Category: कविता

  • चलते चीते चाल

    चलते चीते चाल

    माना चीते देश में, हुए सही आयात।
    मगर करेगा कौन अब, गदहों का निर्यात।।

    आये चीते देश में, खर्चे खूब करोड़।
    भूखी गाय बिलख रही, नहीं मौत का ओड़।।

    सौरभ मेरे देश में, चढ़ते चीते प्लेन।
    गौ मात को जगह नहीं, फेंक रही है क्रेन ।।

    भरे भुवन मे चीखती, माता करे पुकार।
    चीतों पर चित आ गया, कौन करे दुलार।।

    क्या यही है सभ्यता, और यही संस्कार।
    मांग गाय के नाम पर, चीता हिस्सेदार।।

    ये चीते की दहाड़ है, गुर्राहट; कुछ और।
    दिन अच्छे है आ गए, या बदल गया दौर।।

    मसलों पर अब है नहीं, आज देश का ध्यान।
    चिंता गौ की कर रहे, कर चीता गुणगान।।

    देख सको तो देख लो, अब भारत का हाल।
    गैया कब तक अब बचे, चलते चीते चाल।।

    कौन किसी का साथ दे, किस विध ढूँढे़ राम।
    गाय धरा पर जब करे, चीते खुल आराम।।

    -डॉ सत्यवान सौरभ

  • पुलिस हमारे देश की…

    पुलिस हमारे देश की…

    पुलिस हमारे देश की, हँस-हँस सहती वार।
    परिजनों से दूर रहे, ले कंधे पर भार ।।

    होली या दीपावली, कैसा भी हो काम।
    पुलिस रक्षक दल बने, बिना करे विश्राम।।

    हम रहते घर चैन से, पहरा दे दिन रात।
    पुलिस सामने आ अड़े, सहने हर आघात।।

    अमन शांति कायम रहे, प्रतिपल है तैयार।
    सतत सजग हो कर करे, अपराधी पर वार।।

    विपदा में बेख़ौफ़ हो, देती अपनी जान।
    ऋणी हैं सभी पुलिस के, देते हम सम्मान।

    खाकी की सब मुश्किलें, दूर करे सरकार।
    व्यवस्थित रहे कायदे, पुलिस बने आधार।।

    फिक्र नहीं कोई कहीं, न्यायालय है मौन।
    पुलिस चोर की गाँठ को, खोले सौरभ कौन।।

    चोर, जुआरी घूमते, पीकर रात शराब।
    पुलिस प्रशासन सो रहा, दे अब कौन जवाब।।

    सीटी मारे जब पुलिस, बजे हृदय में तार।
    अभी तुम्हारी ले खबर, उठती एक पुकार॥

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से)

  • लोकतंत्र अब रो रहा

    लोकतंत्र अब रो रहा

    लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात ।
    संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे, लात ।।

    देश बांटने में लगी, नेताओं की फ़ौज ।
    खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज ।।

    पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान ।
    राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान ।।

    भ्रष्टाचारी कर रहे, घोटाले बेनाप।
    आंखों में आंसू भरे, राजघाट चुपचाप ।।

    जहां कटोरी थी रखी, वही रखी है आज ।।
    ‘सौरभ’ मुझको देश में, दिखता नहीं सुराज ।।

    आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश ।
    बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश ।।

    जनता आपस में भिड़ी, चुनने को सरकार ।
    नेता बाहें डालकर, बन बैठे सरदार ।।

    जिनकी पहली सोच ही, लूट, नफ़ा श्रीमान ।
    पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान ।।

    कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष ।
    जब मतलब हो हाँकता, बनकर ‘सौरभ’ अक्ष ।।

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • कर बैठे हम भूल

    कर बैठे हम भूल

    -डॉ सत्यवान सौरभ

    जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ’ शाम ।
    कीच-गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम ।।

    लालच-नफरत का रहा, असर सदा प्रतिकूल ।
    प्रेम-समर्पण-त्याग है, रिश्तों के अनुकूल ।।

    पद-पैसों की दौड़ में, कर बैठे हम भूल ।
    घर-गमलों में फूल है, मगर दिलों में शूल ।।

    होता नेक गुलाब से, ‘सौरभ’ पेड़ बबूल ।
    सीरत इसकी खार की, जीवन के अनुकूल ।।

    ये कैसी नादानियाँ, ये कैसी है भूल ।
    आज काटकर मूल को, चाहे कल हम फूल ।।

    बिखरे-बिखरे सुर लगें, जमें न कोई ताल ।
    बैठे कौवे हों जहाँ, सभी एक ही डाल ।।

    सूरत फोटो शॉप से, बदल किया प्रचार।
    पर सीरत की एप अब, मिले कहाँ से यार।।

    तुम से हर को चाहिए, कुछ ना कुछ तो भोग।
    राई भर भी है नहीं, बेमतलब के लोग।।

     

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • शिक्षण हुआ अशुद्ध

    शिक्षण हुआ अशुद्ध

    आज बालकों में कहाँ, अब्दुल, नानक, बुद्ध।
    क्यों सौरभ है सोचिये, शिक्षण हुआ अशुद्ध।।

    शिक्षक व्यापारी बने, शिक्षा जब व्यापार।
    खुली दुकानों पर कहाँ, मिलते है संस्कार ।।

    छात्र निर्धन हो रहे, अध्यापक धनवान।
    ऐसी शिक्षा सोचिये, कितनी मूल्यवान ।।

    जैसे गढ़ता ध्यान से, घड़ा खूब कुम्हार।
    लाये बच्चों में सदा, शिक्षक रोज निखार।।

    नैतिकता की राह से, दे जीवन सोपान।
    उनके आशीर्वाद से, बनते हम इंसान।।

    कभी न भूलें हम सभी, शिक्षक का उपकार।
    रचकर नव कीर्तिमान दे, गुरु दक्षिणा उपहार।।

    अंधकार में दीप-सा, उर में भरे प्रकाश।
    शिक्षक सच्चे ज्ञान से, करे दुखों का नाश।।

    आज नहीं पल-पल रहे, हमको शिक्षक याद।
    सदा कृपा जिनकी रही, चखा ज्ञान का स्वाद।।

  • गुरुवर जलते दीप से

    गुरुवर जलते दीप से

    दूर तिमिर को जो करें, बांटे सच्चा ज्ञान।
    मिट्टी को जीवित करें, गुरुवर वो भगवान।।
    जब रिश्ते हैं टूटते, होते विफल विधान।
    गुरुवर तब सम्बल बने, होते बड़े महान।।
    नानक, गौतम, द्रोण सँग, कौटिल्या, संदीप।
    अपने- अपने दौर के, मानवता के दीप।।
    चाहत को पर दे यही, स्वप्न करे साकार।
    शिक्षक अपने ज्ञान से, जीवन देत निखार।।
    शिक्षक तो अनमोल है, इसको कम मत तोल।
    सच्ची इसकी साधना, कड़वे इसके बोल।।
    गागर में सागर भरें, बिखराये मुस्कान।
    सौरभ जिनको गुरु मिले, ईश्वर का वरदान।।
    शिक्षा गुरुवर बांटते, जैसे तरुवर छाँव।
    तभी कहे हर धाम से, पावन इनके पाँव।।
    अंधियारे, अज्ञान को, करे ज्ञान से दूर।
    गुरुवर जलते दीप से, शिक्षा इनका नूर।।

     


    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • पर्दे के मगरूर

    पर्दे के मगरूर

    ‘सौरभ’ मेरी गलतियां, जग में हैं मशहूर ।
    फ़िक्र स्वयं की कीजिये, पर्दे के मगरूर ।।

    मेरे तेवर और हैं, उनके अपने तौर ।
    वो चाहें कुछ और हैं, मैं चाहूँ कुछ और ।।

    मैं कौवा ही खुश रहूँ, मेरी खुद औकात ।
    तू तोते-सा पिंजरे, कहता उनकी बात ।।

    मैं तुमको हँसता मिलूं, डालो जितने जाल ।
    तेरी जो है ख्वाहिशें, तो मेरे हैं ख्याल ।।

    पावन मेरी भावना, मन मेरा उपहार ।
    जैसा भी हूँ सामने, तोलो जितनी बार ।।

    मेरे मन की वेदना, विपुल रत्न अनमोल ।
    पाकर इसको मैं सका, शब्द सीपियाँ खोल ।।

    सीखा मैंने देर से, सहकर लाखों चोट ।
    लोग कौन से हैं खरे, और कहाँ है खोट ।।

    आओ बैठें पास में, समझें हम जज्बात ।
    तू शायर दोहा कहे, मैं ग़ज़लों से बात ।।

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • भीतर-भीतर जंग

    भीतर-भीतर जंग

    उनका क्या विश्वास अब, उनसे क्या हो बात ।
    ‘सौरभ’ अपने खून से, कर बैठे जो घात ।।

    गलती है ये खून की, या संस्कारी भूल ।
    अपने काँटों से लगे, और पराये फूल ।।

    राय गैर की ले रखे, जो अपनों से बैर ।
    अपने हाथों काटते, खुद वो अपने पैर ।।

    अपने अब अपने कहाँ, बन बैठे गद्दार ।
    मौका ढूंढें कर रहे, छुप-छुपकर वो वार ।।

    अपने अपनों से करें, दुश्मन-सा व्यवहार ।
    पहले आंगन में उठी, अब छत पे दीवार ।।

    कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार ।
    परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार ।।

    भाई-भाई से करे, भीतर-भीतर जंग ।
    अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग ।।

    टूट रहा विश्वास अब, करते अपने घात ।
    मन की मन में राखिये, ‘सौरभ’अपनी बात ।।

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • अपने गर्दन काटते

    अपने गर्दन काटते

    नेह-स्नेह सूखे सभी, पाले बैठे बैर ।
    अपने गर्दन काटते, देते कन्धा गैर ।।

    उलटे लटकोगे यहाँ, ज्यों लटका बेताल ।
    अपने हक की बात पर, पूछे अगर सवाल ।।

    भैया खूब अजीब है, रिश्तों का संसार ।
    अपने ही लटका रहे, गर्दन पर तलवार ।।

    बिखर रहें है मूल्य अब, बिगड़ रहा व्यवहार ।
    अपने ही अब घोंपते, अपनों को तलवार ।।

    दो पैसे क्या शहर से, लाया अपने गाँव ।
    धरती पर टिकते नहीं, अब ‘सौरभ’ के पाँव।।

    औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल ।
    बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल ।।

    मतलब के संसार का, कैसा मुख विकराल ।
    अपने पाँवों मारते, ‘सौरभ’ आज कुदाल ।।

    छँटे कुहासा मौन का, निखरे मन का रूप ।
    सब रिश्तों में खिल उठे, अपनेपन की धूप ।।

    दुनिया हमने देख ली, नाप-नाप हर ओर ।
    अपने ही हैं लूटते, बनकर के चितचोर ।।

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

  • वक़्त पड़े की दोस्ती

    वक़्त पड़े की दोस्ती

    कौन किसी के वास्ते, करता है तकरार ।
    वक़्त पड़े की दोस्ती, वक़्त पड़े का प्यार ।।

    बदले ‘सौरभ’ ने कहाँ, मन के रीति रिवाज़ ।
    दुश्मन हो या दोस्ती, एक रखा अंदाज़ ।।

    रहा फूल के पास मैं, देखे उगते कैर ।
    नहीं दोस्ती है भली, नहीं भला है बैर ।।

    कौन पालता दुश्मनी, कौन बांटता प्यार ।
    शिक्षा-संस्कार सदा, दिखते हैं साकार ।।

    बस यूं ही बदनाम है, दुश्मन तो बे-बात ।
    अपने ही करने जुटे, अपनों पर आघात ।।

    फसल प्यार की बोइये, करिये अच्छा काम ।
    दुश्मन सीखें कायदे , ऐसा हो पैगाम ।।

    दुश्मन की चालें चले, रहकर तेरे साथ ।
    ‘सौरभ’ तेरी हार में, होता उनका हाथ ।।

    ‘सौरभ’ मन गाता रहा, जिनके पावन गीत ।
    अंत वही निकले सभी, वो दुश्मन के मीत ।।

    (सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )