वाह री नीतीश सरकार, सब गलती जनता की!

0
248
Spread the love

सी.एस. राजपूत   

राबबंदी के कानून पर इतराने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब जहरीली शराब कांड पर अपनी विफलता स्वीकार करने के बजाय शराब पीने वालों को ही दोषी ठहरा दे रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि शराब बंदी होने के बावजूद आखिरकार यह जहरीली शराब आई कहां से ? शराब का धंधा करने वाले और उनको बढ़ावा देने वाले कौन लोग हैं ? क्या शासन-प्रशासन की मिलीभगत के बिना कोई गलत धंधा किया जा सकता है? दरअसल गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार भाजपा की गोद में क्या जा बैठे कि वह भाजपा की ही भाषा बोलने लगे। जो नीतीश कुमार जिन मामलों को लेकर लालू और राबड़ी सरकार को घेरते-घेरते सत्ता तक पहुंचे वह आज अपने राज में उन मामलों के लिए जनता को ही दोषी ठहरा दे रहे हैं।
गत विधानसभा चुनाव शराबबंदी कानून पर लड़ने वाले नीतीश कुमार के राज में यदि जहरीली शराब पीने से 30 लोगों की मौत हो जाए तो यह उनके लिए बड़ी शर्म की बात है। मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि गलत चीज पिएंगे तो ऐसा ही होगा।  मतलब शराब माफिया पर कार्रवाई करने के बजाय वह शराब पीने वालों को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। आखिर कहां है नीतीश सरकार का पुलिस प्रशासन ?  कहां है उनका इकबाल? कहां गये सरकार के वादे ? क्या सरकार सत्ता के नशें में चूर है और लोगों की जान जहरीली शराब पीने से जा रही है। यह बिहार का दुर्भाग्य ही है कि मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार छठ के बाद एक समीक्षा बैठक की बात कर रहे हैं।  शराब से मरने वाले लोगों के परिवार और शराब माफिया पर अंकुश लगाने की ओर उनका कोई ध्यान नहीं है। बिहार के मंत्री रामजनक तो अपने मुख्यमंत्री से भी आगे निकल गए। वह शराब कांड के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग मरे हैं उनमें से ज्यादा लोग दलित हैं। मतलब लाशों पर भी राजनीति।
बिहार में शराबबंदी को लगभग पांच साल हो चुके हैं पर प्रदेश में कभी ऐसा नहीं लगा कि यहां पर शराब बंदी चल रही है, बल्कि शराब माफिया दूसरे तरीके से अपने धंधे को चमकाने में लगे हैं। किसी भी प्रदेश में जहरीली शराब से यदि मौत होती है तो वहां की सरकार पर उंगली तो  उठेगी ही। और यदि प्रदेश में शराबबंदी है तो सरकार को घेरने वाला कटघरा और मजबूत हो  जाता है। जहरीली शराब से हुई 30 लोगों की मौत पर माफी मांगने  नीतीश कुमार का उल्टे पीडि़तों को जिम्मेदार ठहराना बेशर्मी की पराकाष्ठा मानी जा रही है। अब जब इस मुद्दे पर खूब शोर शराबा हुआ तब जाकर उन्होंने उच्च स्तरीय बैठक बुलाकर मामले की समीक्षा की। उन्हें जहरीली शराब की घटनाओं के संबंध में अधिकारियों को सख्त कार्रवाई करने का निर्देश भी देना पड़ा। ज्ञात हो कि गत फरवरी माह में खुद सरकार में मंत्री मुकेश सहनी ने इस कानून पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सूबे में शराबबंदी सात हजार करोड़ रुपये का सालाना लग रहा है पर यह कानून लागू नहीं हो पा रहा है। दरअसल सरकारों की यह नीति होती है कि सब कुछ होता रहे और जनता को जिम्मेदार ठहराते रहो। उत्तर प्रदेश में पॉलीथिन के प्रतिबंध पर भी ऐसा हुआ था। पॉलीथिन बनाने वाली फैक्टिरों पर तो अंकुश न लग सकता पर छोटे-छोटे दुकानदारों को जरूर परेशानी उठानी पड़ी। दरअसल बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव महिलाओं के वोट बटोरने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे में शराबबंदी लागू करने का वादा किया था। हालांकि उनका एक उद्देश्य घरेलू हिंसा को रोकना भी था। सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अप्रैल 2016 को बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत बिहार में शराबबंदी लागू कर दी। इस कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम 50,000 रुपये जुर्माने से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here