पुष्पा सिंह विशेन
आज हमारे देश में बच्चों की मनोदशा को नहीं समझते हुए अपनी मर्जी थोपने की एक प्रथा सी चल गयी है। लगभग साठ प्रतिशत लोगों की यही मानसिकता है। जिसमें अमीर एवं मध्यम वर्गीय परिवारों के लोगों, माता-पिता मुख्यतः अपने बच्चों पर अपनी मनमानी थोपने में अग्रणी हैं। वो बचपन से ही अपने जीवन को सुखमय बनाने की अपेक्षा बच्चों को प्रताड़ित करने का काम आरंभ कर देते हैं। जिससे बच्चों के मन पर बहुत ही बड़ा बोझ पड़ना आरंभ हो जाता है। और वो अपने भीतर चिंता की चिता तैयार करने लगते हैं कि मेरे पापा ये नहीं बन पाए उनका सपना पूरा करना मेरा मकसद होना चाहिए। बच्चों को अपने भीतर जद्दोजहद करना पड़ता है।और टैलेंटेड बच्चे अपने लक्ष्य को कहीं भी कमतर नहीं आंकते हैं। उन्हें अपना उद्देश्य भी अपने माता-पिता के उद्देश्य से बड़ा ही लगता है।और उसपर कोचिंग सेंटर की पढ़ाई के तरीके की जिम्मेदारी । भोजन, नाश्ता और रहन सहन की व्यवस्था का चरमरा जाना। माता पिता से दूर रह कर अनेक समस्याओं का जीवन में आना बहुत ही कठिन दौर होता है। ऐसे में बाहर से कोई भी सकारात्मक, अपनेपन की उम्मीद नहीं रहती है और बाहर कोचिंग का प्रेशर यानि दबाव। ऐसे में बच्चों को लगता है कि घर वाले उनकी भावनाओं एवं उद्देश्य को कमतर आंकते हैं।और ये कोचिंग की दादागिरी बहुत ही भारी पड़ जाता है।और ऐसे में बच्चों की आत्मा हताहत होती है और दिमाग जीवन की समाप्ति की ओर मन एवं दिल को आकर्षित करने लगता है और आत्मा भी ऐसे जीवन से छुटकारा पाना चाहती है।
माता पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों का मनोविश्लेषण करें और उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें उनके उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपना स्नेह और सहयोग प्रदान करते हुए उत्साहित करें। लेकिन ऐसा नहीं करते हुए, अपने बच्चों को मौत के मुंह में ढकेल कर पछतावा करना आसान हो गया है। अगर आप जो भी बनना चाहते थे लेकिन नहीं बन पाए।यह आपका जीवन था और आपके माता पिता की मजबूरी होगी। अतीत के सपनों को भविष्य पर थोपना बहुत बड़ी नासमझी है। ये एक प्रकार की गलत प्रवृत्ति है जिससे सभी माता पिता को बचना चाहिए।आपका बच्चा जो बनना चाहता है उसे वहीं बनने दीजिए।
बच्चों की जिंदगी बाधित करना कहां का उद्देश्य है। ऐसा शिक्षित लोग ही कर रहे हैं।
मेरा उन सभी माता पिता से यही कहना है कि आप अपनी सुविधानुसार अपनी जिंदगी जी रहे हैं।और अपने बच्चों को उनके अनुसार उन्हें अपना कैरियर बनाने की सुविधा उपलब्ध कराईए ।और आपका बच्चा जो बनना चाहता है उसे सहयोग करिए। इसमें माता का योगदान भी बहुत ही हितकर होना चाहिए। भारतीय मां सोचती है कि उसका बच्चा अपने पिता का सपना पूरा करे।
आखिर क्यों ऐसा करें? आजकल के बच्चे बहुत ही सुलझे हुए तरीके से अपने उद्देश्य को चयनित किया करते हैं तो उनके उपर अपनी इच्छाओं का तोप चला कर उनका जीवन सुखमय बनाने की जगह समाप्त कर देना घोर अन्याय है।