मोक्ष और कल्याण से इंकार

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राजेश बैरागी

ग्रामीणों की चिंता का विषय यह नहीं था कि विकास क्यों हो। उनका चिंतन इस पर था कि विकास तो हो परंतु उनके अपने आप रास्ते में घुस गये घरों को कुछ न हो।इसी गंभीर विषय को लेकर बैठक चल रही थी। ग्रामीणों में कुछ धोती कुर्ता वाले थे तो कुछ पैंट शर्ट वाले और कुछ कोट पैंट वाले भी थे। यह ग्रेटर नोएडा का एक गांव है जिसके बाहर से कभी सिंचाई विभाग की एक छोटी नहर बहती थी। गांव का विस्तार नहर पार हुआ तो यह बीच में आ गई। प्राधिकरण विकास करने आया तो नहर की आवश्यकता नहीं रही। अब ग्रामीण इसका उपयोग ना बहने वाले नाले के रूप में करते हैं। सरकार हो या नागरिक सबने नदी,नहरों को खुदा खुदाया नाला मान लिया है और अपनी सारी गंदगी उसके हवाले कर दी है। गंगा, यमुना,नहर, बरसाती नाले सभी मनुष्य की उत्पन्न की हुई गंदगी को ढो रहे हैं। बैठक में प्राधिकरण के नुमाइंदे मौजूद थे। वे विकास का पैगाम लेकर आए थे।

ग्रामीणों को विकास से एतराज नहीं था परंतु प्राधिकरण के नुमाइंदों के हिसाब से नहीं।नाली, सीवर सब बनें परंतु घर टस से मस न हों।जो जहां तक फैल गया है वहां से जरा भी पीछे होने को तैयार नहीं। ऐसे समय पर प्राधिकरण के अभियंताओं की बाल सुलभ लीला का वर्णन करना आसान नहीं है। वे मासूमियत से ग्रामीणों से ही पूछते हैं,-तो फिर क्या करें? दरअसल वे समस्या का समाधान नहीं करना चाहते बल्कि उससे छुटकारा पाना चाहते हैं। कुछ ग्रामीण अज्ञानतावश चुप्पी साध लेते हैं तो कुछ ज्ञान बघारने लगते हैं।

यहां भी यही हुआ और निर्णय हुआ कि प्राधिकरण अपने विकास को अपने पास रखे। ग्रामीण जिस हाल में हैं, अच्छे हैं।नाले में मच्छर पलें तो पलें, घरों में दुर्गंध आए तो आए क्या किया जा सकता है। यदि इन ग्रामीणों को कहीं भगवान मिल जाएं और थोड़ी सी तपस्या करने के बदले मोक्ष और कल्याण का ऑफर दें तो शायद ये उसे भी नकार दें।तभी एक प्रबुद्ध ग्रामीण ने नाला बन गई नहर में पाइप बिछाकर घरों के पानी,मल मूत्र को बाहर ले जाने का सुझाव दिया। अभी ग्रामीणों की सहमति से समस्या से छुटकारा पा गए प्राधिकरण के नुमाइंदों के इस सुझाव से मुंह लटक गये।

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