मानसून के सक्रिय रहने के कारण उत्तर बिहार के सभी जिलों में अच्छी वर्षा की संभावना : मौसम वैज्ञानिक

धान की अगात किस्में जैसे-प्रभात, धनलक्ष्मी, रिछारिया, साकेत-4. राजेन्द्र भगवती एवं राजेन्द्र नीलम उत्तर बिहार के लिए अनुसंशित 

सुभाष चंद्र कुमार

समस्तीपुर । डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय स्थित जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 03-07 जुलाई, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमान के अनुसार उत्तर बिहार के जिलों में पूर्वानुमानित अवधि में मानसून के सक्रिय रहने की सम्भावना है, जिसके कारण उत्तर बिहार के सभी जिलों में अच्छी वर्षा हो सकती है। आमतौर पर मध्यम वर्षा हो सकती है। 5-6 जुलाई के आसपास सारण, सिवान, गोपालगंज, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्वी तथा पश्चिमी चम्पारण जिलों में कहीं कहीं भारी वर्षा भी होने का अनुमान है।

इस अवधि में अधिकतम तापमान 30-33 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है। जबकि न्यूनतम तापमान 22-24 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रह सकता है। वहीं मंगलवार के तापमान पर एक नजर डालें तो अधिकतम तापमानः 29.8 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 3.1 डिग्री सेल्सियस कम
एवं न्यूनतम तापमानः 26.5 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 0.1 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है।

सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 90 से 95 प्रतिशत तथा दोपहर में 55 से 65 प्रतिशत रहने की संभावना है।

पूर्वानुमानित अवधि में औसतन 14 से 16 कि०मी० प्रति घंटा की रफ्तार से पूरवा हवा चलने का अनुमान है।

मौसम वैज्ञानिक ने समसमायिक सुझाव देते हुए किसानों से बताया कि वर्षा की संभावना को देखते हुए धान की रोपाई हेतु, किसान भाई वर्षा जल का संग्रह खेत में करने के लिए मेड़ों को मजबूत बनाने का कार्य करें। तैयार मक्का फसल की कटनी, दौनी तथा दानो को सुखाने के कार्य में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
उत्तर बिहार के अनेक स्थानों पर विगत पूर्वानुमान की अवधि में अच्छी वर्षा हुई है। विगत वर्षा का लाभ उठाते हुए जो किसान धान का बिचड़ा अब तक नहीं गिराये हों, नर्सरी गिराने का कार्य 10 जुलाई तक सम्पन्न कर लें। धान की अगात किस्में जैसे-प्रभात, धनलक्ष्मी,
रिछारिया, साकेत-4. राजेन्द्र भगवती एवं राजेन्द्र नीलम उत्तर बिहार के लिए अनुशसित है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु 800-1000 बर्ग मीटर क्षेत्रफल में बीज गिरावें। जो किसान भाई धान का बिचड़ा अब तक नहीं गिराये हों, नर्सरी में गिराने का कार्य यथाशीघ्र समपन्न करें। 10 से 12 दिनो के बीचड़े वाली नर्सरी से खर-पतवार निकालें। आगे और वर्षा होने की संभावना को देखते हुए नीचली भूमि में विगत वर्षा का लाभ उठाते हुए धान की रोपनी का कार्य शुरु कर सकते है। तराई के जिन क्षेत्रों में वर्षा के कारण खेतों में जल जमाव हो गया हो, सब्जी तथा मक्का की खेतों से जल निकास का उचित व्यवस्था करें।
जिन क्षेत्रों में हल्की वर्षा हुई है, वहाँ ऊचॉस जमीन में सुर्यमुखी की बुआई के लिए मौसम अनुकूल है। मोरडेन, सुर्या, सी0ओ0-1 एवं पैराडेविक सुर्यमुखी की उन्नत संकुल प्रभेद है जबकि बी०एस०एच०-1, के० बी०एस०एच०-1, के० बी०एस०एच०-44 सुर्यमुखी की संकर प्रभेद है। बुआई के समय प्रति हेक्टेयर 100 किवन्टल कम्पोस्ट, 30-40 किलो नेत्रजन, 80-90 किलो स्फुर एवं 40 किलो पोटाष का व्यवहार करें। बुआई के समय किसान 30-40 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार कर सकते है। संकर किस्मों के लिए बीज दर 5 किलोग्राम तथा संकुल के लिए 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रखें।
अरहर की बुआई के लिए खेत की तैयारी करें। उपरी जमीन में बुआई के समय प्रति हेक्टेयर 20 किलो नेत्रजन, 45 किलो स्फुर, 20 किलो पोटाश तथा 20 किलो सल्फर का व्यवहार करें। बहार, पूसा 9. नरेद्र अरहर 1. मालवीय-13, राजेन्द्र अरहर 1 आदि किस्में बुआई के लिए अनुशसित है। बीज दर 18-20 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। बुआई के 24 घंटे पूर्व 2.5 ग्राम थीरम दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करे। बुआई के ठीक पहले उपचारित बीज को उचित राईजोबियम कल्चर से उपचारित कर बुआई करनी चाहिए।
जो किसान भाई खरीफ प्याज का बिचड़ा अब तक नहीं गिराये हों, उथली क्यारिओं में यथाशीघ्र नर्सरी गिरावें। नर्सरी में जल निकास की व्यवस्था रखें। एन0-53, एग्रीफाउण्ड डीक रेड, अर्का कल्याण, भीमा सुपर खरीफ प्याज के लिए अनुशंसित किस्में है। बीज को कैप्टान या थीरम प्रति 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजोपचार कर लें। पौधशाला को तेज धूप एवं वर्षों से बचाने के लिए 40% छायादार नेट से 6-7 फीट की ऊचाई पर ढक सकते है। प्याज के स्वस्थ पौध के लिए पौधशाला से नियमित रूप से खरपतवार को निकालते रहें। कीट-व्याधियों से नर्सरी की निगरानी करते रहें।
लीची के बागों में फलों के तोड़ाई के बाद बागों की सफाई व पेड़ों के उम्र के अनुसार अनुशंसित उर्वरकों का व्यवहार करें, जिससे अगले वर्ष वृक्षों के फलन वृद्धि में सहायक होगा।

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