Category: कविता

  • JP Jayanti : जीवन विफलताओं से भरा है

    JP Jayanti : जीवन विफलताओं से भरा है

    जीवन विफलताओं से भरा है,
    सफलताएँ जब कभी आईं निकट,
    दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से ।

    My life is ful of failures ,
    Whenever success came to my way
    I willfully pushed it away from my path.

    तो क्या वह मूर्खता थी ?
    नहीं ।
    Was that a idiocy? No.

    सफलता और विफलता की
    परिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी !

    My defination for success
    and failure are different!

    इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
    बन नहीं सकता प्रधानमन्त्री क्या ?
    किन्तु मुझ क्रान्ति-शोधक के लिए
    कुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,
    पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
    पथ-संघर्ष के, सम्पूर्ण-क्रान्ति के ।

    Just ask the history,
    I would have been prime minister ?
    But for revolutionary like me
    some other path and
    destination was acceptable,
    those of sacrifice, service ,
    creativity, struggle and total revolution.

    जग जिन्हें कहता विफलता
    थीं शोध की वे मंज़िलें ।
    मंजिलें वे अनगिनत हैं,
    गन्तव्य भी अति दूर है,
    रुकना नहीं मुझको कहीं
    अवरुद्ध जितना मार्ग हो ।
    निज कामना कुछ है नहीं
    सब है समर्पित ईश को ।

    The world said them failures but
    that was destinations of my
    experimentation ,
    There are countless destinations
    and the way is very long
    but I have not to stop
    no matter how difficult it is.
    I have no desire for my own interest
    every thing is dedicated to almighty.

    तो, विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,
    और यह विफल जीवन
    शत–शत धन्य होगा,
    यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का
    कण्टकाकीर्ण मार्ग
    यह कुछ सुगम बन जावे !

    So I am satisfied with the failures
    and I will be find my life blessed if it
    makes the arduous path of dear youths
    a little easy and smooth.

    (लोकनायक जयप्रकाश नारायण , 9 अगस्त 1975, चण्डीगढ़-कारावास में)

  • चिठ्ठी आई गाँव से

    चिठ्ठी आई गाँव से

    चिठ्ठी आई गाँव से, ले यादों के फूल।
    अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल।।
    *
    सिसक रही हैं चिट्ठियां, छुप-छुपकर साहेब।
    जब से चैटिंग ने भरा, मन में झूठ फ़रेब।।
    *
    चिठ्ठी-पत्री-डाकिया, बीते कल की बात।
    अब कोने में हो रही, चैटिंग से मुलाक़ात।।
    *
    ना चिठ्ठी सन्देश है, ना आने की आस।
    इंटरनेट के दौर में, रिश्ते हुए खटास।।
    *
    सूनी गलियाँ पूछतीं, पूछ रही चौपाल।
    कहाँ गया वो डाकिया, पूछे जिससे हाल।।
    *
    चिठ्ठी लाई गाँव से, जब राखी उपहार।
    आँसूं छलके आँख से, देख बहन का प्यार।।
    *
    ऑनलाइन ही आजकल, सपने भरे उड़ान।
    कहाँ बची वो चिट्ठियां, जिनमें धड़कन जान।।
    *
    ना चिठ्ठी संदेश कुछ, गए महीनों बीत।
    चैटिंग के संग्राम में, घायल सौरभ प्रीत।।
    *
    अब ना आयेंगे कभी, चिट्ठी में सन्देश।
    बचे कबूतर है कहाँ, आज देश परदेश।।

    डॉ. सत्यवान सौरभ

  • क्षमा भाव मन में रहे

    क्षमा भाव मन में रहे

    क्षमा करे बलवान ही, कर के हृदय विशाल।
    छोटी -छोटी भूल को, रखे न सौरभ पाल॥

    क्षमा कष्ट हरती सदा, होता  बेड़ा  पार।
    परहित में जीते रहो, करके यत्न  हजार॥

    आता है व्यक्तित्व पर, सौरभ तभी निखार।
    गलती हो जाए अगर, कर लो भूल सुधार॥

    क्षमा मुझे कर दीजिये, अंश प्रभु का मान।
    सत्य क्षमा के  भाव  है, ईश -कृपा वरदान ॥

    क्षमा  बने  संजीवनी, करले  भूल  सुधार।
    छोटी छोटी बात पर, क्यों करते हो रार॥

    दया प्रेम करुणा क्षमा, जीवन के श्रँगार।
    चित्त शुद्ध हो प्रेम हो, रहते नहीं विकार॥

    प्रेम, सत्य, ममता  क्षमा, निर्मल है आधार।
    करो दया हर जीव पर, सौरभ छोड़ विकार॥

    क्षमा भाव मन में रहे, करे  तत्व  की खोज।
    सदा सत्य वाणी मधुर, भरे मनुज में ओज॥

    गलती कर माँगे क्षमा, करे बैर का अंतl
    क्षमा भाव यदि हो हृदय, जीवन बने बसंत॥

    डॉ. सत्यवान सौरभ

  • दूरदृष्टि कवि कल्पना

    दूरदृष्टि कवि कल्पना

    यूँ ही बनते है कहाँ, कवि सवेंदनशील ।
    पीने पड़ते है उन्हें, आँसू समकालीन ।।

    जगा न पाए लेखनी, जिनकी सुप्त समाज।
    बोलो कैसे मान ले, उनको हम कविराज।।

    होते प्रहरी सजग कवि, देते युग को मोड़ ।
    करे प्रतिकूल समय से, सौरभ खुलकर होड़।।

    बोल मंच के और है, कवि होना कुछ और।
    होते सच्चे कवि वही, करे समाज की गौर।।

    समसामयिक विवाद पर, अगर रहे कवि मौन।
    युग बोध धर्म की पालना, यहाँ करेगा कौन।।

    कविवर परहित सर्वहित, रचते छन्द अपार।
    जाग्रत कवि की कल्पना, रखती नवल विचार।।

    जनहितकारी भाव से, करते युग उत्कर्ष।
    कवि करता कवि कर्म से, जीवन भर संघर्ष।।

    सही समय पर बात का, करते कवि उल्लेख।
    दूरदृष्टि कवि कल्पना, सब कुछ लेती देख।।

    होती कवि की लेखनी, ब्रह्म रूप साक्षात।
    गीत सृजन का ये लिखे, यही प्रलय की बात।।

    डॉ० सत्यवान सौरभ

  • मरे न कन्या गर्भ में

    मरे न कन्या गर्भ में

    पूजा करते शक्ति की, जिनको देवी मान।
    उसे मिटाते गर्भ में, ले लेते हो जान।।

    कैसे कोई काट दे, सौरभ अपनी चाह।
    ममता का दुर्भाग्य है, भरते तनिक न आह।।

    चीर-फाड़ से काँपती, गूँगी चीख-पुकार।
    करते बेटों के लिए, कन्या का संहार।।

    लिंग भेद करते रहे, बेटी का संहार।
    दर्जा देवी का दिया, सुता नहीं स्वीकार।।

    मरे न कन्या गर्भ में, करो न सौरभ भूल।
    उसमें भी तो प्राण हैं, है जगती की मूल ।।

    बेटी तो अनमोल है, जग की पालनहार।
    आने दो संसार में, रहे इसे क्यों मार।।

    कन्या हत्या गर्भ में, कितनी दूषित सोच।
    जिसका पूजन है करे, रहे उसे ही नोच।।

    बेटी जग रचना करे, उससे ये संसार।
    गर्भ भ्रूण हत्या करें, दिया आज दुत्कार।।

    रक्षित हों कन्या सदा, दे जीवन अधिकार।
    बेटी की चाहत जगे, तभी बचे संसार।।

    डॉ. सत्यवान सौरभ

  • वृद्धों की हर बात का

    वृद्धों की हर बात का

    वृद्धों को बस चाहिए, बस इतनी सौगात।
    लाठी पकड़े हाथ हो, करने को दो बात।।

    वृद्धों की हर बात का, कौन करे अब ख्याल।
    आधुनिकता की आड़ में, हर घर है बेहाल।।

    यश वैभव सुख शांति के, यही सिद्ध सोपान।
    घर हो बिना बुजुर्ग सखे, एक खाली मकान।।

    होते बड़े बुजुर्ग है, सारस्वत सम्मान।
    मिलता इनसे ही हमें, है अनुभव का ज्ञान।।

    सबकी खिड़की बंद है, आया कैसा काल।
    बड़े बुजुर्गो को दिया, घर से आज निकाल।।

    बड़े बुजुर्गो से मिला, जिनको आशीर्वाद।
    उनका जीवन धन्य है, रहते वो आबाद।।

    सुनते नहीं बुजुर्ग थे, जहाँ बहू के बोल।
    आज वहाँ हर बात पर, होते खूब कलोल।।

    बड़े बुजुर्गो का सदा, जो रखता है ध्यान।
    बिन मांगे खुशियाँ मिले, बढ़ता है सम्मान।।

    अब ना बड़े बुजुर्ग की, पूछे कोई खैर।
    है एकल परिवार में, मात- पिता भी गैर।।

     डॉ. सत्यवान सौरभ

  • भगत सिंह भूले नहीं

    भगत सिंह भूले नहीं

    भगत सिंह, सुखदेव क्यों, खो बैठे पहचान।
    पूछ रही माँ भारती, तुम से हिंदुस्तान।।

    भगत सिंह, आज़ाद ने, फूंका था शंख नाद।
    आज़ादी जिनसे मिले, रखो हमेशा याद।।

    बोलो सौरभ क्यों नहीं, हो भारत लाचार।
    भगत सिंह कोई नहीं, बनने को तैयार।।

    भगत सिंह, आज़ाद से, हो जन्मे जब वीर।
    रक्षा करते देश की, डिगे न उनका धीर।।

    मरते दम तक हम करे, एक यही फरियाद।
    भगत सिंह भूले नहीं, याद रहे आज़ाद।।

    मिट गया जो देश पर, करी जवानी वार।
    देशभक्त उस भगत को, नमन करे संसार।।

    भारत माता के हुआ, मन में आज मलाल।
    पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से लाल।।

    तड़प उठे धरती, गगन, रोए सारे देव।
    जब फांसी पर थे चढ़े, भगत सिंह, सुखदेव।।

    भगत सिंह, आज़ाद हो, या हो वीर अनाम।
    करें समर्पित हम उन्हे, सौरभ प्रथम प्रणाम।।

    डॉ. सत्यवान सौरभ

  • खुशियाँ देख पड़ोस की

    खुशियाँ देख पड़ोस की

    कैसा पास-पड़ोस है, किंचित नहीं तमीज।
    दया दर्द पर कम हुई, ज्यादा दिखती खीज।।

    ऐसा आस पड़ोस है, अपने में मशगूल।
    गायब है सद्भावना, जमी मनों पर धूल।।

    थाना बना पड़ोस में, गूँजा एक सवाल।
    सौरभ कैसे हो गए, सारे लोग दलाल।।

    होती कहाँ पड़ोस में, पहले जैसी बात।
    दरवाजे अब बंद है, करते भीतर घात।।

    सौरभ पास पड़ोस का, हम भी दे कुछ ध्यान।
    हो जीवन आनंदमय, रखे यही अरमान।।

    सुविधाओं के फेर में, कैसा हुआ समाज।
    क्या-क्या हुआ पड़ोस में, नहीं पता ये आज।।

    सिसक रही संवेदना, मानवता की पीर।
    भाव शून्य मन भावना, सुप्त पड़ोस जमीर।।

    आदत डालो प्रेम की, माया, ईर्ष्या त्याग।
    खुशियाँ देख पड़ोस की, भर हृदय अनुराग।।

    आकर बसे पड़ोस में, ये कैसे अनजान ।
    दरवाजे सब बंद है, और’ बैठक वीरान ।।

    डॉ. सत्यवान सौरभ

  • छूट गए परिवार

    छूट गए परिवार

    टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव।
    प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव।।

    अगर करें कोई तीसरा, सौरभ जब भी वार।
    साथ रहें परिवार के, छोड़े सब तकरार ।।

    बच पाए परिवार तब, रहता है समभाव ।
    दुःख में सारे साथ हो, सुख में सबसे चाव ।।

    परम पुनीत मंगलदायक, होता है परिवार।
    अपनों से मिलकर बने, जीवन का आधार।।

    प्यार, आस, विश्वास ही, रिश्तों के आधार।
    कमी अगर हो एक की, टूटे फिर परिवार।।

    आपस में विश्वास ही, सब रिश्तों का सार।
    जहाँ बचा ये है नहीं, बिखर गए परिवार।।

    रिश्तों के मनकों जुड़ा, माला- सा परिवार।
    टूटा नाता एक का, बिखरा घर-संसार।।

    देश-प्रेम की भावना, है अनमोल विचार।
    इसके आगे तुच्छ है, जाति, धर्म परिवार।।

    क्या एकांकी हम हुए, छूट गए परिवार।
    बच्चों को मिलता नहीं, अब अपनों का प्यार।।

    प्यार प्रेम की रीत का, रहता जहाँ अभाव।
    ऐसे घर परिवार में, सौरभ नित्य तनाव।।

    सुख दुख में परिवार ही, बनता एक प्रयाय।
    रिश्ते बांधे प्रेम के, सौरभ बने सहाय।।

    डॉ सत्यवान सौरभ

  • मेरे गीतों में बसी

    मेरे गीतों में बसी

    जिनके सच्चे प्यार ने, भर दी मन की थोथ ।
    उनके जीवन में रहा, हर दिन करवा चौथ ।।

    हम ये सीखें चाँद से, होता है क्या प्यार ।
    कुछ कमियों के दाग से, टूटे न ऐतबार ।।

    मन ने तेरा व्रत लिया, हुई चाँदनी शाम ।
    साथी मैंने कर दिया, सब कुछ तेरे नाम ।।

    मन में तेरा प्यार है, आँखों में तस्वीर ।
    हर लम्हे में है छुपी, बस तेरी तासीर ।।

    अब तो मेरी कलम भी, करती तुमसे प्यार ।
    नाम तुम्हारा ही लिखे, कागज़ पर हर बार ।।

    मन चातक ने है रखा, साथी यूँ उपवास ।
    बुझे न तेरे बिन परी, अब ‘सौरभ’ की प्यास ।।

    तुम राधा, मेरी बनो, मुझको कान्हा जान ।
    दुनिया सारी छोड़कर, धर लें बस ये ध्यान ।।

    मेरे गीतों में बसी, बनकर तुम संगीत ।
    टूटा हुआ सितार हूँ, बिना तुम्हारे मीत ।।

    माने कब हैं प्यार ने, ऊँच-नीच के पाश ।
    झुकता सदा ज़मीन पर, सज़दे में आकाश ।।

    -(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )