हर डूबने वाले को सुनिश्चित उदय की सीख देता है छठ महापर्व : गरिमा

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अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुरूप घर की छत पर स्थापित ‘घाट’ पर महापौर ने रखा छठ का महाव्रत 

बिट्टू कुमार

पश्चिम चम्पारण/बेतिया। महापौर गरिमा देवी सिकारिया ने पारिवारिक परंपरा के अनुरूप अपने घर की छत पर बने कृत्रिम पोखर के माध्यम से छठ का व्रत किया। शुक्रवार को उदय कालीन सूर्य को नेम टेम से अर्घ्य देकर अपने परिजनों के साथ 36 घंटे के निर्जला महाव्रत को पूरा किया। इस मौके पर श्रीमती सिकारिया ने कहा कि प्रायःपूरी दुनिया में मान्यता है कि जिसका उदय हुआ है, उसका अस्त होना निश्चित है, लेकिन अपने बिहार पर केंद्रित हमारा छठ महापर्व अनूठा सीख देता है कि – जो डूबता है,उसका उदय भी निश्चित है।

अनुपम सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शान्ति, समृद्धि और सादगी में समाहित सूर्य देव की उपासना का बिहार केंद्रित छठ महापर्व देश और दुनिया का एक अनूठा उदाहरण है। श्रीमती सिकारिया ने कहा कि यह एक ऐसी पूजा जिसमें पंडित, पुजारी विशेष महत्ता नहीं होती, इसमें जिसमें सबके लिए प्रत्यक्ष सूर्य देव के प्रति लोक आस्था के अनुरूप घर घर में पूजा की जाती है। इसकी शुरुआत डूबते सूर्य की अर्घ्य पूजा के साथ होती है। इसमें व्रती की जाति या समुदाय की कोई महत्ता नहीं होती। इस उपासना में घाट पर कोई उच्च-निम्न छोटा बड़ा कोई नहीं होता है। सबका सहयोग संभाव से सभी करते हैं। हर वर्ग के अमीर-गरीब व्रती का ‘प्रसाद’ सभी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।

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