द न्यूज 15
नई दिल्ली। दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अपना वादा याद दिलाने के लिए डीटीसी के ठेका कर्मियों ने दो से दस फ़रवरी के बीच अभियान चलाकर ठेकाकर्मियों को परमानेंट किए जाने की मांग की है। ऐक्टू से सम्बद्ध ‘डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर’ ने इस संबंध में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि दिल्ली परिवहन निगम के कर्मचारियों के बीच अपनी समस्याओं को लेकर अभियान चलाया जा रहा है। डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार को चेतावनी के साथ समाप्त हुआ। इस कार्यक्रम में ‘डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर’ द्वारा डीटीसी के सभी डिपो में पोस्टर लगाये गए और लगभग दो दर्जन ‘गेट मीटिंग’ की गई।
बयान के अनुसार, दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा चुनाव के पहले डीटीसी कर्मचारियों को किये हुए वादों, जैसे सभी कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पक्का करना इत्यादि को लेकर न तो दिल्ली सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही कर्मचारियों की अन्य मांगों को सुनने के लिए तैयार है। ऐसे में मजबूर होकर, यूनियन को मजदूरों-कर्मचारियों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीन हो चुके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ‘शव यात्रा’ निकालकर अपना रोष प्रकट करना पड़ा।
केजरीवाल सरकार की वादाखिलाफ़ी : दिल्ली के मजदूरों-कर्मचारियों के बीच 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी द्वारा जारी ‘मैनिफेस्टो’ को लेकर काफी आशाएं थी। परन्तु दिल्ली सरकार अपने मैनिफेस्टो में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पक्का करने के वादे से पूरी तरह से पीछे हट चुकी है। इतना ही नहीं दिल्ली परिवहन निगम के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पक्के कर्मचारियों से बहुत कम वेतन पर काम करना पड़ रहा है जो कि सरासर गैर-कानूनी है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने संबोधनों में डीटीसी कर्मचारियों को किये गए वादे कभी पूरे नहीं किये। गौरतलब है कि डीटीसी प्रबंधन के मुखिया स्वयं परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत हैं, परन्तु इसके बावजूद, डीटीसी प्रबंधन या दिल्ली सरकार कर्मचारियों के मुद्दों को लेकर बातचीत तक के लिए तैयार नहीं है।
यदि दिल्ली सरकार, दिल्ली के मजदूरों की बात तक नहीं सुनती, तो मुख्यमंत्री चुनावों से पहले अन्य राज्यों में जाकर मेहनतकश जनता से झूठे वादे क्यों कर रहे हैं ? जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के कर्मचारियों से वादाखिलाफी कर रहे हैं, उससे साफ़ है कि अन्य राज्यों में इनकी पार्टी द्वारा किये जा रहे ‘चुनावी वादे’ खोखले साबित होंगे।
डीटीसी को बंद करने की साज़िश का आरोप : डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर (ऐक्टू) के महासचिव राजेश बताते हैं कि यह इस देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि केंद्र और राज्य की सरकारें निजीकरण-ठेकेदारी की नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं। मोदी सरकार एयर इंडिया से लेकर भारतीय रेल और तमाम सार्वजनिक उपक्रम बेच रही है और दिल्ली सरकार धीरे-धीरे डीटीसी को खत्म करके जनपरिवहन को निजी हाथों में सौंपना चाहती है।
जहां एक ओर केंद्र सरकार मजदूर-विरोधी श्रम कोड लागू कराने में लगी हुई है वही दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री भी इन मजदूर-विरोधी श्रम कोड के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। पूरे देश में बढ़ती महंगाई – बेरोज़गारी और असमानता से लड़ने की जगह सभी सरकारी-सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों को ठेके पर दिया जा रहा है। दिल्ली परिवहन निगम भी ठेका-कर्मचारियों के बल पर ही बसें चला पा रहा है, परन्तु उन्हें समान काम का समान वेतन तक नहीं दिया जा रहा।
कॉमनवेल्थ खेलों के समय डीटीसी के लिए खरीदी गई बसों की हालत अब बिल्कुल जर्जर है परन्तु सरकार डीटीसी में नए बस नहीं ला रही – डीटीसी के वर्कशॉप को बंद कर दिया गया है और डिपो को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। ऐसे में दिल्ली परिवहन निगम ज्यादा दिन तक बचा नही रह सकता, जिसके लिए मौजूदा राज्य सरकार ज़िम्मेदार होगी।
दिल्ली सरकार को चेतावनी : ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष संतोष राय बताते हैं कि इतने लम्बे अभियान के बावजूद, प्रबंधन या सरकार ने यूनियन को बातचीत तक के लिए नहीं बुलाया। डीटीसी कर्मचारी पूर्व में भी लम्बे और सफल आन्दोलन लड़ चुके हैं। अगर डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार अपना अड़ियल रवैया नहीं छोड़ते तो निश्चित तौर पर हम दूसरे राज्यों के कर्मचारियों को भी ‘झूठी’ और मजदूर-विरोधी सरकार की सच्चाई बताने जाएंगे।
डीटीसी कर्मचारी इससे पहले कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं, इस बार हम ‘आम आदमी पार्टी’ के खिलाफ पंजाब जाने को मजबूर हो जाएंगे। इस बारे में प्रबंधन और मुख्यमंत्री को भी सूचित किया जा चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि हम अभी भी डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार से बात करने की कोशिश कर रहे हैं परन्तु उनके तरफ से हमें अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।
केजरीवाल सरकार की वादाखिलाफ़ी : दिल्ली के मजदूरों-कर्मचारियों के बीच 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी द्वारा जारी ‘मैनिफेस्टो’ को लेकर काफी आशाएं थी। परन्तु दिल्ली सरकार अपने मैनिफेस्टो में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पक्का करने के वादे से पूरी तरह से पीछे हट चुकी है। इतना ही नहीं दिल्ली परिवहन निगम के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पक्के कर्मचारियों से बहुत कम वेतन पर काम करना पड़ रहा है जो कि सरासर गैर-कानूनी है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने संबोधनों में डीटीसी कर्मचारियों को किये गए वादे कभी पूरे नहीं किये। गौरतलब है कि डीटीसी प्रबंधन के मुखिया स्वयं परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत हैं, परन्तु इसके बावजूद, डीटीसी प्रबंधन या दिल्ली सरकार कर्मचारियों के मुद्दों को लेकर बातचीत तक के लिए तैयार नहीं है।
यदि दिल्ली सरकार, दिल्ली के मजदूरों की बात तक नहीं सुनती, तो मुख्यमंत्री चुनावों से पहले अन्य राज्यों में जाकर मेहनतकश जनता से झूठे वादे क्यों कर रहे हैं ? जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के कर्मचारियों से वादाखिलाफी कर रहे हैं, उससे साफ़ है कि अन्य राज्यों में इनकी पार्टी द्वारा किये जा रहे ‘चुनावी वादे’ खोखले साबित होंगे।
डीटीसी को बंद करने की साज़िश का आरोप : डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर (ऐक्टू) के महासचिव राजेश बताते हैं कि यह इस देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि केंद्र और राज्य की सरकारें निजीकरण-ठेकेदारी की नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं। मोदी सरकार एयर इंडिया से लेकर भारतीय रेल और तमाम सार्वजनिक उपक्रम बेच रही है और दिल्ली सरकार धीरे-धीरे डीटीसी को खत्म करके जनपरिवहन को निजी हाथों में सौंपना चाहती है।
जहां एक ओर केंद्र सरकार मजदूर-विरोधी श्रम कोड लागू कराने में लगी हुई है वही दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री भी इन मजदूर-विरोधी श्रम कोड के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। पूरे देश में बढ़ती महंगाई – बेरोज़गारी और असमानता से लड़ने की जगह सभी सरकारी-सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों को ठेके पर दिया जा रहा है। दिल्ली परिवहन निगम भी ठेका-कर्मचारियों के बल पर ही बसें चला पा रहा है, परन्तु उन्हें समान काम का समान वेतन तक नहीं दिया जा रहा।
कॉमनवेल्थ खेलों के समय डीटीसी के लिए खरीदी गई बसों की हालत अब बिल्कुल जर्जर है परन्तु सरकार डीटीसी में नए बस नहीं ला रही – डीटीसी के वर्कशॉप को बंद कर दिया गया है और डिपो को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। ऐसे में दिल्ली परिवहन निगम ज्यादा दिन तक बचा नही रह सकता, जिसके लिए मौजूदा राज्य सरकार ज़िम्मेदार होगी।
दिल्ली सरकार को चेतावनी : ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष संतोष राय बताते हैं कि इतने लम्बे अभियान के बावजूद, प्रबंधन या सरकार ने यूनियन को बातचीत तक के लिए नहीं बुलाया। डीटीसी कर्मचारी पूर्व में भी लम्बे और सफल आन्दोलन लड़ चुके हैं। अगर डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार अपना अड़ियल रवैया नहीं छोड़ते तो निश्चित तौर पर हम दूसरे राज्यों के कर्मचारियों को भी ‘झूठी’ और मजदूर-विरोधी सरकार की सच्चाई बताने जाएंगे।
डीटीसी कर्मचारी इससे पहले कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं, इस बार हम ‘आम आदमी पार्टी’ के खिलाफ पंजाब जाने को मजबूर हो जाएंगे। इस बारे में प्रबंधन और मुख्यमंत्री को भी सूचित किया जा चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि हम अभी भी डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार से बात करने की कोशिश कर रहे हैं परन्तु उनके तरफ से हमें अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।