने का यह बहाना लग रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। मदरसों का सर्वे वोटों के गणित के हिसाब से भी किया जा सकता है।