कत्ल करे दुश्मन बने, बदल गई वो चाल।
करके देखो नेकियाँ, गला कटे तत्काल।।
जो ढूंढे हैं फायदा, उनका क्या परिवार।
संबंधों की साधना, लुटती है हर बार।।
नकली है रिश्ते सभी, नहीं किसी में धीर।
झूठी है सद्भावना, समझेंगे क्या पीर।।
सब कुछ पाकर भी रहा, जिनका मन बीमार।
उन बारे कुछ सोचना, …सौरभ है बेकार।।
सौरभ मतलब दे रहा, जग को नव संबंध।
सांप नेवले कर रहे, …आपस में अनुबंध।।
जंगल रोया फूटकर, देख जड़ों में आग।
उसकी ही लकड़ी बनी, माचिस से निरभाग।।
कह दें कैसे हम भला, औरत को कमजोर।
मर्दाना कमजोर जब, लिखा हुआ हर ओर।।
तड़पा तड़पा मारेगी, बुरे कर्म की चीख।
समझें जो ना गलतियां, ले न भले से सीख।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ