बेशर्मी का रोग

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कैकयी संग भरत के, बदल गए अहसास।
भाई ही अब चाहता, भाई का वनवास।।

सदा समय है खेलता, स्वयं समय का खेल।
सौरभ सब बेकार हैं, कोशिशें और मेल।।

फोन करें बस काम से, यूं ना पूछे हाल।
बोलो कब तक हम रखें, सौरभ उनका ख्याल।।

जिन रिश्तों पर था मुझे, कल तक जो अभिमान।
दिन बदले तो सब गए, राख हुई अब शान।।

बलिदानों को भूलकर, चाहें सारे भोग।
सौरभ रिश्तों को लगा, बेशर्मी का रोग।।

बुरा कहूं तो सामने, चाहे छूटे साथ।
रखकर दिल में खोट मैं, नहीं पकड़ता हाथ।।

कहता हूं सब सामने, सीधी सच्ची बात।
मीठेपन के जहर से, कभी न करता घात।।

डॉ. सत्यवान सौरभ

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