खतरे में सहारा टीवी के 250 कर्मचारियों की नौकरी
द न्यूज 15 ब्यूरो
नई दिल्ली। सहारा मीडिया में एक बार फिर से आंदोलन की आग सुलग रही है। जानकारी मिली है कि इस बार धुंआ टीवी चैनल से उठा है। जानकारी मिल रही है कि सहारा टीवी में कह दिया गया है कि एक नवम्बर के बाद ऑफिस नहीं आना है। कर्मचारियों से इस्तीफे मांगे जा रहे हैं। प्रबंधन की ओर से इस तरह की खबरें फैलाई जा रही हैं कि जो कर्मचारी इस्तीफा देंगे, उनका बकाया भुगतान किस्तों में उनके घर पहुंचाया जाता रहेगा।
हालांकि इन कर्मचारियों ने अपना गुस्सा जाहिर किया तो उच्च प्रबंधन से यह संदेश दिलवा दिया कि जिस व्यक्ति ने यह बात बोली है उसका यह निजी निर्णय है। वैसे एक वेब पोर्टल ने 250 कर्मचारियों की छंटनी और टीवी चैनल के बंद होने की खबर कई दिन पहले चला दी थी। सहारा मीडिया की स्थिति यह है कि राष्ट्रीय सहारा के ग्रुप एडिटर विजय राय कई दिनों से ऑफिस नहीं आ रहे हैं। मीडिया हेड सुमित राय कर्मचारियों से मिलते नहीं।
दरअसल सहारा मीडिया में आंदोलन 2015 से चल रहा है। 2014 में जब सुब्रत रॉय सहारा सेबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तिहाड़ जेल में बंद कर दिए गये थे। सहारा मीडिया में कर्मचारियों को वेतन मिलना बंद हो गया। एक टोकन मनी बांध दी गई। 2015-16 में सहारा मीडिया में तीन आंदोलन हुए। पहला आंदोलन बृजपाल चौधरी और चरण सिंह की अगुवाई में हुआ तो दूसरा गीता रावत और शशि राय के नेतृत्व में और तीसरा गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव की अगुवाई में हुआ। इन आंदोलन का इतना फायदा जरूर हुआ था कि ठीक ठाक अमाउंट कर्मचारियों को रेगुलर मिलना शुरू हो गया था। आंदोलन की अगुवाई करने वाले कर्मचारियों को आंदोलन करने के खामियाजा भी भुगतना पड़ा था।
देखने की बात यह है कि जब सहारा मीडिया में बकाया वेतन को लेकर आंदोलन चल रहा था तो तिहाड़ जेल में बंद सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय ने आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल वहां पर ही बुलाया। प्रतिनिधिमंडल में मुख्य रूप से गीता रावत, शशि रॉय, चरण सिंह, मोहित श्रीवास्तव, मुकुल रघुवंशी और उत्पल कौशिक थे। सुब्रत रॉय ने उठकर इस प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया पर जब मीटिंग शुरू हुई तो उन्होंने तुरंत बोला कि आप लोग नेतागिरी न करें। सहारा में एक ही नेता है और वह मैं हूं। हालांकि दो घंटे तक चली इस मीटिंग में जब सुब्रत राय की एक न चली तो उन्होंने यह कहकर मीटिंग समाप्त कर दी कि उनके पास पैसा नहीं है। जिन सुब्रत रॉय के सामने सहारा में कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था उन पर सवालों की बौछार हुई थी। सुब्रत राय की जिंदगी में यह पहली मीटिंग थी जिसमें उनको अपने ही कर्मचारियों के सवालों का बौछारों का सामना करना पड़ रहा था।
यह ऐसी मीटिंग थी जिसमें सहारा में व्याप्त व्यवस्था का खुलकर विरोध हुआ था। सुब्रत राय और उनके सिपहसालारों के रवैये से नाराज आंदोलनकारियों ने नोएडा स्थित सहारा परिसर में टेंट गाड़ कर आंदोलन को तीव्र कर दिया। यह मीडिया जगत का ऐसा आंदोलन था जिसमें परिसर के अंदर ही टेंट गाड़ कर सुब्रत राय और उनके सिपहसालारों को ललकार दिया गया था।
एक समय था कि सहारा में कर्मचारी और एजेंट सुब्रत राय के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल सकते थे। सहारा ग्रुप में पहले गुड सहारा और फिर सहारा प्रणाम को ही अभिवादन माना जाता रहा है। सहारा में सुब्रत राय ने विभिन्न हथकंडे अपनाकर कर्मचारियों और एजेंटों में अपनी छवि भगवान की बनवा रखी थी। राजनीति, बालीवुड और खेल जगत में अपना रुतबा मनवाने वाले और अपने को विश्व के सबसे बड़े परिवार का अभिभावक बताने वाले सुब्रत राय को जिंदगी का सबसे बड़ा झटका उस समय लगा जब सहारा मीडिया में बकाया वेतन भुगतान को लेकर उनके खिलाफ ही बगावत हो गई। उसके बाद से सहारा निवेशकों का आंदोलन भी लगातार जारी है। सहारा निवेशकों के 2 लाख करोड़ से ऊपर का भुगतान बताया जा रहा है। हालांकि निवेशकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।