कार्यकर्ताओं को लात और पूंजीपतियों को भात ?

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चरण सिंह

क्या कार्यकर्ता लात खाकर भी नेताओं के गुलाम बने रहने को तैयार हैं ? क्या कार्यकर्ताओं को अपने स्वार्थ के लिए नेताओं के हाथों अपमानित होना भी बर्दाश्त है ? कार्यकर्ताओं को गुलाम सोचने की प्रवत्ति क्षेत्रीय पार्टियों में ही नहीं है बल्कि अपने को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनने का दंभ भरने वाली बीजेपी में भी इस तरह के मामले सुनने और देखने को मिल रहे हैं।

दरअसल कार्यकर्ताओं का अपने नेता के हाथों अपमानित होना कोई नई बात नहीं है। अब बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानवे का अपने कार्यकर्ता को लात मारने का वीडियो वायरल हो रहा है। बताया जा रहा है कि रावसाहेब दानवे से मिलने पूर्व मंत्री अर्जुन खोतकर उनके आवास पर पहुंचे थे कि दानवे बुके देकर खोतकर का सम्मान कर रहे थे। जैसा कि कार्यकर्ता नेताओं के फोटो खिंचने के समय नेताओं के साथ खड़े हो जाते हैं तो इस दौरान भी एक बीजेपी का कार्यकर्ता उनके फोटो फ्रेम में आने लगा। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि कोई पूंजीपति इस फ्रेम में आने की कोशिश करता तो दानवे उसको ऐसे ही लात मारते। पूंजीपति को तो वह गले से लगाते और सम्मानित भी करते। मतलब कार्यकर्ताओं की नेताओं की नजरों में कोई इज्जत नहीं।

दानवे भला किसी आम कार्यकर्ता को अपने साथ फोटो खिंचवाना कैसे पसंद करते ? फिर क्या था कि दानवे इस कार्यकर्ता को अपने पास से हटाने के लिए लात मारने लगे। इस नेता को इस बात का भी आभास नहीं हुआ कि उनकी वीडियो बन रही है। ऐसा भी नहीं कि इस नेता ने एक बार ही इस कार्यकर्ता को लात नहीं मारी हो। जब तक वह फ्रेम से हटा नहीं तब तक यह नेता लात मारता रहा।

जमीनी हकीकत यह है कि आज के नेता कार्यकर्ताओं को गुलाम समझते हैं। कार्यकर्ता हैं कि पार्टियों में बस इस्तेमाल होते रहते हैं और नेता हैं कि उनकी मेहनत की मलाई चाट लेते हैं। ये नेता चुनाव में कार्यकर्ता को पार्टी का समर्पित सिपाई तो बताते हैं पर इनका न तो सम्मान करने को तैयार हैं और न ही उनका आर्थिक स्तर बढ़ता देखना चाहते हैं। बस कार्यकर्ता इनकी गुलामी करते रहें। ऐसा नहीं कि किसी पार्टी विशेष के नेता ही इस तरह का आचरण करते हैं। लगभग सभी पार्टियों के नेताओं का यही रवैया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि कार्यकर्ता अपमान झेलकर भी पार्टी में क्यों टिके रहते हैं। यह कार्यकर्ताओं का अपमान झेलना ही कहा जाएगा कि अपमान होने पर कार्यकर्ता नेताओं के खिलाफ लामबंदी करते नहीं देखे जाते हैं।

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