2024 अब काफी नजदीक आगया है ऐसे में 2023 का साल केंद्र में सत्तारूढ़ BJP के लिए अच्छा रहा। पिछले कुछ सालों से पार्टी ने साल दर साल अपनी जड़ें मजबूत की है। 2023 में विधानसभा चुनाव में जिस तरह जीत हासिल की उसके बाद 2024 आम चुनाव से पहले बीजेपी की जीत को जानकार तय बताने लगे हैं। लेकिन पार्टी के इस अच्छे दिन के बीच कुछ चुनौतियां भी हैं जिसका अहसास 2023 में दिखा और जिस अनसुलझे सवाल के जवाब की तलाश बीजेपी करने की कोशिश करेगी।
नसमस्कर में सुंबीक और आप देख रहे है the न्यूज 15
2024 में बीजेपी के सामने क्या चुनौतिया आने वाली है और आने वाले साल में क्या परिवर्तन देखने को मिल सकता है चलिए उस पर नज़र डालते है
सबसे पहली चुनौती की बात करे तो बीजेपी के सामने चुनौती साउथ के राज्यों में अपनी जड़े जमाने की है। बीजेपी पिछले कुछ सालों से इस पर फोकस भी कर रही है लेकिन मनमाफिक नतीजा नहीं मिल पा रहा है। बीजेपी के पास south india के राज्यों में सिर्फ कर्नाटक में ही सत्ता थी लेकिन हाल में हुए चुनाव में बीजेपी ने वह भी गंवा दी। कर्नाटक में 2013 में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन 2018 के चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी। बहुमत साबित न कर पाने की वजह से कांग्रेस-जेडीएस ने सरकार बनाई लेकिन एक साल में ही वहां फिर बीजेपी की सरकार बन गई। लेकिन इस साल हुए चुनाव में बीजेपी के हाथ से कर्नाटक भी चला गया।
तेलंगाना से बीजेपी को उम्मीद थी लेकिन बीजेपी वहां भी अपनी पकड़ नहीं बना पाई। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज आठ सीटें मिली हालांकि पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली थी और उस लिहाज से यह बढ़त है। लेकिन साउथ के राज्यों में क्रेक करना बीजेपी के लिए चुनौती बना हुआ है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं और बीजेपी ने 2019 में यहां 25 सीटें जीती थी। तेलंगाना की 17 में से चार सीटें जीती। लेकिन तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में एक भी सीट बीजेपी को नहीं मिली।
फिर आती है चुनौती 2 वैसे तो बीजेपी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है। उत्तर भारत और हिंदी भाषी राज्यों में देखें तो बीजेपी लगभग पीक पर पहुंच गई है। हाल ही में बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। उत्तराखंड में राजनीतिक ट्रेंड बदलते हुए दोबारा सरकार बनाई है। उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी फिर से सत्ता में आई है। जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां भी पार्टी ने लोकसभा में जर्बदस्त जीत दर्ज की है। दिल्ली में बीजेपी सत्ता से कोसो दूर है लेकिन यहां लोकसभा की सभी सात सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गुजरात में सभी 26 सीटें जीती। हरियाणा की भी सभी 10 सीटें बीजेपी के खाते में गई। हिमाचल की सभी चार सीटें जीती। राजस्थान की 25 में से 24 सीट बीजेपी और एक बीजेपी के सहयोगी को मिली। मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटें जीती। उत्तराखंड की सभी 5 सीटें जीती। छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटें जीती। झारखंड की 14 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की। यूपी में 80 में से 62 सीटें जीती। बीजेपी के लिए यहां अपनी पकड़ बनाए रखना ही चुनौती है।
अब जो तीसरी चुनौती आती है वो सबसे बाद सवाल खड़ी करती है .. .. नरेंद्र मोदी नहीं तो कौन?
बीजेपी के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक विपक्ष से सवाल पूछते रहते हैं कि मोदी नहीं तो कौन? यही सवाल बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। नरेंद्र मोदी के बाद कौन? बीजेपी में नरेंद्र मोदी सिर्फ एक चेहरा ही नहीं है बल्कि करीब पूरी पार्टी ही मोदी हैं। उनके चेहरे पर ही बीजेपी सिर्फ लोकसभा ही नहीं बल्कि राज्यों के चुनाव भी लड़ती है। हाल ही हुए तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सब जगह पर बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा। यहां तक की लोकल बॉडी के चुनाव में भी बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे का सहारा लेती है। ऐसे में नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में कौन होगा जो बीजेपी के लिए मैजिक का काम करेगा। मोदी अभी 73 साल के हैं और दो साल बाद वे 75 साल के हो जाएंगे। बीजेपी ने खुद ही नियम बनाया कि 75 साल से ज्यादा उम्र के लोग चुनाव नहीं लड़ेंगे और कई बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिया। हालांकि यह नियम खुद ही बीजेपी ने कई मौकों पर तोड़ा भी है लेकिन मोदी के बाद कौन, इस सवाल का जवाब तलाशना बीजेपी के लिए चुनौती है।
फिर अगली चुनौती आती है की नए मुद्दे क्या होंगे?
बीजेपी अभी मोदी की गारंटी के रथ पर सवार है और लगातार कहती है कि बीजेपी ने अपने वादे पूरे किए हैं। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने, जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का मुद्दा शुरू से ही बीजेपी और संघ के मुद्दे रहे हैं। आर्टिकल-370 हट चुका है और अगले साल 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा भी हो जाएगी। नागरिक संशोधन बिल बीजेपी पास करा चुकी है हालांकि अभी इसे लागू होना बाकी है। संसद और विधायिकाओं में महिला आरक्षण का कानून भी बन गया है। ऐसे में अब बीजेपी के सामने चुनौती है कि वे क्या नए मुद्दे होंगे जो बीजेपी के लिए वोट बैंक जुटाएंगे।
समान नागरिक संहिता का मुद्दा है लेकिन ये भी काफी वक्त से चल रहा है। बीजेपी की कई राज्य सरकारें इस पर काम कर रही हैं। बीजेपी की चुनौती नए मुद्दे तलाशने की और उनको लेकर माहौल बनाने की भी है। साथ ही बीजेपी जिस रेवड़ी पॉलिटिक्स पर निशाना साधती है, उसकी क्या काट निकालेगी और खुद को उससे कैसे अलग करेगी, यह भी बीजेपी की चुनौती है। बीजेपी दूसरी पार्टियों पर तो रेवड़ी पॉलिटिक्स का आरोप लगाती रही है लेकिन हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खुद लोगों से इस तरह के वादे किए और उन्हें घोषणापत्र में शामिल भी किया।