विचार की मिट्टी का असर!

राजकुमार जैन

दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के चुनाव को लेकर दिल्ली के सोशलिस्टों के संगठन “समाजवादी समागम” तथा हिंदुस्तान के लाखों मजदूरों द्वारा चुनी गयी अनेकों यूनियनों के संयुक्त संगठन “हिन्द मजदूर सभा” की ओर से “इंडिया गठबंधन” के उम्मीदवारों के समर्थन के लिए सभा का आयोजन हुआ। मोदी सरकार के नए कानून के मुताबिक किसी भी राजनीतिक सभा के लिए दिल्ली में बने  सभागार का इस्तेमाल केवल राजनीतिक पार्टी ही कर सकती है, कोई भी सामाजिक, नागरिक सगंठन,  गैर दलीय संगठन को राजनीतिक सभा करने की इजाजत नहीं है। हमारे साथियों ने एवाने  गालिब, माता सुंदरी रोड के हाल को चुना था, परंतु वहां के पदाधिकारी ने हाल देने से मना कर दिया, तब नए कानून का पता चला। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस  के सभागार में, सभा का आयोजन हुआ। भयंकर तपती हुई दिल्ली की दोपहरी में हाल खचाखच भरा हुआ था। उसमें दो महत्वपूर्ण भाषण सुनने को  मिले। अध्यक्ष की कुर्सी पर मुझे बैठा दिया गया था, इसलिए ध्यान से सुनना ही था।
“हिंद मजदूर सभा” के महासचिव सोशलिस्ट नेता साथी हरभजन सिंह सिद्धू ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जम्हूरियत को खत्म करने, कामगारों, मजदूरों, किसानों, नौजवानों के साध हो रही नाइंसाफी, कामगार कानूनों, उनकी सेवा शर्तों, हिंदुस्तान के सरकारी संस्थाओं की मिल्कियत की जमीनों की लूट पर सिलसिले वार,परत दर परत उखाड़ते हुए, दर्द भरी तीखीं आवाज में दिल्ली प्रदेश कांगेस के अध्यक्ष श्री देवेंद्र यादव तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव व दिल्ली- हरियाणा के प्रभारी, श्री दीपक बाबरिया को सम्बोधित करते हुए कहा कि नई बनने वाली सरकार में  कैसे  मजदूर कानूनों में हमें तब्दीली लानी होगी।
कांग्रेस महासचिव का भाषण भी असरदार था।  गुरबत के मारे, बेसहारा, बेरोजगार, मजदूरों, किसानों, नौजवानों, मजहब जाति के झगड़े  के बारे में गहराई से एक-एक सवाल पर अपनी बात कह रहे थे। भाषण के बाद उनसे बातचीत में मुझे पता चला कि उनके मरहूम पिताजी भी सोशलिस्ट विचारधारा के थे। जयप्रकाश नारायण, युसूफ मेहर अली जैसे सोशलिस्टो से उनका सम्पर्क था। तब मुझे उनके भाषण की बुनियाद, तधा नई रोशनी की आहट महसूस हुई।

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