चौतरफा घिरे नीतीश कुमार को समझ में नहीं आ रहा है क्या किया जाये, जदयू के दूसरे लाइन के नेता खुद ही लगे हैं नीतीश की कुर्सी कब्जाने में
द न्यूज 15 ब्यूरो
नई दिल्ली/पटना। तो क्या बिहार में तेजस्वी यादव के पक्ष में समीकरण बन रहे हैं ? क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वास्तव में ही गंभीर बीमार हैं ? क्या नीतीश कुमार का सेकुलर चेहरा खतरे में है ? क्या नीतीश कुमार बाबा साहेब पर दिए अमित शाह के बयान पर चुप्पी साधकर कोई बड़ा संदेश देना चाहते हैं ? क्या प्रशांत किशोर नीतीश कुमार की राजनीति खत्म करके ही दम लेंगे।
दरअसल जिस तरह से जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बयान दिया है कि बीजेपी में हिम्मत है तो नीतीश कुमार की अगुआई में चुनाव लड़कर दिखाए। हालांकि उन्होंने कहा कि एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में ही चुनाव लड़ने जा रहा है। उन्होंने अभी से भविष्यवाणी कर दी है कि नीतीश कुमार जदयू को इस बार 20 सीटें भी नहीं मिलने जा रही है। दरअसल नीतीश कुमार की जो ढुलमुल राजनीति इस समय देखने को मिल रही है। प्रशांत किशोर उसी पर ही निशाना साध रहे हैं। नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा को डिले कर दी पर पश्चिमी चंपारण से उन्होंने प्रगति यात्रा शुरुआत जरूर कर दी है।
दरअसल इस समय जदयू में सेकंड लाइन के नेता नीतीश की कुर्सी कब्जाने में लग गए हैं। चाहे संजय झा हों या फिर ललन सिंह या फिर अशोक चौधरी सभी इस फ़िराक में हैं कि कब नीतीश कुमार रिटायर्ड हों पर उनको उनकी कुर्सी कब्जाने का मौका मिले। हालांकि यह भी सभी नेता जानते हैं कि बिहार में यदि जदयू को वोट मिलता है तो वह नीतीश कुमार के ही चेहरे पर मिलता है। मतलब जदयू में कुछ भी हो सकता है। ये नेता यदि कुछ खेल कर सकते हैं तो वह चुनाव के बाद में। क्या नीतीश कुमार चुनाव से पहले ही कोई खेल कर सकते हैं।
दरअसल नीतीश कुमार समझ रहे हैं इन भले ही उनके नाम पर चुनाव लड़ने की बात एनडीए में की जा रही हो पर उनकी कुर्सी खतरे में है। ऐसे में यदि नीतीश गठबंधन में पलटी मारते हैं तो इस बार लालू प्रसाद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने वाले नहीं हैं। इस बार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। ऐसे में क्या नीतीश कुमार अंत समय में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनवा सकते हैं।
दरअसल जदयू में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। ललन सिंह और संजय झा लगातार बीजेपी के पक्ष में बोल रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार को लग रहा है कि उनकी पार्टी के नेता उनको ही काटने में लगे हैं तो क्या वह लालू प्रसाद के साथ मिलकर कोई गेम कर सकते हैं। ऐसे में वह केंद्र सरकार का कुछ बिगाड़ तो पाएंगे पर उनके सांसद टूटने का खतरा जरूर पैदा हो जाएगा। भले ही सम्राट चौधरी नीतीश कुमार की अगुआई में चुनाव लड़ने की कर रहे हैं। पर बीजेपी और जदयू में सब कुछ ठीक नहीं है। यही वजह है कि 8 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह बार में आ रहे हैं। देखने की बात यह है कि अमित शाह बिहार के चुनाव में कुछ करामात नहीं दिखा पाए हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह के लाख प्रयास के बावजूद महागठबंधन की सरकार बनी थी।
ऐसे ही 2020 के विधानसभा चुनाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह चुनावी समर में डटे रहे पर तेजस्वी यादव ने अपने दम पर आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खड़ा कर दिया था। वह भी तब जब लालू प्रसाद जेल में बंद थे। अब देखना यह होगा कि और प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। एक ओर उनके खुद के नेता उनकी कुर्सी लेने में लगे हैं। ऊपर से उनको पाना सेकुलर चेहरा भी बचाना है। अमित शाह ने राज्य सभा में अम्बेडकर पर जो बयान दिया है। इसको लेकर नीतीश कुमार को भी घेरा जा रहा है। नीतीश कुमार की राजनीति ही दलित महादलित पर ही टिकी है।