फिर से करीब आये बसपा-सपा, मायावती ने मिलाये अखिलेश के सुर से सुर 

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चरण सिंह 

जो मायावती समाजवादी पार्टी की हर बात का विरोध करती रही हैं। जो मायावती समाजवादी पार्टी का नाम लेते ही आग बबूला हो जाती हैं। वे मायावती आजकल सपा मुखिया अखिलेश यादव की जातिगत जनगणना पैरवी का समर्थन करती दिखाई दे रही हैं। जातिगत जनगणना के मामले पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और सपा सुर्प्रीमो अखिलेश यादव के सुर एक दूसरे से मिलते दिखाई दे रहे हैं।

दरअसल बिहार में जातिगत जनगणना के बाद अखिलेश यादव ने यूपी में भी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया है। अब समाज सुधारक और विचारक कांशीराम की जयंती पर मायावती ने पार्टी समर्थकों और कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश देते हुए अखिलेश यादव की मांग का समर्थन किया है। हर बात पर अखिलेश यादव का विरोध करने वाली मायावती का अखिलेश यादव के मुद्दे का समर्थन करने के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में नया मोड़ आते दिखाई दे रहा है।
ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या 2027 का विधानसभा चुनाव सपा और बसपा मिलकर लड़ने जा रहे हैं ? क्या जिस तरह से 2019 लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ था तो क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में मायावती मिलने जा रहे हैं। ऐसे में इस कदम से आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वैसे भी अशोक सिद्धार्थ और उनके दामाद आकाश आनंद को पार्टी से निकालने से वह अपने को अलग थलग समझ रही होंगी।
मायावती की मुश्किलें इस लिए भी बढ़ी हुई हैं क्योंकि परिवार के लोग उनसे नाराज चल रहे हैं और कार्यकर्ताओं का मनोबल वह बढ़ा नहीं पा रही हैं। लगातार बीजेपी के दबाव में रहने का उनकी ओर से सन्देश जा रहा है। ऊपर से आकाश आनंद के पार्टी से निकालने के बाद वह अपने को अकेले महसूस कर रही होंगी।
उधर चंद्रशेखर आज़ाद ने अलग से ताल थोक रखी है। धीरे धीरे चंद्रशेखर आज़ाद मायावती का वोट कब्जा रहे हैं। अखिलेश यादव से हाथ मिलाने की एक वजह यह भी हो सकती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर आज़ाद को अंतिम समय पर अपने दम पर अपनी पार्टी से चुनाव लड़ना पड़ा। चंद्रशेखर आज़ाद का जो काम करने के तरीका है उससे अखिलेश यादव भी अपने लिए असुरक्षा महसूस करने लगे हैं। उधर आकाश आनंद के चंद्रशेखर आज़ाद से हाथ मिलने की भी चर्चा है। ऐसे में मायावती और अखिलेश यादव मिल सकते हैं।
हालांकि 2019 भले ही बसपा को 10 सीट मिली हों और सपा 5 सीटों पर अटक कर रह गई हो पर मायावती ने कह दिया था कि उनका वोटबैंक तो दूसरी राजनीतिक दलों को ट्रांसफर हो जाता है पर उनका उनकी पार्टी को नहीं मिलता। उन्होंने गठबंधन टूटने का ठीकरा भी अखिलेश यादव के सर फोड़ दिया था।

दरअसल बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांशीराम की जयंती पर कार्यकर्ताओं को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर संदेश देते हुए बसपा को बहुजनों की सबसे हितैषी पार्टी बताया और कहा कि बसपा सरकार के वक्त ही इस समाज के लोगों का कल्याण हुआ। उन्होंने पार्टी संस्थापक कांशीराम की बात को दोहराते हुए कहा कि बहुजनों को अपने वोट की ताकत को समझना होगा और अपने उद्धार के लिए स्वयं के हाथों सत्ता की चाबी लेनी होगी। यही कांशीराम के लिए बहुजनों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इतना ही नहीं बसपा सुप्रीमो ने इस दौरान अखिलेश यादव की जातिगत जनगणना का भी मांग का भी समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि \बहुजन समाज की आबादी इस समय 80 फीसद से ज्यादा है। संवैधानिक और कानूनी तौर पर उनके हक के लिए जनगणना से जनकल्याण की गारंटी बाबा साहेब ने राष्ट्रीय जनगणना से प्रावधान किया है। जनगणना नहीं कराने पर संसदीय समिति ने भी चिंता जताई है।

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