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विपक्ष को तरजीह न देने से मध्य प्रदेश में चुनाव हारी कांग्रेस  

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डॉ. सुनीलम

चुनाव के पहले तमाम राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस को 120 – 150 सीटें दे रहे थे, चुनाव के बाद एग्जिट पोल में इसके उलट भाजपा को बहुमत मिलता दिखला रहे थे। मैंने चुनाव के दौरान एक महीने में जो कुछ देखा उसके आधार पर लिख रहा हूं ।  2018 के चुनाव की तुलना में मत प्रतिशत लगभग एक प्रतिशत बढ़ा है। पिछली बार कांग्रेस को 114 सीटें तथा भाजपा को 109 सीटें मिली थी । जबकि भाजपा की तुलना में कांग्रेस को  0.6% वोट कम मिला था। आम धारणा यह थी कि मध्य प्रदेश में परिवर्तन होने जा रहा है, कांग्रेस सरकार बनाने वाली है। मध्य प्रदेश के सभी अंचलों में कांग्रेस बढ़त हासिल करते दिखाई दे रही थी। ग्वालियर- चंबल संभाग में वह नंबर एक पर है, महाकौशल में भी प्रदर्शन बेहतर होने की उम्मीद थी। यह माना जा रहा था कि विंध्य में पिछली बार की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत बेहतर होगा। मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड में भी कांग्रेस के लिए अच्छी खबर थी। लेकिन एग्जिट पोल सभी इलाकों में भाजपा को आगे दिखला रहे थे।  इस सब के बावजूद भी मेरा आंकलन यह था कि मध्य प्रदेश में चुनाव फंसा हुआ है क्योंकि लाड़ली बहना मजबूती से शिवराज सिंह चौहान को थामे खड़ी है। कांग्रेस और भाजपा के अलावा अन्य दल और सामाजिक संगठन लगभग 50 विधानसभा क्षेत्रों में 15 से 40 हजार तक वोट लेते दिखलाई पड़ रहे थे।

लाडली बहना योजना शिवराज सिंह का तुरुप का इक्का – भाजपा ने 18 वर्षों में तमाम कल्याणकारी योजनाएं चलाई लेकिन चुनाव में सर्वाधिक चर्चा लाडली बहना योजना की हुई है। हालांकि लाडली बहना योजना का लाभ किसी भी गांव या वार्ड में 50% महिलाओं को नहीं मिला है, लेकिन 1250 रुपए की 6 किस्तें आने से महिलाएं काफी उत्साहित हैं, जिन्हें यह पैसा नहीं मिला है उनकी उम्मीद भी कायम है। लाड़ली बहनें परिवारजनों को यह समझाते देखी गई कि उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया तो यह पैसा बंद हो जाएगा। जबकि कांग्रेस पार्टी ने नारी सम्मान योजना के 1500 रुपये देने की गारंटी देने वाले फार्म प्रदेश भर में महिलाओं से भरवाएं है। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि कर्नाटक में कांग्रेस ने महिलाओं को 2000 रूपए देने का वादा किया था तथा उसे पूरा भी किया था। यदि इस तथ्य को कांग्रेस प्रभावशाली तरीके से महिला मतदाताओं तक पहुंच पाती तो शायद लाडली बहना योजना का चुनाव पर इतना असर पड़ता दिखाई नहीं पड़ता।

50 सीटों पर था त्रिकोणीय मुकाबला : कांग्रेस चाहती तो विपक्षी दल एकजुट हो सकते थे। जानकारी के अनुसार समाजवादी पार्टी 6 सीटों पर समझौता करने को तैयार हो गई थी जबकि 2018 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को 6 सीटों पर 25 से 45 हजार वोट मिला था तथा एक विधायक जीता था। 2003 में समाजवादी पार्टी के आठ विधायक थे। मैं स्वयं विधायक दल का नेता था। लेकिन कांग्रेस ने एक भी सीट देने से इनकार कर दिया। सीपीआई और सीपीएम को 1-1, जयस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आम आदमी पार्टी को तीन-तीन सीटें देकर यानी 230 में से 15 सीटें विपक्षी पार्टी को देकर कांग्रेस, भाजपा के खिलाफ सशक्त बन सकती थी लेकिन इसकी आवश्यकता कांग्रेस ने नहीं समझी। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। यदि विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन एक हो जाता तो उसे इसका लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मिलता।

कांग्रेस ने नहीं दी, विपक्षी एकता को तरजीह- मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी 67,  बसपा 178, गोंडवाना 60, आम आदमी पार्टी 66 और जयस समर्थित 36 सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे। इसके अलावा चंद्रशेखर रावण की पार्टी, गुजरात और राजस्थान में सक्रिय आदिवासियों की ‘बाप पार्टी’ मध्य प्रदेश के भीलांचल में सक्रिय दिखलाई पड़ रही थी।
यह कहना मुश्किल था कि इन पार्टियों के कितने प्रत्याशी चुनाव जीतेंगे ? लेकिन मेरे आंकलन के अनुसार समाजवादी पार्टी कम से कम 10, बसपा – गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठबंधन 15, आम आदमी पार्टी 5 , जयस समर्थित 5  सीटों पर 15 से 40 हजार वोट हासिल करने की स्थिति में दिखलाई पड़ रहे थी। इसका मतलब है कि प्रदेश की 40 से 50 सीटें ऐसी मानी जा रही थी कि जिन पर त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है था। इसका सर्वाधिक असर कांग्रेस और भाजपा पर पड़ेगा। इसका आंकलन हर विधानसभा क्षेत्र के आधार पर ही संभव था।

ओल्ड एज पेंशन योजना का लाभ कांग्रेस को मिलने की उम्मीद थी। कांग्रेस पार्टी ने ओल्ड एज पेंशन के मुद्दे पर चुनाव में जीत हासिल की थी। कांग्रेस शासित राज्यों में भी इस योजना को लागू किया था। इसका लाभ स्पष्ट तौर पर कांग्रेस पार्टी को मिलता दिखलाई पड़ रहा था।