एक कविता ने की तुर्की में क्रांति !

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आज के समय में साहित्य का योगदान ख़तम होता जा रहा है। पहले का समय था जब साहित्य के जरिए अपनी बात को बोल लेते थे पर अब ये दौर खत्म होते जा रहा है। लेकिन इन सब के बीच एक ऐसा देश हैं जहां एक लेखक की कविता ने न केवल चर्चा का माहौल बना दिया। बल्कि अब उस कविता पर अच्छी बहस छिड़ गयी है जिसका परिणाम अब मुस्लिम बहुल देश तुर्की में देखने को मिल रहा है। जहा पर एक मशहूर लेखक जो कि पेशे से वकील भी है उनकी कविता से अब बहस छिड़ गई है। उनकी कविता में सीरिया पर जमकर हमला बोला गया है। जिसके कारण उनको हिरासत में ले लिया गया है। जिससे तुर्की में धर्मनिरपेक्ष और इस्लाम को लेकर विवाद छिड़ गया है। बात करे वर्त्तमान कि 99 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम होने के बावजूद तुर्की एक धर्मनिरपेक्ष देश है, वहां पर इस प्रकार की घटना होना अपने आप में एक बड़ा मुद्दा है।

सन 1924 में संवैधानिक संशोधन के बाद से ही तुर्की एक धर्मनिरपेक्ष देश है. तुर्की का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है. तुर्की का संविधान सभी धर्मों और आस्थाओं के के प्रति समान सहिष्णुता की बात करता है. अल्टुन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बयान जारी करते हुए कहा है कि उसने किसी के बारे में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लिखा है. जिसे आप शरिया कानून कहते है… मेरे लिए वह तालिबानी मानसिकता है, जो सड़क पर चल रही महिलाओं पर पत्थर फेंकने की हिमायती है. मैं अपनी बातों पर अडिग हूं. विवाद बढ़ता देख अल्टुन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उस पोस्ट को डिलीट कर दिया. हालांकि, तुर्की की सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि नियमों से जकड़ देता है और धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक व्यवस्था को खत्म कर देता है.

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