नई दिल्ली, दिल्ली हाईकोर्ट शुक्रवार को प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात स्थिति राहत कोष (पीएम केयर्स फंड) से संबंधित याचिकाओं पर 10 दिसंबर को सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। इससे पहले, मामले को 10 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन संबंधित पीठ के इकट्ठा नहीं होने के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को मामले में याचिकाओं की जल्द सुनवाई की अनुमति दी।
सम्यक गंगवाल द्वारा अधिवक्ता देबोप्रियो मौलिक और आयुष श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिकाओं में पीएम केयर्स फंड को संविधान के तहत एक ‘स्टेट’ के तौर पर घोषित करने और भारत के प्रधानमंत्री का नाम का इसकी वेबसाइट पर उपयोग नहीं करने की मांग की गई है।
उन्होंने पीएम केयर्स फंड को अपनी वेबसाइट, ट्रस्ट डीड अन्य आधिकारिक या अनौपचारिक संचार और विज्ञापनों पर भारत के राज्य प्रतीक का उपयोग करने से रोकने की भी मांग की है।
याचिका के जवाब में, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि पीएम केयर्स फंड में व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा दिया गया स्वैच्छिक दान शामिल है और यह किसी भी तरह से केंद्र सरकार के व्यवसाय या कार्य का हिस्सा नहीं है। इसके अलावा, यह केंद्र सरकार की किसी सरकारी योजना या व्यवसाय का हिस्सा नहीं है और एक सार्वजनिक ट्रस्ट होने के नाते, यह भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) के ऑडिट के अधीन भी नहीं है।
केंद्र द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण के अनुसार, पीएम-केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के दायरे में एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, ये स्पष्ट करता है कि कोई भी सरकारी पैसा पीएम-केयर्स फंड में जमा नहीं किया जाता है और केवल बिना शर्त और पीएम-केयर्स फंड के तहत स्वैच्छिक योगदान स्वीकार किए जाते हैं।
पीएमओ द्वारा दायर एक हलफनामे में कहा गया है, “यह दोहराया जाता है कि ट्रस्ट का फंड भारत सरकार का फंड नहीं है और यह राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है।”
हलफनामे में कहा गया है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ ऑडिट रिपोर्ट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है।
केंद्र ने आगे कहा कि ट्रस्ट किसी भी अन्य धर्मार्थ ट्रस्ट की तरह बड़े जनहित में पारदर्शिता और जनहित के सिद्धांतों पर काम करता है और इसलिए, पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी प्रस्तावों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है।
केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से याचिका को खारिज करने का आग्रह करते हुए कहा था कि इस तरह की याचिका कानूनी रूप से बनाए रखने योग्य नहीं है।
एक अन्य याचिका में गंगवाल ने केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी और पीएमओ के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें पीएम केयर्स फंड से संबंधित दस्तावेज मांगने वाले आरटीआई आवेदन को खारिज कर दिया गया था।