धर्म हुआ चुप और अधर्म कर रहा तांडव

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अधर्म कर रहा तांडव
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डॉ. कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’

धर्म तांडव कर रहा है। धर्म चुपचाप सहमा हुआ, सिर झुकाए ,असहनीय पीड़ा का अनुभव कर रहा है। सभ्यता- शऊर असभ्य समाज के बीच घिरा बेबस और मज़बूर है।

आम जीवन की दुर्दशा भूख, बेरोज़गारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से बदहाल है पर धर्म के नाम पर पाखंड अपने चरम पर है । पत्थर पूजे जाते हैं और बेकसूर, आतताइयों के साए में ज़िंदगी की गुहार लगा रहे हैं।

धर्म के कट्टरवाद के कारण ही मानवतावादी दृष्टिकोण से भरपूर जैन और बौद्ध धर्म का विकास हुआ। उनकी उदारता सद्भावना ने सबको अपनी ओर अनायास ही आकर्षित कर लिया।

ओम् शिवत्व की आत्मा को मारकर धर्म के ठेकेदार इंसानियत का ख़ून कर रहे हैं । धर्म संसद के नाम पर अभद्र और क्रूर व्यवहार कर रहे हैं। राष्ट्र को समर्पित महात्माओं के लिए अपशब्द का प्रयोग कर रहे हैं। निःसंदेह ढोंग करने वालों ने अपने छद्म वेश को, आस्था के नाम पर, भोली जनता को ठगने और स्वार्थ सिद्धि के लिए लोलुपता से भरा प्रयोग करना चाह रहे हैं। राष्ट्र को ऐसी प्रवृत्ति से लगातार अपमानित कर रहे हैं।

संविधान की आत्मा को मारकर चरमपंथी कोई भी हो पनप नहीं सकता। हिंदुत्व की आंखें खूंखार नहीं होती। सबको गले लगाने, अपना समझने का भाव कहीं खो रहा है । धर्म के नाम पर नृशंसता- क्रूरता बढ़ रही है और देश के नेता मौन हैं। चुप्पी साधे देश को टूटते -बिखरते देख रहे हैं। शहीदों को अपमानित करने वालों के लिए दो कठोर शब्द भी नहीं निकल रहे हैं। धर्म में बढ़ता उन्माद सिर्फ़ हिंसा का पोषक बनता जा रहा है। अभद्रता, अशिष्टाचार, अमर्यादित भाषा यही मात्र संस्कार बचा है।

न जाने हिंदुत्व के पीछे कौन षड्यंत्र कर रहा है। जब आपस में सब गले मिलने को आतुर हैं तो कौन गला काट रहा है ? सबके लिए सुख शांति की कामना के पीछे कौन वातावरण को अशांत बना रहा है?

राजनीति में फैला भ्रष्टाचार आम जीवन में ज़हर भर रहा है ।अपनी लोलुपता के आगे जनता के जीवन को नर्क बना दिया है । धर्म को आडंबर का चोला पहना उन्माद को बढ़ाया जा रहा है ताकि एक दूसरे के प्रति नफ़रत द्वेष की आग में सब निरंतर जलते रहें।

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपमान भरे शब्द मुंह से निकालने वाले भूल जाते हैं कि उनका समाज में कैसा योगदान है। राष्ट्र के लिए समर्पित मानवीय संवेदनाओ के प्रहरी और अग्रदूत लिए कुछ भी कहने से पहले हमें अपनी आत्मा में झांकना होगा कि समाज के लिए स्व से ऊपर उठकर पर के लिए क्या किया? ओछी मानसिकता भारतीय संस्कारों की पवित्रता को अपवित्र कर रही है।” सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ” को आदर्श मानने वाली भारतीय संस्कृति वर्तमान में घोर संकट में है। धर्म के नाम पर अधर्म का परचम लहरा रहा है। हिंसा करने वालों का कद इस क़दर व्यापक होता जा रहा है कि अहिंसक प्रवृत्ति भयभीत और आर्तनाद कर रही है।

मनुष्य के भीतर पशुत्व का वर्चस्व बढ़ रहा है । ऐसी प्रवृतियां वातावरण को भयावह बनाएंगी। सात्विक गुणों से भरपूर , सुंदर सकारात्मक भावों -विचारों को व्यापकता से समाज में रोपना होगा । कोमल भावनाएं , मानवतावादी दृष्टिकोण से ही सभ्य समाज का निर्माण संभव है । आत्मानुशासन बहुत आवश्यक है। आत्मा के अवलोकन की बार-बार आवश्यकता है। दूसरे के गिरेबान में झांकने से पहले अपने अंदर टटोलना होगा। क्रूरता, पशुता आदिमानव की प्रवृत्ति थी । सभ्य समाज के सुंदर गुणों ने उन्हें पराजित किया और अब फ़िर से हम अपनी को पीछे धकेल रहे हैं, गर्त में जा रहे हैं । धर्म के सार को समझना ज़रूरी है । धर्मांधता, रूढ़िवादिता की बेड़ियों को तोड़कर आचरण की शुद्धि ही सभ्यता को बचा सकती है ।अधर्म को बढ़ने से रोकना ही होगा वरना धर्म की स्थापना नहीं हो पाएगी।

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