दहेज हमारे समाज की परमुख समस्या बन चुकी है आखिर कयों देना पड़ता है दहेज, हमें अपनी बहन बेटियों के विवाह में। कभी सोचा आपने जब हमारे घर में बेटी का जन्म होता है तो बेटी के जन्म के साथ ही मां बाप के मन में अनेक चिंताये भी जन्म लेने लगती है । बेटी की परवरिश पढाई और शादी की चिंता । बेटी की परवरिश करने के बाद जब बेटी विवाह योगय हो जायेगी तो इसको किस प्रकार सुयोग्य वर मिलेगा मगर जब हमारे समाज में दहेज का दानव सामने खड़ा हो तो माँ बाप की चिंता और भी विकराल रूप ले लेती है। आखिर कयों देना पडता है दहेज ,हमें अपनी बहन बेटियों की शादी में, इसका परमुख कारण है हमारा सजातीय विवाह। जब हम अपनी बहन बेटी का विवाह अपनी ही जाति के लडके से करते हैं तो वहाँ पर दहेज की मांग उठती है कयोंकि एक जाति में कुछ ही परिवार साफ सुथरे और पढ़े लिखे होते हैं और एक जाति कुछ ही लडके अच्छे कारोबार या सरकारी नौकरी में होते हैं तो ऐसे परिवारों में या ऐसे लडकों के साथ हर वयक्ति अपनी बहन बेटी का विवाह करना चाहता है तो निश्चित तौर पर वहाँ पर दहेज की मांग उठती है कयों कि हर कोई उन ही ही परिवारों की तरफ भागता है। जब हम अपनी बहन बेटी का विवाह अपनी ही जाति से हटकर या यूँ कहें सभी जातियों में करने लगेगें तो निश्चित तौर पर दहेज में कमी आयेगी कयोकि फिर हमें वर चुनने में एक विशाल क्षेत्र मिल जायेगा। आखिर कयों नहीं करते हैं हम अपनी जाति से हटकर अन्य जाति में विवाह । हिन्दू धर्म के अनुसार जब सभी जातियों के लोग राम,सीता,दुर्गा, राधा, कृष्ण की पूजा कर सकते हैं। होली दिवाली रक्षाबंधन और दशहरा सभी एक साथ मना सकते हैं तो फिर शादियाँ कयों नहीं। इस प्रकार मुस्लिम धर्म के लोग जब एक अललाह यानि एक ईश्वर को मानते हैं और एक ही पैगम्बर के उममती हैं। रमजान ,ईद , मोहर्रम,सभी साथ मिलकर मनाते है तो शादियों में मंसूरी, अंसारी ,फारुखी, कयों। जिस दिन से हमारे समाज में दहेज रहित शादियां होने लगेगी उस दिन से समाज में लोग बेटी बेटा में अनतर करना भूल जायेगें।
अफसार मंसूरी