अगर चाहो तुम सूरज बनना,
बनकर के दीप जलो।
गर खिलना है फूलों-सा,
काँटों पर नित चलो॥
जीवन के इस सफ़र में,
न जाने कितने मोड़ मिलेंगे।
पग-पग मुश्किल रस्ता रोकेगी,
कष्टों के झकझोर मिलेंगे॥
यदि मंज़िल को है चूमना,
ना बाधा देख डरो।
गर खिलना है फूलों-सा,
काँटों पर नित चलो॥
फूलों का ‘सौरभ’ पाने हेतु,
काँटों को प्रथम चुनना होगा।
न जाने कितनी बार गिरोगे,
हर बार तुम्हें संभलना होगा॥
पड़े यदि सागर लांघना,
बन के पवन कुमार उड़ो।
गर खिलना है फूलों-सा,
काँटों पर नित चलो॥
बढ़ते कदमों को फांसने,
नियति अपना खेल रचेगी।
जीवन के इस महाभारत में,
बाधाएँ चक्रव्यूह रचेगी॥
होना चाहो अमर यदि तो
अभिमन्यु-सा वीर बनो।
गर खिलना है फूलों-सा,
काँटों पर नित चलो॥
मन-वचन-कर्म से तुमको,
ये युद्ध लडऩा होगा।
लहराते विजय पताका,
लक्ष्य की ओर बढऩा होगा॥
दुनिया जय-जय कार करेगी,
उन्नति के शिखर चढ़ो।
गर खिलना है फूलों-सा,
काँटों पर नित चलो॥
प्रियंका ‘सौरभ’
दीमक लगे गुलाब (काव्य संग्रह)