नई दिल्ली| केंद्र सरकार ने महिला शक्ति केंद्रों पर कोविड महामारी के दौरान पिछले तीन सालों में सबसे कम खर्च किया है। साल 2020-21 के लिए 100 करोड़ रुपये खर्च किये गए, जबकि इसे पहले के सालों में 150 और 267 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने शुक्रवार को लोकसभा में इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में नवंबर, 2017 में महिला शक्ति केंद्र (एमएसके) योजना को मंजूरी दी गई थी। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं के लिए बनाई गई योजनाओं और कार्यक्रमों के अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण की सुविधा प्रदान करना है।
यह योजना राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के लागत साझाकरण अनुपात के साथ पूर्वोत्तर और विशेष श्रेणी के राज्यों को छोड़कर (जहां वित्त पोषण अनुपात 90:10 है) इस माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100 फीसदी केंद्रीय वित्त पोषण प्रदान किया जाता है।
योजना के तहत भारत सरकार से बाद की किश्तों को जारी करने की मांग करने से पहले राज्य योजना के कार्यान्वयन के लिए अपने संबंधित शेयरों का योगदान करते हैं। पिछले वर्षों के दौरान, योजना के तहत सरकार द्वारा आवंटित बजट की राशि रुपये वित्त वर्ष 2018-19 के लिए 267.30 करोड़, वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 150.00 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 100.00 करोड़ रुपये किये गये।
एमएसके योजना राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरीय टास्क फोर्स को उनके संबंधित स्तरों पर समीक्षा, निगरानी और समन्वय के लिए प्रदान करती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए राज्यों व जिलों के दौरे के साथ-साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस और बैठकें भी करता है।
महिला उम्मीदवारों को जिला स्तरीय महिला केंद्रों में महिला कल्याण अधिकारी और जिला समन्वयक के रूप में कार्य करने के लिए महिला शक्ति केंद्र योजना कार्यान्वयन दिशानिर्देशों के अनुसार वरीयता दी जाती है।